चीन पूर्वोत्तर और लद्दाख में फिर कभी कोई दुस्साहस न कर सके इसलिए एलएसी के पास भारतीय वायु सेना 6 नए एयरफील्ड विकसित कर रही है। इस समय चीनी सीमा के निकट एक दर्जन एयरफील्ड सक्रिए हैं। चीन की हरकतों और चालो को देखते हुए कम से कम 6 नये एयरफील्ड की जरूरत एयरफोर्स ने महसूस की थी। जिन पर तुरंत काम शुरू हो चुका है।
एलएसी पर जिस तेजी से चीन वहां अपनी वायुसेना के नेटवर्क का विस्तार कर रहा है, वो भारत के लिए चिंताजनक है। ऐसे में इस चुनौती से निपटने के लिए भारत ने भी उपाय शुरू कर दिए हैं। सीमा से कुछ दूर के इलाकों में चीन की तर्ज पर नए एयरफील्ड बनाने, पुराने एयरफील्ड को अपग्रेड करने और नागरिक हवाईअड्डों के इस्तेमाल की सभी संभावनाओं पर कार्य किया जा रहा है। हालांकि, वायुसेना की तरफ से नए एयरफील्ड की संख्या का खुलासा नहीं किया गया है।
वायुसेना की रणनीति एयरफील्ड विकसित कर चीनी सेना को क्षति पहुंचाने की क्षमता हासिल करने की होगी। इसमें चीन के प्रहार को बिना ज्यादा क्षति के सहना और जवाबी हमले करना शामिल है। इसके लिए सीमाई क्षेत्रों से दूर एयरफील्ड में मौजूद बलों का इस्तेमाल किया जाएगा।
वायुसेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 24एयरफील्ड को अक्तूबर, 2024तक आधुनिक बनाने की योजना पहले से ही चल रही है। इनमें से ज्यादातर एयरफील्ड चीन और पाकिस्तान की सीमाओं के निकट हैं। नौसेना के नौ और तटरक्षक बल व एविएशन रिसर्च सेंटर के दो-दो एयरफील्ड को भी विकसित कर अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया जा रहा है।
भारत-चीन के बीच 3,488किलोमीटर लंबी सीमा के नजदीकी क्षेत्रों में चीनी सेना के पास 18-20ऐसी एयरफील्ड हैं जिन्हें किसी भी वक्त सक्रिए किया जा सकता है। । कुछ एयरफील्ड एकदम नए बनाए गए हैं तो कुछ को विकसित किया गया है। इसके अलावा चीन ने कुछ नागरिक हवाईअड्डों का वायुसेना के लिए भी इस्तेमाल शुरू किया गया है। वहीं, भारत के पास यह संख्या अभी कम है, लेकिन कोशिश यह है कि इसे चीन के बराबर या उससे ज्यादा किया जाए।
सरकार का फोकस खासतौर पर पूर्वोत्तर के क्षेत्र पर है, जहां छोटे एयरफील्ड को विस्तार देकर उन्हें लड़ाकू विमानों के इस्तेमाल योग्य बनाना है। इन एयरफील्ड को न सिर्फ विमानों के उड़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, बल्कि उन्हें सेना और सैन्य उपकरणों के लिए बैकअप के रूप में भी इस्तेमाल किया जाएगा।
ध्यान रहे, 2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच गलवान घाटी में संघर्ष हुआ था। तब से कई स्थानों पर अभी भी दोनों देशों की सेनाएं मोर्चे पर डटी हुई हैं। हालांकि, पेंगोग समेत कई इलाकों से सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। मगर, सैन्य कमांडर स्तर की 15 दौर की वार्ताओं के बाद भी चीन कुछ स्थानों से अभी तक पीछे नहीं हटा है। एक तरफ से चीन हटता है तो दूसरी जगह निर्माण या सेना की तैनाती कर देता है। कहने का मतलब यह है कि टकराव पूरी तरह अभी तक खत्म नहीं हुआ है।