चीन किसी एक देश के साथ विवाद नहीं है बल्कि कई सारे देशों के साथ है। खासकर जो उससे सीमा साझा करते हैं। चीन ताइवान को अपना बताता है और इन दिनों तो उसपर कब्जा करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। चीन तीब्बत को अपना कहता है, भूटान को अपना कहता है, नेपाल के कुछ हिस्सों को अपना कहता है, मंगोलिया के हिस्सों पर कब्जा कर चुका है। भारत में अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव जारी है, भारत में चीन की दाल नहीं गली यहां भारतीय जवानों ने ड्रैगन को ऐसा सबक सिखाया की उसका जख्म आज भी भरा नहीं है। उधर समुद्री क्षेत्रों की बात करें तो ये वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान संग अन्य देशों के समुद्री क्षेत्रों पर भी अपना दावा करता है। अब चीन तो ताइवान पर भारत से समर्थन चाहिए था। जिसपर विदेश मंत्री जयशंकर ने ड्रैगन को नसीहत दी है।
चीन को उम्मीद है कि भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध के बाद द्विपक्षीय संबंधों को सही रास्ते पर लाने के अपने प्रयासों को और तेज करेगा। साथ ही ताइवान मध्य में हाल के घटनाक्रमों को लेकर 'एक-चीन' नीति का समर्थन करेगा। चीनी राजदूत सन वेइदॉन्ग ने भारत द्वारा 'एक-चीन' नीति के किसी भी उल्लेख को टालने के एक दिन बाद पत्रकारों से बात करते हुए यह टिप्पणी की है।
बताते चलें कि, अमेरिकी सदन के अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी की यात्रा के बाद उत्पन्न तनाव के बाद भारत ने ताइवान में यथास्थिति को बदलने के लिए एकतरफा कार्रवाई का विरोध किया है। भारत-चीन के बीच एलएसी पर जारी गतिरोध के बाद चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की बात कहते हैं। भारतीय समकक्ष एस जयशंकर का कहना है कि दोनों देशों के बीच के संबंधों को तब तक सामान्य नहीं किया जा सकता है, जब तक सीमा को शांत नहीं कर लिया जाए। एक सवाल के जवाब में सन ने कहा है कि, चीन को उम्मीद है कि मामलों को सही रास्ते पर वापस लाने के उसके प्रयासों को भारत समर्थन मिलेगा। जबकि उनके भारतीय समकक्ष एस जयशंकर का कहना है कि दोनों देशों के बीच के संबंधों को तब तक सामान्य नहीं किया जा सकता है, जब तक की सीमा को शांत नहीं कर लिया जाए
उन्होंने कहा, हम चीन-भारत संबंधों को महत्व देंगे और इसे सही रास्ते पर लाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे। हमें उम्मीद है कि इस तरह के प्रयास में हमें दूसरी तरफ (भारत) से भी समर्थन मिलेगा। हम मानते हैं कि हम इस तरह के लक्ष्य को प्राप्त करत सकते हैं। यह निश्चित रूप से न केवल हम दोनों देशों को बल्कि इस पूरे क्षेत्र और दुनिया को भी लाभान्वित करेगा।
ये चीन की गलतफहमी है कि, भारत उसका किसी भी गलत कामों में समर्थन करेगा। 'एक-चीन' नीति का समर्थन सिर्फ उसके कर्जदार देश कर सकते हैं। भारत से चीन को उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। फिलहाल ड्रैगन को एलएसी के पास से तुरंत अपनी सेना को हटा लेना चाहिए और वहां अपनी अपनी गतिविधियों को विराम देना चाहिए। चीन को अच्छे से पता है कि, उसके हर कदम का भारत मुंहतोड़ जवाब देगा। हालांकि, चीन को ये भी डर है कि अगर वो ताइवान पर हमला किया तो पश्चिमी देशों के साथ ही भारत का भी उसे सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि, भारत के साथ चीन करीब तीन हजार से भी ज्यादा सीमा साझा करता है।