तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद से पुरी दुनिया स्तब्ध है। सभी देश वेट एंड वॉच का फॉर्मूला अपना रहे हैं। तालिबान की हर हरकत पर नजर रखी जा रही है। इसके बाद फैसला लेंगे की तालिबान को मान्यता देनी है या नहीं। लेकिन पाकिस्ता अपनी ही चाल चल रहा है। जहां सारे देश तालिबान के कट्टरवादी सोच की आलोचना कर रहे हैं वहां पाकिस्तान तालिबान के सपोर्ट में खड़ा दिख रहा है।
पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी (जेआई) ने प्रधानमंत्री इमरान खान से अफगानिस्तान में तालिबान शासन को तुरंत मान्यता देने की मांग की है। जिसका उद्देश्य युद्धग्रस्त देश और क्षेत्र में शांति का मार्ग प्रशस्त करना है। जेआई के प्रमुख सिराजुल हक ने कहा, 'इस्लामी देशों को तालिबान सरकार को मान्यता देने के लिए इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की एक बैठक बुलानी चाहिए। हक ने अमेरिका पर भी निशाना साधा और अफगानिस्तान में उसके 20साल के युद्ध में हजारों लोगों की हत्या के लिए वाशिंगटन से माफी मांगने की मांग की। उन्होंने कहा, 'अमेरिका को काबुल में सरकार को मान्यता देनी चाहिए और हजारों लोगों की हत्या के लिए अफगानिस्तान से माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने कहा, अफगानिस्तान में 20साल के संघर्ष के बाद तालिबान ने उम्माह को एक नई उम्मीद दी है। देश पर अमेरिकी कब्जे के बाद अफगानिस्तान में हजारों निर्दोष लोग मारे गए।
जेआई प्रमुख ने मौजूदा सरकार के तहत पाकिस्तान की विदेश नीति की भी आलोचना की। उन्होंने याद दिलाया कि अमेरिकी कांग्रेस में इस्लामाबाद के खिलाफ हालिया वोट देश की विदेश नीति की विफलता थी। दशकों से तालिबान नेतृत्व और उसके लड़ाकों को समर्थन और आश्रय देने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की जाती रही है, जिसके बारे में वैश्विक समुदाय द्वारा दावा किया जाता है कि इसी वजह से अफगानिस्तान पर तालिबान तेजी से कब्जा कर सका।
'लादेन को बालते हो शहीद और करते हो शांति की बात..', UN में भारत ने पाकिस्तान को जमकर लताड़ा