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Russia-Ukraine War प्रोपेगण्डा वीडियो में उलझा इंडियन मीडिया, देखें यह है रूस-यूक्रेन वार की असली तस्वीर

Russia-Ukraine War Propaganda Machine

चार दिन बाद भी कीव पर रूस कब्जा नहीं कर पाया है! इस सवाल को लेकर दुनियाभर के मिलिट्री एक्सपर्ट असमंजस में हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि पुतिन दो दिन के भीतर कीव को धराशाई करने के बाद जेलेंसकी को घुटनों पर बैठने को मजबूर कर देंगे। अब लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि रूस क्यों नाकाम हो रहा है? भारत में बैठे कुछ मिलिट्री एक्सपर्ट का कहना है कि अमेरिका जेलेंसकी को लगातार लॉजिस्टिक सपोर्ट दे रहा है। राष्ट्रपति जेलेंसकी और उनके आर्मी अफसर उसका सही इस्तेमाल कर रहे हैं।

एक खास बात और, यूक्रेन में भाड़े के सैनिकों की संख्या रेग्युलर आर्मी से कहीं से अधिक है। इस तथ्य को किसी भी भारतीय मीडिया ने उजागर नहीं किया है। भाड़े के सैनिकों में ऐसे विदेशी नागरिकों की संख्या ज्यादा है जो नौकरी और पैसा कमाने के लिए यूक्रेन में हैं। अमेरिका के इशारे पर यूक्रेन ने इस फौज को रूस  के संभावित हमले से निपटने के लिए ही खड़ा किया था। यूक्रेन के ये भाड़े के सैनिक (जिन्हें सभ्य भाषा में मिलिशिया कहते हैं) यूक्रेन की अग्रिम रक्षा पंक्ति है। इन में रूस के सैनिकों के लिए कोई संवेदना, भावना नहीं बल्कि जिंदा रहने के लिए खुद को बचाना और पैसे लिए दुश्मन को काटना है। इंडियन मीडिया इस जंग में चल रहे प्रोपेगंडा वीडियो में ही उलझा हुआ है।

अमेरिका को मालूम है कि पुतिन ने कीव को हासिल करने के लिए अपनी सेना को कुछ भी करने का हुक्म नहीं दिया है। क्यों कि जमीन और आसमान से बारूद बरसाती रूसी सेना आगे बढ़ी तो कीव को हासिल करने मे ंदिन नहीं महज कुछ घण्टे ही लगेंगे। लेकिन उस जंग में हजारों लोग मारे जाएंगे उनमें वो भी शामिल होंगे जिन्होने बिना ट्रेनिंग बंदूकें थाम ली हैं और वो भी मारे जाएंगे जिन्हें यूक्रेन ने मारने-मरने के लिए तैयार किया है। 

एक खास बात और, यूक्रेन में भाड़े के सैनिकों की संख्या रेग्युलर आर्मी से कहीं से अधिक है। इस तथ्य को किसी भी भारतीय मीडिया ने उजागर नहीं किया है। भाड़े के सैनिकों में ऐसे विदेशी नागरिकों की संख्या ज्यादा है जो नौकरी और पैसा कमाने के लिए यूक्रेन में हैं। अमेरिका के इशारे पर यूक्रेन ने इस फौज को रूस  के संभावित हमले से निपटने के लिए ही खड़ा किया था। यूक्रेन के ये भाड़े के सैनिक (जिन्हें सभ्य भाषा में मिलिशिया कहते हैं) यूक्रेन की अग्रिम रक्षा पंक्ति है। इन में रूस के सैनिकों के लिए कोई संवेदना, भावना नहीं बल्कि जिंदा रहने के लिए खुद को बचाना और पैसे लिए दुश्मन को काटना है।

यूक्रेन की यह मिलिशिया रूस की रेग्युलर सेना पर भारी पड़ी है। इन से निपटने के बाद अब यूक्रेन की रेग्युलर आर्मी से रूस की सेना का सामना है। इसके बावजूद मिलिट्री विशेषज्ञों का कहना  है कि रूस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। कीव जल्द ही रूस  के कब्जे में होगा। यह बात अलग है कि कब्जे से पहले ही पुतिन पर नसंहार के आरोप लगाए जाने लगे हैं। 

ऐसी खबरें आ रही हैं कि कीव के युवा सेना को वॉलेंटियर करने लगे हैं। इसका मतलब यह कि रूस की आर्मी के सामने मनोवैज्ञानिक प्रेशर आने लगा है, क्यों कि रूस की फोर्सेस प्रोफेशनल फोर्सेस हैं। रूस और यूक्रेन के नागरिकों की भाषा-बोली भी एक जैसी है। रूसी आर्मी, दुश्मन आर्मी को तो जवाब दे सकती है लेकिन आम नागरिकों पर गोली नहीं चला सकते। इसलिए अभी तक तो रिपेन नदी ही बाधा थी अब कीव के आम नागरिक भी उनकी राह में बाधा बन रहे हैं।

एक खास बात और, मीडिया में जो भी खबरें चल रही हैं वो या पश्चिमी देशों से फीड की जा रही हैं या फिर यूक्रेन के सोशल मीडिया से आरही हैं। रूस की ओर से खबरों पर एक तरह से या तो सेंसर लगा हुआ है या फिर रूस की ओर से आने वाली खबरों को दुनिया के बाकी हिस्सों तक पहुंचने नहीं दिया जा रहा है। रविवार की सुबह भारत के एक निजी चैनल के संवाददाता ने लाइव प्रसारण के दौरान बताया था कि इस समय जितने वीडियो भी इंडियन मीडिया में चल रहे हैं उनमें से 95 प्रतिशत झूठे और एडिटेड हैं। यूक्रेन की ग्राउंड रिपोर्ट देते हुए उस रिपोर्टर ने कहा कि आप लोग स्टूडियो में बैठकर जो बता रहे हैं, वास्तविक स्थिति उससे कहीं अलग है। यूक्रेन में नरसंहार-जनसंहार जैसी स्थिति नहीं है।

इस खबरिया चैनल के इस रिपोर्टर ने ये जानकारी भी दी कि शहरों को नौजवानों को सेना में वालेंटियर बनने के लिए प्रेरित किया जा रहा है और लोग सेना में जा भी रहे हैं। वहीं उसने यह भी कहा कि वो खुद आर्मी में गुरिल्ला ट्रेनर रहा है इसलिए जानता है कि युद्ध के समय छल-बल दोनों से युद्ध किया जाता है। इस युद्ध में भी प्रोपेगण्डा वीडियो खूब बन रहे और चल रहे हैं। बाकी देशों की मीडिया तो कसदन एक रणनीति के तहत इन वीडियोज को प्रसारित-प्रचारित और प्रकाशित कर रहे हैं, किंतु ऐसा लग रहा है कि इंडियन मीडिया इन प्रोपेगंडा मीडिया के मकड़जाल में उलझता जा रहा है।