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टूट गया Xi Jinping का सपना! पाकिस्तान के चक्कर में बुरा फंसा चीन

Pakistan Breaking China Dream in Afghanistan

Pakistan Breaking China Dream: चीन में पाकिस्तान CPEC के तहत कई सारे प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। लेकिन, इसमें कई सारी अड़चने आ रही हैं। पाकिस्तान में लगातार चीनी नागरिकों पर हमलों के चलते इस काम में काफी देरी आ रही है। पाकिस्तान की सरकार चीनी नागरिकों को सुरक्षा देने में असफल साबित हो रही है। पाकिस्तान की पूर्व इमरान खान सरकार से तो शी जिनपिंग नाराज थे ही अब शाहबाज शरीफ सरकार से भी नाराज चल रहे हैं। पाकिस्तान के साछ मिलकर चीन अपने आर्थिक गलियारे के विस्तार का सपना अफगानिस्तान (Pakistan Breaking China Dream) तक देखा था लेकिन, ये फिलहाल उसके लिए ड्रीम ही है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के संकल्प करने के बावजूद पाकिस्तान CPEC के विस्तार का काम अफगानिस्तान (Pakistan Breaking China Dream) में नहीं कर पा रहा है। पाकिस्तान के सुरक्षा न दे पाने के कारण इसमें देरी हो रही है, जिससे चीन असंतुष्ट है।

पाकिस्तान के चलते अफगानिस्तान को लेकर चीन का सपना चकनाचूर
जियोपॉलिटिक की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के CPEC का विस्तार अगर अफगानिस्तान में होता है तो इससे चीन को उसी तरह की आतंकी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा जो वह अभी पाकिस्तान में झेल रहा है। अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचा कमजोर है और निवेश को अवशोषित करने की कम क्षमता है। साथ ही तालिबान शासन को विरोध करने वाले इस्लामी समूहों जैसे IS से बड़ा खतरा है। सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान में शोध विश्लेषक क्लाउडिया चिया यी एन का कहना है कि, तालिबान को शुरू से चीनी निवेश की उम्मीद थी। लेकिन यह पूरा नहीं हो सका है। चीन लगातार निवेश के लिए अनिच्छुक है।

चीन के साथ रूस के लिए अफगानिस्तान में बड़ी चुनौती
चीन की सबसे बड़ी चिंता अफगानिस्तान में कई जगह बड़े कबायली क्षेत्र हैं, जहां सरकार का नियंत्रण नही है। इन इलाकों का उपयोग आतंकियों को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है। इसी तरह रूस को भी अफगानिस्तान तक अपना तेल बेचने के लिए समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका के जाने के बाद चीन और रूस उसकी जगह लेना चाहते हैं। एक ओर रूस मौजूदा व्यापार भागीदार है तो दूसरी ओर चीन की नजर अफगानिस्तान के खनिज खजानों पर है। दोनों देश अफगानिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध रखना चाहते हैं, लेकिन कोई भी तालिबानी सरकार के साथ राजनयिक संबंधों को बढ़ाने का इच्छुक नहीं है।

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