'ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर चीन ने पहले सीपेक पर टैक्स वसूली का अधिकार हासिल किया। पाकिस्तान आर्मी को लॉजिस्टिक्स हेल्प के नाम पर पीएलए का जनरल इस्लामाबाद में नियुक्त किया। पाकिस्तानी रुपये की युआन ने ले ली है। कर्ज के ब्याज की वसूली के नाम पर चीन ने बलूचिस्तान के ग्वादर और गिलगिट-बालटिस्तान के बड़े हिस्से पर कब्जा लिया है। अब पाकिस्तान में चीनी नागरिकों और संपत्तियों की सुरक्षा के नाम पीएलए (पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी) की चौकियां स्थापित करने जा रहा है।'
चीन के डेब्ट नेट में पाकिस्तान
श्रीलंका और नेपाल में भारत के प्रभाव की वजह से चीन की दाल ज्यादा नहीं गल पाती इसलिए चीन श्रीलंका और नेपाल में अभी तक मिलिट्री बेस नहीं बना पाया है। श्रीलंका और नेपाल को भी चीन अपने डेब्ट नेट में फंसाने की कोशिश कर चुका है। श्रीलंका की इकोनॉमी एक बार फेल ही हो चुकी है। दुनिया ने इसे देखा भी है। भारत की मदद से श्रीलंका फिर से उबर रहा है। नेपाल की अर्थव्यवस्था पर भारत की निगाह लगातार बनी रहती है। लेकिन एक और पड़ोसी है पाकिस्तान, जो चीन के डेब्ट नेट में बुरी तरह फंस चुका है। पाकिस्तान को अपने जाल में फंसाने के लिए चीन ने बहुत चालाकी से काम लिया है।
पाकिस्तान में टैक्स वसूली करेगा ड्रैगन
चीन ने सीपेक के नाम पर पाकिस्तान को 60 बिलियन डॉलर का कर्जा दिया। इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने और एनर्जी सेक्टर को सुधारने के नाम पर अलग से निवेश किया। चीन यह कर्जा देते समय जानता था कि पाकिस्तान कर्ज वापसी नहीं कर सकता। क्योंकि पाकिस्तान में ‘प्रोडक्शन’ नाम मात्र को है। जो थोड़ा बहुत है भी वो चाईनीज माल की सप्लाई से उसको खत्म कर दिया। इसके अलावा पाकिस्तान में चीन का माल बिना किसी टैक्स और ड्यूटी बेधड़क आएगा और चीन जाएगा तो उस पर टैक्स देना पड़ेगा। कहने का मतलब यह कि चीन ने पाकिस्तान की आमदनी के सभी रास्ते बंद कर दिए।
पाकिस्तानी मार्केट में जिन्नाह वाला रुपया नहीं माओ वाला युआन चलेगा
पाकिस्तान ने जब चीन के सामने कर्जा वापस देने में असमर्थता जाहिर की तो चीन ने पहली शर्त रख दी कि पाकिस्तान में चीनी करेंसी को अनुमति दी जाए। सबसे पहले जनवरी 2018 में चीन ने पाकिस्तान की सरकार पर युआन को कबूल करने का दबाव डाला। इतना ही नहीं चीन ने इसी के साथ इस्लामाबाद में पाकिस्तानी सरकार की सहायता के नाम पर एक मिलिट्री जनरल भी तैनात कर दिया। 2018 से लेकर अब (2022) तक सीपेक का काम लगभग ठप रहा है। इसके अलावा सीपेक और सीपेक के आस-पास काम कर रही चीनी कंपनियों और नागरिकों पर हमले तेज हो गए। कराची, इस्लामाबाद बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वाह तक चीनी कंपनियां और चीनी नागरिकों को निशाना बनाए जाने लगा।
पाकिस्तान के भीतर PLA की चौकियां बनाने की तैयारी
इन हमलों से चीन को मौका मिल गया। अब चीन ने ऐलान कर दिया है कि पाकिस्तान में पीएलए अपनी चौकियां स्थापित करेगा। इसका मतलब आप समझते हैं क्या है? इसका मतलब यह है कि पहले चीन ने पाकिस्तान को कर्ज के जाल में फंसाया। फिर बदहाल आर्थिक स्थिति का हवाला देकर अपनी करेंसी लागू करने का फरमान दे दिया, और अब सुरक्षा के नाम पर पाकिस्तान के भीतर चीनी आर्मी की सीधी एंट्री का रास्ता खोल दिया। चीन के इस ऐलान के बाद पाकिस्तान चौराहे पर खड़ा है। कोई सही रास्ता उसको दिखाई नहीं दे रहा। भारत में आतंकवादियों को भेजकर एक रास्ता पहले ही बंद कर चुका है। रूस के साथ संबंध बेहतर बनाने की सारी कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं। अफगानिस्तान में तालिबान आने बाद अमेरिका से डॉलर वसूली बंद हो चुकी है। चीन के साथ शाने-बशाने दिखने की होड़ ने अमेरिका से 36 के आंकड़े कर लिए हैं। यूरोपीय देशों से भी मदद बंद हो चुकी है। चीन ने मदद के नाम पर ग्वादर और गिलगिट-बालटिस्तान के बड़े भूभाग और नेचुरल रिसोर्सेज पर कब्जा कर ही लिया है।
… तो क्या चीन की कॉलोनी बन चुका है पाकिस्तान
अगर, अब अगर पाकिस्तान की शहबाज सरकार (पीएलए) चीन की आर्मी को पाकिस्तान के भीतर चौकियां बनाने से कैसे रोक सकती है? भारत साथ है न रूस साथ है न ईरान का सहयोग है और न पीठ पर अमेरिका का हाथ ही बचा है। चीन के हुक्म को मानना पाकिस्तान की मजबूरी है। सरकार भले ही शरीफ-जरदारी की हो या इमरान की, चीन का हुक्म बजाना उनकी मजबूरी है। पाकिस्तान की आर्मी भी चीन के हुक्म मानने से इंकार नहीं कर सकती क्यों कि 80 फीसदी से ज्यादा अस्त्र-शस्त्र चीन ने ही सप्लाई किए हैं। पाकिस्तान के परमाणु संयत्रों और मिसाइल भी चीन के अपरोक्ष नियंत्रण में हैं। एक लाइन में कहा जा सकता है कि ‘पाकिस्तान चीन की पहली कॉलोनी’बनने जा रहा है।