पाकिस्तान (Pakistan) में काफी लम्बे अर्से तक रहे सैनिक शासन (Military rule) ने सेना को सरकार के समूचे तंत्र में पैंठ बनाने का मौका दिया है। राजनीतिक दलों, न्यायपालिका और नौकरशाही आज सभी वर्गों में सेना के समर्थक मौजूद हैं। इसलिए सेना के साथ मतभेद रखने वाले लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए राजनीतिक नेता को सत्ता से बेदखल करने के लिए अब किसी तरह की फौजी बगावत की जरूरत नहीं रह गई है। दरअसल, अगर पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया होता, तो वह ऐसा करने वाले प्रथम निर्वाचित प्रधानमंत्री होते। वह लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचित होने की स्थिति में भी थे।
वहीं इस बीच अब फिर खबर सामने आ रही है कि पाकिस्तान में अगले छह महीने या इससे कुछ ज्यादा समय बाद सैनिक शासन लागू किया जा सकता है। देश की मौजूदा आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण करती हुई एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। पाकिस्तान के साप्ताहिक अखबार दि फ्राइडे टाइम्स में लेखक जस्टिस काटजू ने इस बात का खतरा व्यक्त किया है। पाकिस्तान के विश्लेषक लेखक ने अपने तर्क के समर्थन में कुछ तथ्य भी रखे हैं।
रिपोर्ट में स्थित बिगड़ने की बात
लेखक ने कहा कि सब्जी समेत अन्य बुनियादी जरूरत की चीजों के दाम आसमान पर हैं। सत्ता तो बदल गई लेकिन स्थितियों में कोई बदलाव या सुधार नहीं हो पाया है। वर्तमान गठबंधन सरकार वही आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है। विनाशकारी बाढ़ जले पर नमक छिड़कने वाली साबित हुई है। इसी के चलते वहां स्थित बिगड़ने की बात कही गई है।
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पाकिस्तानी लगातार अव्यवस्था की स्थिति
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भीख का कटोरा लिए विभिन्न देशों के पास पैसे मांगने के लिए पहुंच रहे हैं। लेखक का कहना है कि पाकिस्तानी लगातार अशांत हो रहे हैं। यह स्थिति केवल तभी पैदा होती है जब अव्यवस्था और सैनिक शासन में कोई एक विकल्प बचता है। इतिहास गवाह है कि ऐसी स्थिति में सेना आगे बढ़ जाती है।