आज लोहड़ी का पावन त्योहार है। हर साल देशभर में लोहड़ी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। ये त्योहार नाच गाने से सजा और खुशियों से भरा होता है।लोहड़ी के त्योहार में आग का अलाव जलाने का खास महत्व होता है इसमें तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी, मूंगफली को हर कोई चढ़ाता है। लोहड़ी का त्योहार नवविवाहित जोड़े के लिए भी बेहद खास होता है। इस दिन घर की नई बहु को फिर से दुल्हन की तरह तैयार किया जाता है। इसके बाद वह अपने पूरे परिवार के साथ लोहड़ी के पर्व में शामिल होती हैं। साथ ही लोहड़ी की परिक्रमा करके बड़े-बुजुर्गों से अपने शादीशुदा जीवन के खुशहाल बने रहने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
पूजन विधि और पूजा सामग्री
लोहड़ी का पर्व देश में कई जगहों पर मनाया जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण, आदिशक्ति और अग्निदेव की विशेषतौर पर पूजा की जाती है। लोहड़ी के दिन घर में पश्चिम दिशा में आदिशक्ति की प्रतिमा या फिर चित्र स्थापित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर और बेलपत्र चढ़ाएं। भोग में रेवड़ी और तिल के लड्डू चढ़ाएं। इसके बाद सूखा नारियल लेकर उसमें कपूर डालें। अग्नि जलाकार उसमें तिल का लड्डू, मक्का और मूंगफली अर्पित करें फिर इसकी 7 या 11 बार परिक्रमा करें। मान्यता है कि ऐसा करने से महादेवी की कृपा जातक पर पूरे वर्ष बनी रहती है। साथ ही कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती।
माता सती की कथा
लोहड़ी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा देवी सती से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें बिना बुलाए माता सती पहुंची तो दक्ष ने भगवान शिव का काफी अपमान किया, जिसके चलते देवी सती ने क्रोधित हो कर आत्मदाह कर लिया। देवी सती के हवन कुंड के हवाले करने पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने प्रजापति दक्ष को दंड दिया। जिसके बाद दक्ष ने इस भूल को सुधारने के लिए माफी मांगी। वहीं, जब देवी सती ने माता पार्वती का जन्म लिया तो दक्ष ने देवी पार्वती को ससुराल में लोहड़ी के अवसर पर उपहार भेजकर भूल सुधारने की कोशिश की।
दुल्ला भट्टी की कहानी
लोहड़ी के दिन आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है। लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है। मान्यता है कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स पंजाब में रहता था। उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। तब से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाने की परंपरा चली आ रही है।