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कई काले कारनामों से सने हैं Musharraf के हाथ, भारत से दोस्ती के बदले पीठ में घोंपा खंजर

Pervez Musharraf Death

Pervez Musharraf Death: कारगिल युद्ध के सूत्रधार और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद रविवार को खाड़ी देश दुबई में निधन हो गया है। 79 वर्ष के मुशर्रफ ने 199 में सैन्य तख्तापलट कर लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को गिरा दिया और नौ साल तक देश पर शासन किया। इस दौरान उन्होंने खुद को एक प्रगतिशील मुस्लिम नेता के रूप में पेश करने का प्रयाश किया। मुशर्रफ (Pervez Musharraf Death) का जन्म दिल्ली में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था लेकिन, 1947 में विभाजन के बाद वो पाकिस्तान चले गये। पाकिस्तान की एक विशेष अदालत ने मुशर्रफ को साल 2019 में मौत की सजा सुनाई थी। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के कार्यकाल में उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार था कि किसी पूर्व सैन्य शासक को देशद्रोह के मुकदमे का सामना करना पड़ा। हालांकि, उस मौत की सजा को बाद में लाहौर हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था। मुशर्रफ (Pervez Musharraf Death) तो चले गये लेकिन, उनके काले कारनामे इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गये हैं। ये वही मुशर्रफ हैं जिन्होंने एक हाथ से भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी के साथ दोस्ती किया तो दूसरे हाथ से पीठ में कारगिल का खंजर घोंप दिया।

कारगिल जंग मुशर्रफ की देन
मुशर्रफ ने पाकिस्तान पर 1999 से 2008 तक शासन किया। जब वो पाकिस्तान के आर्मी चीफ थे, तब उन्होंने भारत के खिलाफ खूब साजिशें रची। मुशर्रफ को पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या और लाल मस्जिद के मौलवी के मारे जाने के मामले में भगोड़ा घोषित किया गया था। मुशर्रफ को 2007 में अपने ही देश में आपातकाल को लागू करने में उनकी भूमिका के लिए 2019 में पाकिस्तान की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। मुशर्रफ ने ही करगिल युद्ध की जमीन तैयार की थी, जो महीनों तक चला था। यह युद्ध तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लाहौर में भारत के अपने समकक्ष अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद शुरू हुआ था। लेकिन, कारगिल जंग में भारत मां के वीर सपूतों ने मुशर्रफ को बता दिया कि, पाकिस्तान के मंसूबे कभी भी कामयाब नहीं होंगे।

पाकिस्तान में तख्तापलट भी मुशर्रफ के नाम है
मुशर्रफ ने एक दो काले कारनामें नहीं बल्कि कई किये हैं। जब वो कारगिल जंग हार गये तो इसके बाद उन्होंने 1999 में तख्तापलट कर तत्कालीन प्रधानमंत्री शरीफ को अपदस्थ कर दिया और 1999 से 2008 तक विभिन्न पदों-पहले पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी तथा बाद में राष्ट्रपति पद पर रहते हुए पाकिस्तान पर शासन किया था। मुशर्रफ उस दौरान पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी थे, जब अमेरिका पर 9/11 हमला हुआ था और उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान और अल कायदा के खिलाफ कार्रवाई के लिए अमेरिका से हाथ मिला लिया था।

मुशर्रफ की अटल बिहारी संग दोस्ती और पीठ में खंजर
बेनजीर भुट्टो की हत्या की गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पाई। भुट्टो की दिसंबर 2007 में हुई हत्या के बाद उनके सहयोगियों को 2008 के चुनाव में भारी खमियाजा उठाना पड़ा। मुशर्रफ की 2013 में सत्ता में लौटने की योजना पर उस समय पानी फिर गया था जब उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दे दिया गया था। यह चुनाव शरीफ ने जीता था, जिन्हें मुशर्रफ ने 1999 में अपदस्थ कर दिया था। परवेज मुशर्रफ और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जुलाई 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन के लिए एक साथ आए। जहां दोनों के बीच सीमा पार आतंकवाद और परमाणु मुद्धे और कश्मीर सहित कई मामलों पर चर्चा हुई। एक ओर मुशर्रफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे थे तो दूसरी ओर पीठ में खंजर घोंप रहे थे। ये वार्ता टूट गई क्योंकि, सीमा पार घुसपैठ को समाप्त करने का मुशर्रफ आश्वासन नहीं दे सके। मार्च 2014 में मुशर्रफ को तीन नवंबर 2007 को संविधान निलंबित करने का दोषी ठहराया गया था। दिसंबर 2019 में एक विशेष अदालत ने मुशर्रफ को राजद्रोह के एक मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी।