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पाकिस्‍तान में CPEC से जिनपिंग ने पल्ला झाड़ा, वजह चीन का आर्थिक संकट या आतंकियों का खौफ?

चीन का BRI प्रोजेक्ट फेल साबित हो रहा

चीन-पाकिस्‍तान (Pakistan-China) इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी सीपीईसी जो राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्‍ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) का हिस्‍सा है, अब उसका इस्‍लामाबाद से मोहभंग हो गया है। जिस सीपीईसी को पाकिस्‍तान की किस्‍मत बदलने वाला प्रोजेक्‍ट करार दिया गया था, अब उस पर जिनपिंग ने ताला लगाने का फैसला कर लिया है। कई सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ने राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं की वजह से पाकिस्तान में सीपीईसी की नई परियोजनाओं को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है।

किसी प्रस्‍ताव को मंजूरी नहीं

निक्‍केई एशिया की तरफ से कहा गया है कि चीन ने पाकिस्‍तान में राजनीतिक अस्थिरता और बिगड़ती सुरक्षा स्थितियों का हवाला दिया है। इसके साथ ही नई बेल्ट और रोड परियोजनाओं के प्रस्तावों को खारिज कर दिया है। पिछले साल अक्टूबर में हुई एक हाई लेवल मीटिंग में इस पर चर्चा हुई थी। बैठक से जुड़े सूत्रों के मुताबिक चीनी अधिकारियों ने सीपीईसी के लिए प्राथमिक निर्णय लेने वाली संस्था की 11वीं मीटिंग के दौरान अहम फैसला लिया। इसमें तय हुआ कि सीपीईसी (CPEC) के दायरे को बढ़ाने से जुड़े पाकिस्तान के सुझावों को मंजूरी नहीं दी जाएगी।

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पाकिस्‍तान को दी सलाह

रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने 500 किलोवोल्ट ट्रांसमिशन लाइन बनाने के पाकिस्‍तान के प्रस्‍ताव को भी खारिज कर दिया है। इस परियोजना के तहत ग्वादर बंदरगाह को कराची से राष्‍ट्रीय बिजली ग्रिड से जोड़ा जाना था। इससे अलग चीन ने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान, ग्वादर में 300 मेगावाट के कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र को लेकर अपनी आपत्तियों को छोड़ दे। साथ ही घरेलू कोयले के प्रयोग के साथ इस योजना के बनाए रखने की वकालत की।पाकिस्‍तान के अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने भी पिछले हफ्ते अपनी एक रिपोर्ट में इसी तरह की बातें कही थीं।

देश में मौजूद उथल-पुथल

रिपोर्ट में पाकिस्तान की तरफ से चीन के साथ साझा किए गए ड्राफ्ट और दोनों पक्षों की तरफ से साइन किए गए मसौदे में असमानताओं का जिक्र भी किया गया था। इसमें बाद वाला संस्करण चीन के रुख को दर्शाता है।अप्रैल 2022 में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार गिरने के बाद से ही पाकिस्‍तान में राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है। इसके अलावा, सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी बरकरार हैं। आतंकियों ने चीनी हितों को कई बार निशाना बनाया है।