साफ़ तौर पर यूक्रेन संकट आख़िरकार बांग्लादेश (Bangladesh) को भी असुविधाजनक स्थिति में डाल रहा है। हाल के दिनों में रूसी अधिकारियों ने रूसी जहाजों को अपने बंदरगाहों में प्रवेश करने से रोकने के बांग्लादेश के फ़ैसले के पीछे के कारणों को स्पष्ट करने की मांग करते हुए मास्को में ढाका के राजदूत को विदेश मंत्रालय में तलब किया था। इस रूसी क़दम ने बांग्लादेश को चिंता में डाल दिया है। विदेश मामलों के राज्य मंत्री शहरयार आलम ने मॉस्को अधिकारियों द्वारा राजदूत को बुलाए जाने पर मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए बताया कि राजदूत कमरुल अहसन को एक बैठक में बुलाया गया था, जिसका आधार कुल मिलाकर रूस-बांग्लादेश रिश्ता था। मंत्री की इन टिप्पणियों से निश्चित रूप से ढाका में रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में देश की विदेश नीति के दबाव को लेकर पैदा होने वाली चिंतायें दूर नहीं हो पायी है।
रूस इस बात से नाराज़ है कि बांग्लादेश, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के अनुरूप 69 रूसी जहाजों में से किसी को भी बांग्लादेश के जल क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं देने पर सहमत हो गया है। हाल के सप्ताहों में बांग्लादेश के रूपपुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए आवश्यक कच्चा माल ले जा रहे रूसी जहाज उरसा मेजर को ढाका द्वारा बांग्लादेश में जाने की अनुमति नहीं दी गयी, साफ़ है कि ऐसा अमेरिकी अधिकारियों के दबाव में किया गया। इस क़दम से राष्ट्रपति पुतिन और उनकी सरकार दोनों ही ख़ुश नहीं हैं। इसका परिणाम स्वाभाविक रूप से बांग्लादेश के शीर्ष राजनयिक को मास्को में विदेश मंत्रालय में तलब किया जाना था।
इस बात से शायद ही कोई इन्कार कर सकता है कि जब मॉस्को के अधिकारियों ने बांग्लादेश के दूत को बुलाया था, तो यह दोनों देशों के बीच के रिश्तों में गिरावट का एक इशारा था। रूसी सरकार ने स्पष्ट रूप से मास्को के जहाजों के ख़िलाफ़ बांग्लादेश (Bangladesh) के इस क़दम को पारंपरिक रूप से उस मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों से विचलित होने के रूप में उल्लेख किया है, जो दोनों देशों के बीच 1971 में बंगालियों द्वारा पाकिस्तान से अपने मुक्ति संग्राम की शुरुआत के बाद हुआ था। उस समय बांग्लादेश के लक्ष्य ने तात्कालिकता के साथ-साथ उस भू-राजनीतिक आयाम को भी सामने ला दिया था, जब भारत के साथ सोवियत संघ भी वहां के लोगों की मुक्ति के लक्ष्यों को मान्यता दी थी और बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों की ज़ोर-शोर से निंदा की थी।
Bangladesh 🇧🇩 has denied entry to a Russian 🇷🇺 ship, URSA MAJOR, carrying parts for the new Rooppur nuclear power plant as it is sanctioned by US 🇺🇸.
She is linked to Russian shipping company SC South, which delivers cargo for Russian Ministry of Defense.https://t.co/yOVWVYlvvY pic.twitter.com/6Nliu0pfRC— Maritime Security News (@marsec_osn) December 30, 2022
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हालांकि, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की अगुवाई में भारत सरकार ने बांग्लादेश युद्ध के नौ उन महीनों में बांग्लादेश की रक्षा में एक राजनीतिक और कूटनीतिक आक्रमकता दिखायी थी और सोवियत संघ अगस्त 1971 में भारत के साथ दोस्ती और सहयोग पर एक समझौते पर पहुंचा था। इसे एक ऐसे क़दम के रूप में देखा गया था,जो अन्य राज्यों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका (जो तब पाकिस्तान को अपने चीन की तरफ़ जाने वाले एक वाहक के रूप में उपयोग करने में व्यस्त था) के किसी भी क़दम को विफल कर दे।इसी का परिणाम था दिल्ली-मास्को सहयोग। यह समझौता समय की कसौटी पर खरा उतरा और यहां तक कि जब पाकिस्तानी सेना संयुक्त भारत-बांग्लादेश सैन्य कमान द्वारा युद्ध के मैदान पर हमले का सामना कर रही थी, तो सोवियत संघ, ब्रेझनेव-कोश्यिन-पोडगॉर्नी तिकड़ी के नेतृत्व में युद्धविराम के लिए अमेरिकी प्रयासों को रोकने के लिए रास्ते से हट गया था। इसका मक़सद एक संप्रभु बांग्लादेश के उद्भव को रोकने को लेकर संयुक्त राष्ट्र की आक्रमकता को कम करना था।
On request of #Bangabandhu’s Govt, in April 1972, the 12th special company of #USSR #Navy was dispatched to #Bangladesh to perform mine and shipwreck clearance at Chattogram Port. #Soviet navy sailors lived up to their task: #Russian FM Sergey Lavrov on #Mujib100 & #Bangladesh. pic.twitter.com/LRyhiIQa2Q
— Shah Ali Farhad (@shah_farhad) March 19, 2021
बांग्लादेश (Bangladesh) के लोग अपने लक्ष्यों को हासिल करने में सोवियत समर्थन को कृतज्ञता के साथ याद करते रहे हैं, जिन्होंने युद्ध के बाद चटगांव बंदरगाह सहित कई अन्य बंदरगाहों को हुए युद्ध के दौरान जमा हो चुके मलबों को साफ़ करने के लिए सोवियत नौसेना द्वारा बड़े पैमाने पर चलाये गये अभियान का गवाह रहे हैं। इसके अलावा, सोवियत संघ, बांग्लादेश (Bangladesh) के संस्थापक-प्रधान मंत्री शेख मुजीबुर्रहमान के अनुरोध पर बांग्लादेश को युद्ध के क़हर से उबरने में सक्षम तकनीकी और आर्थिक सहायता के कई अन्य रूपों के साथ आगे आया था। रूपपुर परमाणु संयंत्र एक ऐसा क्षेत्र था, जहां इस नए देश को सोवियत समर्थन की उम्मीद थी और उसे प्राप्त भी हुआ था।
मास्को-ढाका संबंधों की यह विरासत आज ख़तरे में नहीं है,तो तनाव में ज़रूर है। 1990 के दशक की शुरुआत में सोवियत संघ के टूटने के बावजूद बांग्लादेश ने रूसी संघ के साथ अपने पारंपरिक राजनयिक और आर्थिक संबंधों को बनाए रखा था। बंगाली छात्रों ने मास्को में पढ़ाई जारी रखी, जबकि बांग्लादेश के व्यापारिक समुदाय के लिए रूस के साथ जुड़ने के नये दरवाजे खुल गये थे।
Bangladesh’s ambassador in Moscow was summoned to the Russian Foreign Ministry after “several dozen” Russian vessels were banned from calling at ports in Bangladesh, including at least one ship carrying equipment for the Rooppur #nuclear power plant https://t.co/hZ23UPg0u4 pic.twitter.com/zl9gcyLD3H
— World Nuclear News (@W_Nuclear_News) February 23, 2023
दोनों देशों के बीच के संबंधों की ऐसी पृष्ठभूमि के के बावजूद रूस के विदेश मंत्रालय द्वारा ढाका के राजदूत को तलब करना दोनों देशों के बीच संबंधों में आये अचानक और अवांछित गिरावट को ही दर्शाता है। भारत के विपरीत बांग्लादेश (Bangladesh) ख़ुद को एक कमज़ोर स्थिति में पाता है,जबकि भारत अपने वैश्विक दबदबे के ज़रिए अपने हितों की रक्षा में एक मज़बूत रुख अपनाया है। यहां तक कि यूक्रेन संघर्ष के बावजूद दिल्ली के इस रूख़ पर पश्चिम देशों की ओर से असुविधाजनक दबाव डाला जाता रहा है,लेकिन भारत अपने हितों की रक्षा के लिए अपने रुख़ पर डटा रहा है।
शेख हसीना सरकार द्वारा हाल के वर्षों में एक संतुलित विदेश नीति संचालित किये जाने के लिए उठाये गये क़दमों को पश्चिम के देशों के दबाव में इन प्रतिबंधों की व्यवस्था के साथ लाकर दु:खद रूप से कमज़ोर किया जा रहा है। निहितार्थ स्पष्ट हैं: हालांकि ढाका अपने राजदूत को विदेश मंत्रालय में बुलाये जाने से उत्पन्न स्थिति पर एक अलग मोड़ देना चाहेगा।