तालिबान को मजबूत करने की गलती अब चीन की समझ में आने लगी है। अफगानिस्तान पर कब्जे से पहले तालिबान को परोक्ष तौर पर स्वीकार करने वाला पहला देश चीन ही था। चीन ने ही तालिबान के नेताओं की मेजबानी की और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने की कोशिश की थी। चीन की यही कोशिशें अब उसके परेशानी का सबब बन गई हैं।
चीन को भी मानना पड़ा है कि अफगानिस्तान में अलकायदा और आईएसआईएस समेत तमाम आतंकी गिरोह मजबूत हुए हैं। केवल इतना ही नहीं ये आतंकी गिरोह पहले से ज्यादा घातक हो चुके हैं। सबसे चिंता का विषय यह है कि इन आतंकियों के गिरोह के नाम भले ही अलग हों लेकिन इनमें काम करने वाले आतंकी जो कभी तालिबान में थे वही अब आईएसआईएस और अलकायदा में हैं।
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या और ज्यादा हिंसक दिखाने की प्रतिस्पर्धा में आतंकी एक गिरोह से दूसरे गिरोह में शामिल होते और निकलते रहते हैं। कुछ आतंकी तो खलीफा या अमीर बनने की लालसा मे खुद अपने नए-नए आतंकी गिरोह बना रहे हैं। ये नए गिरोह चीन के लिए दिक्कतें खडी करने वाले हैं। इन आतंकी गिरोहों को शिनजियांग में शरण और समर्थन दोनों मिल रहे हैं। चीन की कम्यिस्ट सरकार को चिंता सताने लगी है कि कहीं ये आतंकी गिरोह शिनजियांग को आजाद न करा लें।
चीनी सहायक विदेश मंत्री वू जियानझाओ ने कहा कि 2021 के दौरान आतंकी वारदातों मे बढ़ोतरी चीन के लिए चिंता का विषय है। अफगानिस्तान में सक्रिए अलकायदा और आईएसआईएस के साथ ईटीआईएम (ईस्ट तुर्कमेनिस्तान इंडिपेंडेंस मूवमेंट) के आतंकी गिरोह लगातार अपना दायरा बढ़ा रहे हैं। ये आतंकी गिरोह वारदात कर रहे हैं और खूंखार होते जा रहे हैं।
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मंत्री वू जियानझाओ ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सभी देशों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए। समस्या यह है कि चीन जब खुद आतंकवाद से प्रभावित होता है तो वो आतंकवाद पर सामूहिक प्रहारकी बात करता है लेकिन जब भारत या किसी अन्य देश की बात आती है तो चीन अजहर मसूद जैसे आतंकियों का बचाव सिर्फ इसलिए करने लगता है क्यों कि वो पाकिस्तानी आतंकी है। अजहर मसूद जैसे तमाम आतंकियों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी न केवल शरण और सुरक्षा देती है बल्कि उन्हें भारत में आतंक फैलाने के लिए हथियार तथा मिलिट्री ट्रेनिंग भी दे रही है।
चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस और चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के तत्वावधान में आयोजित इंटरनेशनल सेमिनार में चीन के सहायक विदेश मंत्री वू जियानझाओ से जब यह पूछा गया कि क्या वो अपने पड़ोस में पनप रहे पाकिस्तानी आतंकियों पर भी इसी तरह की कार्रवाई का समर्थन करता है तो उन्होंने मुद्दे से हटते हुए कहा कि हमें इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। हमें संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करने की आवश्यकता है। हमें विकासशील देशों में क्षमता निर्माण को मजबूत करने की आवश्यकता है। इसके अलावा हमें नए आतंकवादी खतरों और विचारधाराओं से निपटने की जरूरत है।"
चीन के न्यौते पर इस सेमिनार में दुनियाभर की आतंकवाद विरोधी एजेंसियों के अधिकारियों के अलावा रूस, अमेरिका,इंग्लैण्ड, फ्रांस, अफगानिस्तान, मलेशिया, कजाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण अफ्रीका सहित 17 देशों के आतंकवाद विरोधी क्षेत्र के विशेषज्ञ और विद्वान ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। मिस्र और ब्राजील भी इंटरनेट के माध्यम से इस सेमिनार में शामिल रहे।