आज नवरात्रि का तीसरा दिन हैं। नवरात्र का तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती हैं, चूंकि आज के दिन तृतीया और चतुर्थी तिथि दोनों हैं। जिसके चलते आज मां चंद्रघंटा और चतुर्थ नवरात्रि पर मां कूष्मांडा की पूजा की जाएगी। मां को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि-विधान से मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना करें। चलिए आपको बताते हैं कि पूजा विधि, मंत्र, महत्व और भोग के बारे में-
माता चंद्रघंटा का स्वरुप– चंद्रघंटा के मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। अपने वाहन सिंह पर सवार मां का यह स्वरुप युद्ध और दुष्टों का नाश करने के लिए तत्पर रहता है। चंद्रघंटा को स्वर की देवी भी कहा जाता है।
माता कूष्मांडा का स्वरुप– सिंह की सवारी करने वाली आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति मां कूष्मांडा की 8 भुजाओं के कारण उन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है। 8 भुजाओं में कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा व माला लिए हुए माता भक्तों को ऋद्धि-सिद्धि, सुख, समृद्धि और रोग मुक्त जीवन प्रदान करती हैं।
मां चंद्रघंटा की ऐसे करें पूजा– मां की पूजा करने के लिए सबसे पहले पूजा स्थान पर देवी की मूर्ति की स्थापना करें। इसके बाद इन्हें गंगा जल से स्नान कराएं। मां को सिंदूर, अक्षत्, गंध, धूप, पुष्प अर्पित करें। पूजा के लिए लाल रंग के फूल चढ़ाएं। इसके साथ ही फल में लाल सेब चढ़ाएं। भोग चढ़ाने के दौरान और मंत्र पढ़ते वक्त मंदिर की घंटी जरूर बजाएं, क्योंकि पूजा में घंटे का बहुत महत्व है। मान्यता है कि घंटे की ध्वनि से मां चंद्रघंटा अपने भक्तों पर हमेशा अपनी कृपा बरसाती हैं। वैदिक और संप्तशती मंत्रों का जाप करें।
मां चंद्रघंटा मंत्रः
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता.
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता.
मां कूष्मांडा मंत्रछथ
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।