यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादोमोर जेलेंसकी ने पुतिन के सामने सरैंडर के संकेत दे दिए हैं। जेलेंसकी ने क कहा है कि कोई तीसरा तटस्थ देश हमें सुरक्षा की गारंटी देने को तैयार हो तो वो यूक्रेन के लिए रूस से समझौता वार्ता करने के तैयार हैं। अपने सहयोगियों से चर्चा के दौरान जेलेंसकी ने कहा कि नाटो और अमेरिका ने हमें अकेला छोड़ दिया। नाटो के सभी सदस्यों से एक-एक कर सीधे बात की है लेकिन सभी ने हमें अकेला छोड़ दिया है। यह जानकारी रूसी वेबसाइट आरटी.डॉट काम ने दी है।
आरटी.डॉट कॉम ने ही कल दिमित्री पेस्कोव के माध्यम से कहा था कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन जेलेंसकी से बातचीत करने और हमले रोकने को तैयार हैं, बशर्ते जेलेंसकी तटस्थ देश बने रहने और इलाके में हथियारों की तैनाती न करने पर सहमत हों तो। उस समय जेलेंसकी ने कोई जवाब नहीं दिया। अब जेलेंसकी कह रहे हैं कि वो अब नाटो में नहीं हैं। वो तटस्थ देश रहेंगे। वो रूसी राष्ट्रपति से वार्ता को तैयार हैं। मगर हमें सुरक्षा की गारंटी चाहिए। इससे पहले रूस की सेना ने कीव पर लगभग कब्जा कर लिया है। केजीबी एजेंट कीव की तलाश कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि पुतिन अब जेलेंसकी को सरेंडर का मौका नहीं देंगे वो जेलेंसकी को गिरफ्तार करेंगे और युद्धबंदी का दर्जा देकर अगली कार्रवाई करेंगे।
यूक्रेन पर रूस ने अचानक हमला नहीं किया है। पिछले कई महीनों से यूक्रेन पर हमलों की तैयारियां हो रही थीं। बेलारूस और डोनबास सीमा पर चल रहा युद्धाभ्यास से रूस ने अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। दुनिया भर की खुफिया एजेंसियों ने जानकारी दे दी थी कि रूस यूक्रेन पर हमला करने वाला है। अमेरिका और नाटो को भी जानकारी थी। इतना सब कुछ होने के बावजूद अमेरिका ने यूक्रेन को डिप्लोमैटिक एफर्ट्स के जरिए युद्ध टालने को प्रेरित करने के बजाए लगातार उकसाया और मदद का आश्वासन दिया। रूस ने हमले से पहले अमेरिका और नाटो की तैयारियों को खूब अच्छी तरह से परखा और सुनियोजित ढंग से हमला कर दिया।
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रूस के इस हमले का परिणाम पहले से तय था। वही हो रहा है। दो दिन के लगातार हमलों से यूक्रेन पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। रूसी सेनाएं कीव में घुस चुकी हैं। कीव में यूक्रेन की सेना मुकाबला करने की कोशिश कर रही है। मगर कितनी देर? यूक्रेन की नींव रूस ने ही मजबूत की है। रूसी सेनाओं को कीव की कमजोरियां मालूम हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन चाहते तो अब तक जेलेंसकी को गिरफ्तार किया जा सकता था या हत्या की जा सकती थी। अमेरिका और इंग्लैण्ड सहित सभी पश्चिमी देशों को जानकारी थी कि जेलेंसकी को रूसी सैनिक गिरफ्तार कर सकते हैं। इसके बावजूद सैन्य सहायता पहुंचाने के बाद जेलेंसकी को संदेश दिया गया कि वो यूक्रेन छोड़ने अमेरिका या इंग्लैण्ड में शरण में ले लें। यह कितना हास्यास्पद है कि जिस देश की वायुसीमा पर रूस ने कब्जा कर लिया हो और सारी एयरफील्ड्स बर्बाद की जा चुकी हों उस देश के नेता से कहा जा रहा है कि अपने देश और लोगों को छोड़ कर भाग निकलो हम बचा लेंगे।
यह तो जेलेंसकी मजबूरी है या देशभक्ति की जज्बा या जिद्द है कि वो मैदान में डटे हुए हैं। वहीं पुतिन की भी तारीफ करनी पड़ेगी कि वो कीव पर दबाव धीरे-धीरे बढ़ा रहे हैं। अगर पुतिन ने चाहा होता तो कीव को कभी का ध्वस्त कर दिया होता है। पुतिन का मकसद कीव को बर्बाद करना नहीं बल्कि कीव पर कब्जा कर जेलेंसकी को अपदस्थ करना और वहां क्रेमलिन समर्थक सरकार को स्थापित कर अमेरिका और नाटो को नीचा दिखाना है।
रूस-यूक्रेन क्राइसिस में एक बात खुल कर सामने आ गई है कि इराक, सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान और वियतनाम में कड़वा स्वाद चखने वाले अमेरिका ने यूक्रेन की जमीन पर कदम न रखने की कसम खा ली है। खास बात यह कि अमेरिकी फौजें तो यूक्रेन की जमीन पर उतर ही नहीं रही हैं साथ ही बाकी पश्चिमी और यूरोपीय देश भी सिर्फ गाल बजा रहे हैं। सेंक्शन से रूस को नुकसान होगा लेकिन तब तक रूस अपना काम कर चुका होगा। पुतिन ने साफ कर दिया है और अपने समर्थकों को बता दिया है कि वो कहते हैं वो करते हैं। उनके इरादे अटल हैं। यहां यह बात भी दुनिया के सामने साफ हो गई है कि अमेरिका या पश्चिमी देशों के कोरे बयानों के सहारे नहीं बल्कि अपनी बाजुओं की मजबूती के सहारे ही जंग के मैदान में उतरना चाहिए।