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न्यूक्लियर विस्फोट क्यों जरूरी? Ajit Doval का वो भाषण जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं- आप भी पढ़ें कुछ रोमांचक अंश

हम गुलामों के भी गुलाम कैसे बने?

भारत के न्यूक्लियर टेस्ट को 24 साल बीत चुके हैं। जबसे भारत ने यह टेस्ट किया है, तभी से हर दिन दुनिया में भारत की छवि बदलती गई है। यह बात अलग है कि 1998 से 2014 तक यह गति बहुत शिथिल थी, अब कुछ तेज हुई है। न्यूक्लियर टेस्ट पर अटल जी ने अपने शब्दों में इसकी जरूरत बताई थी। और भी लोगों ने बहुत कुछ कहा है लेकिन भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का इस बारे में क्या कहना है? इसको शायद कम लोग ही जानते हैं। भारत के न्यूक्लियर टेस्ट की आवश्यकता पर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने एक भाषण दिया था। उसी भाषण के अंश कई पोर्टल और वेबसाइट्स पर प्रकाशित किए गए हैं। ऐसे ही एक पोर्टल पर प्रकाशित अजित डोभाल के उसी भाषण के अंशः

‘भारत के साथ धर्म था, भारत के साथ सत्य था भारत के साथ न्याय था, लेकिन भारत के साथ एक चीज नहीं थी, वो थी शक्ति!’ इसी शक्ति के अभाव में हिंदुकुश से सिकुड़ता हुआ भारत आज यहां तक पहुंच गया है। एक बात और, ‘विदेशी हमलावरों आक्रांताओं ने क्या किया या नहीं किया वो सब ठीक लेकिन इसके साथ कड़वी सच्चाई यह भी है कि भारत के लोगों ने भारत का साथ नहीं दिया।’

अजित डोभाल कहते हैं, ‘मैं आपको सत्य का दूसरा सिद्धांत बताता हूं। मुझे नहीं मालूम कि यह सिद्धांत मुझे बताना चाहिए या नहीं। मुझे यह भी नहीं मालूम कि यह सही है या नहीं। लेकिन क्योंकि मैं इसको मानता हूं और मुझे मालूम है कि इसके बारे में कई लोग, जिनके उच्च नैतिक आदर्श हैं, शायद न भी समझते हों। लेकिन यह मेरा विचार है। चाहें तो इस पर विचार करें। सब नहीं तो कुछ न कुछ लोगों को इस विचार से सोचने की और कुछ करने की प्रेरणा मिलेगी।‘

‘इतिहास दुनिया की सबसे बड़ी अदालत है। इससे बड़ी अदालत कोई नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ, हाई कोर्ट में क्या हुआ, लड़ाई के मैदान में क्या हुआ, इलेक्शन्स में क्या हुआ, ये सब बातें आती हैं और चली जाती हैं। और बाद में रह जाता है केवल इतिहास।

'…और इतिहास का निर्णय हमेशा उसके पक्ष में गया है, जो शक्तिशाली था जो विजेता था। इसने कभी उसका साथ नहीं दिया, जो न्याय के साथ था। जो सही था। अगर ऐसा होता तो दिल्ली में बाबर रोड है, लेकिन राणा सांगा रोड नहीं है। क्योंकि बाबर आया, विजयी हुआ और राणा सांगा हार गया।‘

‘पोखरण-2 कोई आत्मश्लाघा के लिए नहीं था। कोई पुरुषार्थ के प्रकटीकरण के लिए नहीं था। लेकिन हमारी नीति है, और मैं समझता हूं कि यह देश की नीति है कि न्यूनतम अवरोध (डेटरेंट) होना चाहिए। वह विश्वसनीय भी होना चाहिए। इसलिए परीक्षण का फैसला किया गया।

हमने शक्ति को त्यागा, इतिहास ने हमें सजा दी

भारत की हिंदूशाही किंगडम अफगानिस्तान सिकुड़ती सिकुड़ती यहां तक कैसे आ पहुंची। हमने किसी पर आक्रमण नहीं किया। हमने किसी के जीवन मूल्यों को नष्ट नहीं किया। हमने किसी के धर्मस्थलों और धर्मग्रंथों को नष्ट नहीं किया। शायद हम न्यायसंगत थे। शायद सत्य भी हमारे पक्ष में था। लेकिन शक्ति हमारे साथ नहीं थी। इसलिए इतिहास ने हमें उसकी सजा दी।‘

‘इतिहास ने हमेशा उन्हें सजा दी जिन्होंने विचारों को कर्म से और न्याय को शक्ति से अधिक महत्व दिया। अब मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उसकी तिलांजलि कर देनी चाहिए। यह नहीं है कि न्याय का अपना महत्व नहीं है। लेकिन हितों का टकराव हो, तो शक्तिशाली बनना ज्यादा आवश्यक है। भारत धर्म गुरु भी तभी बनेगा, जब शक्तिशाली भारत का निर्माण होगा।

'भारत गुलामों का भी गुलाम कैसे बनकर अत्याचार सहता रहा'

जिन लोगों ने भारत के ऊपर आक्रमण किया, भारत के ऊपर राज किया, इस प्रकार से राज किया कि जाते वक्त अपने गुलामों से कह दिया कि तुम राज करो, हम तो जा रहे हैं। तो यहां पर गुलाम वंश भी बन गया। हमारे ऊपर आक्रांताओं के गुलामों ने शासन किया।  अगर हम लड़ाई के उसूलों से देखें तो किसी भी राष्ट्र कि कॉम्प्रिहेन्सिव स्टेट पावर होती है। मतलब किन चीजों से वह लड़ाई लड़ता है। जिसको हम कहते हैं कि यह शक्तिशाली है और यह शक्तिशाली नहीं है। क्या घटक होते हैं उसके?

‘भारत की जनशक्ति, धनशक्ति, ज्ञान की शक्ति, टेक्नॉलजी की शक्तिके सामने, आक्रांताओँ की शक्ति शून्य से भी हजार गुना कम थी। उनकी शक्ति को अगर हम देखें तो शायद एक और हजार का अनुपात नहीं था। लेकिन इसके बाद भी हम वो नहीं कर पाए क्या कारण है कि इसके बावजूद इतिहास ने हमारा साथ नहीं दिया।'

'क्या कारण है कि कश्मीर में, लोग बाहर से आकर हमारी सीमा लांघ रहे हैं। घुसपैठिए हमारे यहां आते हैं। जबकि पूरा का पूरा कश्मीर भारत का हिस्सा है। अभिन्न भाग है। कानून के मुताबिक वहां के राजा ने हस्ताक्षर किए हैं।‘

आजादी के बाद की स्थिति देखिए- ‘क्या कारण है कि करोड़ों की संख्या में बांग्लादेशी भारत में आते हैं। हम बाड़ लगाते हैं, वह लोग वहां से मना करते हैं कि हमारे आदमियों को आने दीजिए। हम कुछ नहीं कर पाते। भारत में दो करोड़ विदेशी नागरिक रहते हैं। हम हर एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन की चेकपोस्ट लगाते हैं कि कहीं पर कोई एक आदमी भी बिना पासपोर्ट और बिना वीजा के भारत में प्रवेश न कर जाए। यहां के लाखों की संख्या में, करोड़ों की संख्या में लोग आते हैं। सुप्रीम कोर्ट भी कहता है कि जो लोग जिम्मेदार हैं, उन्होंने जो काम किया है, वो भारत के ऊपर आक्रमण के बराबर का विषय है। और वही सरकार सुप्रीम कोर्ट के 25 जुलाई 2005 के निर्णय के तीन दिन के अंदर में एक नया अध्यादेश जारी करके उन सारे के सारे कानूनों को फॉरनर्स ऐक्ट के अंदर ले आती है। क्योंकि जो आईएमडीटी ऐक्ट था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने बेकार कर दिया था।’

‘भारत विदेशियों से इतना नहीं हारा जितना अपनों से हारा। अंग्रेजों ने भारत के खिलाफ कोई लड़ाई ऐसी नहीं जीती, जिसमें अंग्रेजों की फौज में भारतीय सिपाही न रहे हों। चाहे वह बंगाल नेटिव आर्मी थी, 1857 में सिखों और गोरखाओं ने उनका साथ दिया, जब सिखों से लड़ाई हो रही थी तो बाकी लोगों ने उनका साथ दिया। हमेशा नेटिव आर्मी उनके साथ थी।'

‘भारत के इतिहास में अगर दर्द केवल इस बात का नहीं है कि विदेशियों ने हमारे साथ क्या किया। उनका तो हम मुकाबला कर लेते। दुख इस बात का था हमारे सभी लोगों नेहमारा साथ नहीं दिया’।

'जब-जब आक्रमण वेस्ट से हुआ, चाहे वे हूण थे, मंगोल आए, चाहे मुगल आए… वो लश्कर कहां से लाए ? वो तो थोडे़ से लोग आए थे। लश्कर बने काबुल में। लाहौर में। लश्कर बने सरहिंद में। हिंदुस्तानियों को हराया है तो हमेशा हिंदुस्तान के लोगों ने। साथ नहीं दिया देश का। दर्द है तो केवल इसी बात का।’