Hindi News

indianarrative

Sri Lanka की राह पर Pakistan! मंडराया ये नया संकट, लोगों ने कहा- सरकार की गलत नीतियों के चलते अंधेरे में है नौजवानों का भविष्य

पाकिस्तान में पेपर संकट के चलते नहीं छप रही किताबें

पाकिस्तान इस वक्त श्रीलंका की राह पर है। आजादी के बाद से श्रीलंका के इतिहास में पहली बार भयानक मंदी का दौर आया है। मुल्क में इस वक्त हर एक चीजों की कमी है। श्रीलंका दिवालिया घोषित हो गया है। यहां पर पेट्रोल-डीजल खत्म हो चुके हैं, खाने के चीजों की लगातार कमी होती जा रही है। दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। इस बीच भारत लगातार श्रीलंका की मदद कर रहा है। अब पाकिस्तान का भी श्रीलंका वाला हाल होता नजर आ रहा है। पाकिस्तान वैसे ही कंगाली के राह पर चल रहा है। यहां भी आटा, चावल, दाल, तेल से लेकर हर चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। अब तो यहां पर पेपर संकट भी गहराने लगा है जिसके चलते किताबें नहीं छप रही हैं। ऐसे में छात्रों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।

पाकिस्तान में इस वक्त हालत यह है कि, यहां के कागज संगठनों का कहना है कि इस संकट के चलते अगस्त से शुरू हो रहे अकादमिक सत्र में छात्रों को किताबें नहीं मिल पाएंगी। इस आशंका के बीच पाकिस्तान के शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। पाकिस्तान के पेपर एसोसिएशन ने कहा है कि देश में पेपर संकट के कारण अगस्त से शुरू होने वाले नए शैक्षणिक वर्ष में छात्रों को किताबें उपलब्ध नहीं होंगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान में छपाई और पैकेजिंग में करीब 18000 कंपनियां शामिल हैं। लेकिन सरकार की गलत नीतियों का खामियाजा अब इन कंपनियों और उनके सप्लाई चेन मैनेजमेंट को भुगतना पड़ रहा है।

सरकार की नीतियों के चलते आया संकट

पाकिस्तान में प्रिंटिंग और पैकेजिंग से जुड़ी कंपनियों को सरकारी नीतियों के चलते भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। किताब प्रकाशकों ने चेतावनी दी है कि अगर देश में बनने वाले कागज के दाम तय नहीं किए जाते हैं कि इस साल छात्रों के लिए किताबों की भारी कमी हो जाएगी। इसके अलावा घरेलू कंपनियां मांग के अनुपात में कागज का उत्पादन भी नहीं कर पा रही हैं। पब्लिशर्स एंड बुकसेलर एसोसिशएन के प्रमुख अजीज खालिद का कहना है कि, जनवरी के बाद से घरेलू कागज के दाम 100 रुपये प्रति किलो बढ़ गए हैं। हर हफ्ते इसकी कीमतों में पांच से आठ रुपये का इजाफा हो रहा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि, सरकार ने इसे काबू में करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। जिसके चलते पब्लिशिंग और प्रिंटिंग कंपनियां भारी नुकसान झेल रही हैं। प्रकाशकों के पास भी कागज की भारी कमी चल रही है।