वक्त और पैसे की मार ऐसी होती है कि अच्छे-अच्छों की अकड़ ढीली कर देती है। ऐसा ही कुछ तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगान के साथ हो रहा है। एर्दोगान आटोमन साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे। एर्दोगान सऊदी अरब की सत्ता को मिटाना चाहते थे। एर्दोगान खुद मुस्लिम उम्मा नेता बनना चाहते थे। लेकिन एर्दोगान ने सऊदी अरब के सामने समर्पण कर दिया है। एर्दोगान की दावत पर सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पहली बार तुर्की पहुंचे।
ध्यान रहे, तुर्की के इस्तांबूल में ही सऊदी जर्नलिस्ट जमाल खाशोगी की हत्या की गई थी। इस हत्या के बाद तुर्की और सऊदी अरब के संबंधों में दरार काफी बढ़ गई थी। अब मुहम्मद बिन सलमान के तुर्की पहुंचने से दरार में कमी आने के संकेत मिल रहे हैं। अभी तक एर्दोगान खुद को मुस्लिम उम्मा का नेता मानते थे लेकि अंकारा में सऊदी क्राउन प्रिंस की अगवानी कर उन्होंने साबित कर दिया है कि उन्होंने सऊदी अरब की सल्तनत को स्वीकार कर लिया है।
प्रिंस सलमान इजिप्ट और जॉर्डन भी गए थे, और वह अपनी यात्रा के आखिरी चरण में अंकारा पहुंचे हैं। अगले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन भी मिडिल ईस्ट की यात्रा पर आने वाले हैं। इस बीच एर्दोआन ने कहा कि सऊदी प्रिंस के साथ बातचीत तुर्की तथा सऊदी अरब रिश्तों को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने पर केंद्रित होगी। तुर्की के राष्ट्रपति इस साल अप्रैल में सऊदी अरब गए थे और यह 2017के बाद उनकी अरब देश की पहली यात्रा थी।
एर्दोआन की इस यात्रा के लगभग एक साल बाद अक्टूबर 2018में इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में पत्रकार खशोगी की हत्या कर दी गई थी। पिछले 2दशकों में अपने सबसे बुरे आर्थिक संकट का सामना कर रहे तुर्की की कोशिश है कि सऊदी अरब से उसके रिश्ते सुधर जाएं, जिससे कि उसे खाड़ी के अमीर अरब देशों से इन्वेस्टमेंट मिल सके। तुर्की ने संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और इजरायल से भी अपने रिश्ते सुधारने के लिए कदम उठाए हैं। वहीं, अमेरिका से रिश्तों में तनाव के बीच सऊदी अरब अपना दायरा बढ़ाने के लिए ने साझेदारों की तलाश में है।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि एर्दोगान के आर्थिक हालात भी बदतर हैं। एर्दोगान को सऊदी इन्वेस्टमेंट चाहिए। अगर सऊदी इन्वेस्टमेंट नहीं मिला तो तुर्की की स्थिति भी पाकिस्तान जैसी होने में कोई कसर नहीं बचेगी।