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करगिल का खलनायक पाकिस्तानी जनरल परवेज मुशर्रफ अभी जिंदा है! पेशावर कोर्ट ने दी थी फांसी के बाद 3 दिन तक लटकाने की सजा

Dictator Gen Pervez Musharraf

कारगिल का खलनायक सैकड़ों जवानों की शहादत का जिम्मेदार, भारत के सियाचिन पर कब्जे की नापाक मंशा रखने वाले पाकिस्तानी डिक्टेटर जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान से हजारों किलोमीटर दूर दुबई में दम तोड़ दिया है-अभी ऐसी खबरें मिल रही थीं  लेकिन परवेज मुशर्रफ के घरवालों ने कहा है वो जिंदा है लेकिन हालात वेहद नाजुक है।  जनरल परवेज मुशर्रफ के जुर्म भारत के खिलाफ ही नहीं अपने मुल्क पाकिस्तान के खिलाफ भी बड़े संगीन थे। पेशावर की स्पेशल कोर्ट के जज वकार अहमद सेठ ने परवेज मुशर्रफ को फांसी पर लटकाने का हुक्म जारी किया था।

देशद्रोह के मुकदमे में परवेज मुशर्रफ को सजा सुनाने के लिए एक जुडिशियल काउंसिल बनी थी। वकार अहम सेठ चूंकि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे। इसलिए वो खुद इस काउंसिल को हेड कर रहे थे। जस्टिस वकार अहमद सेठ ने परवेज मुशर्ऱफ के जुर्मों का फैसला करते हुए लिखा था कि अगर फांसी दिए जाने से पहले ही मुशर्रफ की मौत हो जाती है तो भी मुशर्रफ की लाश को तीन दिन तक सार्वजनिक तौर पर लटकाया जाए।

पाकिस्तान के मजबूत सैन्य शासक रहे मुशर्रफ के खिलाफ फांसी का फैसला देना साहसिक और ऐतिहासिक था। मगर वो सेना में हमेशा लोकप्रिय रहा। सेना के तत्कालीन सभी बड़े अफसर कभी उनके जूनियर रह चुके थे। सेना कभी नहीं चाहती थी कि मुशर्रफ को ऐसी दर्दनाक सजा मिले।

उस समय की इमरान खान की सरकार खुद मुशर्रफ को लगातार बचाती रही। लिहाजा जस्टिस वकार अहमद सेठ के फैसले को अपेक्स कोर्ट में खुद इमरान सरकार ने चैलेंज कर दिया। अदालतों के रुख को देखते हुए परवेज मुशर्रफ को अहसास हो गया था कि पाकिस्तान में जिंदा रहना अब मुश्किल है। सो इमरान और सेना के अफसरों से मिलीभगत कर मुशर्रफ ने पाकिस्तान छोड़ अपना ठिकाना कभी लंदन तो कभी दुबई रखा। आखिर में दुबई में ही स्वनिर्वसन में रहना मुनासिब समझा।

परवेज मुशर्रफ के बारे में खबरें आ रही हैं कि वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे और गुरुवार से वेंटिलेटर पर थे। उनको दिल और अन्य बीमारियों के चलते दुबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह 2001से 2008तक पाकिस्तान (Pakistan) के राष्ट्रपति रहे थे। इसके अलावा वह देश के आर्मी चीफ भी रहे। भारत के साथ कारगिल की जंग के लिए मुशर्रफ को ही खलनायत ठहराया जाता है। तब परवेज मुशर्रफ को लग रहा था कि कारगिल में घुसपैठ करके पाकिस्तान को भारत पर रणनीतिक बढ़त मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया था।

करगिल में मुंह की खाने के बाद मुशर्रफ ने लम्बे समय तक माना ही नहीं पाकिस्तान की ओर से मारे गए सैनिक उसकी अपनी सेना के सिपाही थे। सैकड़ों पाकिस्तानियों के शवों को इंडियन आर्मी ने उनके मजहब की परंपरा के अनुसार दफ्न किया। करगिल हार के एक लम्बा अर्सा बाद पाकिस्तानी सरकार और सेना ने माना जंग में मारे गए पाक सेना के सिपाही ही थे। करगिल की जंग के बाद मुशर्रफ औऱ पाकिस्तान सरकार की दुनिया भर में बहुत बेइज्जति हुई थी। भारत को भी इस थोपे हुए युद्ध में भारी जन-धन की हानि उठानी पड़ी थी। लेकिन पाकिस्तानियों को मार-कर, खदेड़ कर भारतीय सेना ने सियाचिन के जर्रे-जर्रे पर अपना कब्जा बरकरार रखा।