ये कहावत 'जैसी करनी वैसी भरनी' चीन के ऊपर बिल्कुल फिट बैठती है। क्योंकि, चीन पिछले कुछ सालों से छोटे देशों को अपने कर्ज जाल में फंसा कर उनके खुफिया और जरूरी जगहों पर कब्जा कर रहा है। श्रीलंका में जो इतना बड़ा आर्थिक संकट आया हुआ है इसके पीछे चीन ही रहा है। चीन के कर्ज जाल में फंसा श्रीलंका पूरी तरह बरबाद हो गया है। देश का मुद्राभंडार खाली हो चुका है औऱ जनता सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है। श्रीलंकाई सरकार ने चीन से अरबों-डॉलर का कर्ज लिया और अब देश सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है। पाकिस्तान का भी यही हाल है। कई और देश हैं जिन्होंने चीन से कर्ज लिया था उनकी भी स्थिति धीरे-धीरे खराब होती जा रही है। लेकिन, चीन को अंदाजा भी नहीं था कि छोटे देशों को कर्ज में फंसाने के बाद उसका भी यही हाल होगा। दुनिया के सामने चीन अपनी कमजोरी को छुपा रहा है लेकिन, आज आलम यह है कि वो कंगाल हो चुका है। बैकों में पैसे ही नहीं बचे हैं। ऐसे में अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए चीन सरकार चीनीयों के आवाज को दबाने के लिए टैंक का सहारा ले रही है।
जिनपिंग का फेवरेट प्रोजेक्ट BRI ले डूबा चीन को
दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक महाशक्सिशाली देश के सामने सबसे बड़ा विदेशी संकट पैदा हो गया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण शी जिनपिंग का फेवरेट प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रेड इनीशिएटिव (BRI) को माना जा रहा है। जिसके तहत कई छोटे देशों को जमकर कर्ज बांटा गया। BRI ने ड्रैगन को ऐसे मुश्किल की ओर धकेल दिया है जहां से निकलना फिलहाल असंभव है। सन 1949 के बाद BRI चीन की सबसे बड़ी योजना थी। इसे जिनपिंग ने अपनी सबसे बड़ी विदेश नीति के तौर पर लॉन्च किया था। लेकिन, आने वाले तूफान के बारे में उन्हें नहीं पता था। ये दुनिया का सबसे बड़ा इनफ्रास्ट्रक्चरल प्रोग्राम था जिसे किसी देश की तरफ से शुरू किया गया था। इस योजना के तहत कई प्रोजेक्ट्स लॉन्च तो हो गए लेकिन उससे चीने को जो फायदा मिलना था, वो नहीं मिल सका। जबकि चीन ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए कई देशों को कर्ज दिया। इसकी वजह से चीन पर जितना दबाव बना, उतना ही दबाव श्रीलंका जैसे उन देशों पर जो पहले से ही आर्थिक संकट में थे। एक रिपोर्ट में चीन के इस BRI प्रोजेक्ट को हाई लेवल का इकोनॉमिक रिस्क करार दिया गया था।
BRI के चलते इन देशों में कर्ज संकट
चीन के इस प्रोजेक्ट के चलते दुनिया के कई देश बर्बादी के कगार पर है। इसके चलते एसिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका संग कई अन्य देशों में कर्ज संकट पैदा होता चला गया। थिंकटैंक अमेरिकन एंटरप्राइजेज इंस्टीट्यूट की तरफ से बताया गया कि, 2013 में प्रस्तावित किए गए इस प्रोग्राम के चलते साल 2021 के अंत तक इस प्रोजेक्ट्स की वजह से कई विकासशील देशों पर 838 बिलियन डॉलर की अदायगी हो गई थी। चीन को कब ये कर्ज वापस मिलेगा, उसे खुद नहीं मालूम। वहीं न्यूयॉर्क स्थित एक रिसर्च ग्रुप रोहडियम की मानें तो चीन के बैंकों ने साल 2020 और 2021 में 52 बिलियन डॉलर का कर्ल दिया था। पहले दो वर्षों की तुलना में ये 16 फीसदी ज्यादा था।
चीन के बैंकों ने लोगों के अकाउंट किया फ्रीज
इधर चीन लोगों के सामने अपनी कमजोरी छुपा रहा है लेकिन, इस वक्ता हालत यह है कि लोगों को उनके अपने ही खातों से पैसे निकलाने के लिए मनाही है। जिसके बाद भारी मात्रा में लोग सड़कों पर उतर आए हैं, जिसे देखते हुए चीनी सरकार ने बैकों के आगे टैंक तैनात कर दिया है। चीन के कई घरों के मालिकों ने मॉर्टगेज अदा करने से इनकार कर दिया है। इसकी वजह से बैंकों के सामने नया संकट पैदा हो गया है। बुधवार को हेनान प्रांत में एक बैंक के सामने टैंक्स की लंबी लाइन थी और वजह थी बैंक ऑफ चाइना का एक फैसला। बैंक ऑफ चाइना की हेनान ब्रांच की तरफ जमाकर्ताओं को यह कहा गया है कि उन्होंने भी रकम यहां जमा की है, अब वो एक निवेश है और इसे निकाला नहीं जा सकता है। बड़े पैमाने पर इस बैंक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और बैंक के बाहर भारी संख्या में प्रदर्शनकारी इकट्ठा हैं।
बैंक में जिनते भी फंड्स हैं उन्हें फ्रीज कर दिया गया है और जमाकर्ता अब इन्हें रिलीज करने की मांग कर रहे हैं। सेविंग्स को फ्रीज करने की वजह सिर्फ मॉर्टगेज अदा न करने का फैसला है। चीन का प्रॉपर्टी मार्केट इस समय 300 बिलियन डॉलर का कर्ज है। पिछले वर्ष जब एवरग्रांडे धड़ाम हुआ तो देश के रियल एस्टेट सेक्टर की सबसे बड़ी समस्या सामने आ गई। हाल ही में एक वीडियो सामने आया था जो शिंग्हुआ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर झेंग युहुआंग का था। जिसमें वो कह रहे हैं कि, साल 2022 चीन के लिए मुश्किल समय होने वाला है। देश की 460000 कंपनियां साल के पहले हाफ में ही बंद हो चुकी है। साथ ही 3.1 मिलियन इंडस्ट्रीयल और कमर्शियल उद्योगों को बट्टे में डाल दिया गया। एंटरप्राइज लिक्विडेशन सालाना 23 प्रतिशत बढ़ गया, 10.76 मिलियन कॉलेज ग्रेजुएशन में एडमिशन ले चुके हैं और देश के 80 लाख युवा बेरोजगार हैं।