सुप्रीम कोर्ट से सरकार को अधिकार दे दिया है कि वो आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों में दोषी पाए गए अपराधियों की नागरिकता रद्द कर देश से निर्वासित कर सकती है। आश्चर्यचकित मत होईए, यह फैसला भारतीय सुप्रीम कोर्ट का नहीं बल्कि इजराइल की सुप्रीम कोर्ट का है। इस खबर के बाद भारत के एक वर्ग में यह सोच विकसित हो रही है कि देश विरोधी गतिविधियों में दोष सिद्ध अपराधियों को नागरिकता को भारत सरकार भी रद्द करने का फैसला ले।
सात जजों की पीठ ने सुनाया बड़ा फैसला
बहरहाल, इजराइल की सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस्तेर हयूत के नेतृत्व में सात जजों के पैनल ने इस संबंध में फैसला सुनाया कि देश के विश्वासघात, आतंक, देशद्रोह, जासूसी, या शत्रुतापूर्ण जैसे कामों में लिप्त अपराधियों की नागरिकता रद्द की जा सकती है।
रेजिडेंशियल परमिट मिलेगा, निर्वासित देश द्रोहियों को
इजराइल की अदालत ने कहा कि नागरिकता रद्द होने के बाद दोषियों को देश में रहने की इजाजत देने के लिए एक निवास परमिट जारी करने की व्यवस्था होगी। दरअसल, इजरायल के आंतरिक मंत्रालय से सऊदी अरब के दो नागरिकों की नागरिकता से इनकार करने की अपील की गई थी। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। मालूम हो कि इन दोनों को अलग-अलग हमलों को अंजाम देने का दोषी पाया गया था।
सऊदी अरब के दो नागरिकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सऊदी अरब के इन दोनों नागरिकों की पहचान मोहम्मद मफराजा और अला जिउद के तौर पर हुई है। मोहम्मद मफराजा 2012 में तेल अवीव में एक बस में एक्सप्लोसिल लगाने का दोषी पाया गया, जिसमें 24 लोग घायल हुए थे। वहीं, अला जिउद ने 2015 में उत्तरी इजराइल के शमूएल जंक्शन पर आम लोगों के ऊपर छुरा घोंपकर हमला किया था, जिसमें चार लोग घायल हो गए थे। SC ने इन्हीं के मामले पर यह फैसला सुनाया।
पत्थरबाजों पर कुछ नरम दिखाई दी सुप्रीम कोर्ट
इजरायल के लीगल डिपार्टमेंट में एसोसिएशन फॉर सिविल राइट्स के डायरेक्टर ऑडेड फेलर ने एससी के इस फैसले को और विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि भले ही सुप्रीम कोर्ट राज्य के प्रति अपनी निष्ठा का उल्लंघन करने पर नागरिकता समाप्त करने की इजाजत दे रहा है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि हर पत्थर फेंकने वाले या सार्वजनिक रूप से राज्य के प्रति निष्ठा की कमी दिखाने वाले की नागरिकता रद्द कर दी जाएगी।