रूस लगातार यूक्रेन पर हमले कर रहा है और अब तक यूक्रेनी सिपाहियों को लगता था कि अमेरिका-नाटो उनकी मदद के लिए आएंगे। यह बात यूक्रेन को बहुत लेट समझ आई की पश्चिमी देश उसे जुमलों में फंसा रहे थे और उनकी यही चाल ही थी कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं हुआ तो वो इस तरह षड्यंत्र रचेंगे कि दोनों देशों के बीच हमले शुरू हो जाए और अंत में हुआ भी यही। आज आलम यह है कि यूक्रेन की मदद के लिए पश्चिमी देश सिर्फ बातें कर रहे हैं लेकिन सामने कोई नहीं खड़ा है और रूस पर एक के बाद एक कड़े प्रतिबंध लगाकर उसे पीछे ले जाना चाहते हैं। यूक्रेन को यह बात पहले ही समझ जानी चाहिए थी कि उसके लिए हमेशा रूस खड़ा रहेगा ना कि पश्चिमी देश। लेकिन, अब बहुत देर हो चुकी है और रूस मानने वाला नहीं है। इस बीच जेलेंस्की को यह तो अच्छे समझ आ गया है कि नाटो और अमेरिका उनकी कोई मदद नहीं करने वाले। जिसके बाद उन्होंने नाटो की समस्यता लेने से मना कर दिया है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दोमिर जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन अब NATO की सदस्यता नहीं लेगा। उन्होंने यह भी कहा- वे दो अलग-अलग रूसी समर्थक क्षेत्रों (डोनेट्स्क और लुहांस्क) की स्थिति पर 'समझौता' करने के लिए तैयार हैं, जिसे राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने 24फरवरी को हमला शुरू करने से ठीक पहले आजाद घोषित किया था और मान्यता दी थी। ये वही मुद्दे हैं, जिन्हें रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की जड़ माना जा रहा है। रूस को शांत करने के उद्देश्य से उन्होंने ये फैसला लिया है।
फिलहाल जेलेंस्की ने कहा कि NATO यूक्रेन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। गठबंधन (NATO) विवादास्पद चीजों और रूस के साथ टकराव से डरता है। NATO की सदस्यता का जिक्र करते हुए जेलेंस्की ने कहा कि वह ऐसे देश का राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते, जो घुटनों के बल कुछ मांग रहा हो।
इस बीच रूस का कहना है कि वह नहीं चाहता कि पड़ोसी यूक्रेन NATO में शामिल हो। रूस नाटो के विस्तार को एक खतरे के रूप में देखता है, क्योंकि वह नहीं चाहता कि इन पड़ोसी देशों में नाटो के चलते उसे कोई परेशानी हो। खैर कोई भी देश होगा वो यही चाहेगा कि उसके पड़ोसी देश के चलते उसे कोई परेशानी न हो। यूक्रेन को तो वैसे ही यूक्रेन कई सारी सुविधाएं दे रखी है। यहां पर हथियार बनाने से लेकर गैस पाइपलाइन का ब्याज तक रूस देता रहा है लेकिन यूक्रेन को नाटो का भूत सवार था जो अब उतर गया है।