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ब्रह्मकमल के रंग में रंगी दिखी केदारघाटी, भोलेनाथ से है ये खास नाता

केदारघाटी में ब्रह्मकमल

पिछले सावन के महीने में केदारनाथ (Kedarnath) में भक्त बड़ी संख्या में ब्रह्मकमल (Saussurea obvallata) के फूलों की मालाएं भोले बाबा पर अर्पित करते हैं। दरअसल, भगवान शिव का सबसे प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल माना जाता है। मालूम हो केदारनाथ की ऊंची पहाड़ियों पर इन दिनों ब्रह्मकमल बड़ी संख्या में होता है। ऐसे में केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाके के साथ ही हिमालय के आंचल में बसे भूभाग इन दिनों ब्रह्मकमल के पुष्पों से लकदक बने हुए हैं। मखमली बुग्यालों में ब्रह्मकमल खिलने से प्राकृतिक सौन्दर्य पर चार चांद लगे हैं। जानकारी के लिए बता दें, हिमालयी क्षेत्रों में ब्रह्मकमल, फेन कमल व सूर्य कमल तीन प्रजाति के कमल पाये जाते हैं, जबकि नील कमल समुद्र में पाया जाता है।

कहा होता है ब्रह्मकमल?

ये फूल हजारों फीट की ऊंचाई पर लगा होता है। पर्यावरणविदों के मुताबिक ब्रह्मकमल 16 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है। जबकि, फेन कमल 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है। सूर्य कमल की प्रजाति बहुत दुर्लभ मानी जाती है। ब्रह्म कमल की महिमा का वर्णन शिव महिम्न स्तोत्र में भी किया गया है। केदारनाथ धाम से लगभग 9 किमी दूरी तय करने के बाद वासुकी ताल, रांसी मनणामाई पैदल ट्रैक पर सीला समुद्र का भूभाग, मदमहेश्वर पाण्डवसेरा नन्दी कुण्ड तथा बिसुणीताल व देवताओं के घौला क्षेत्र का भूभाग इन दिनों असंख्य ब्रह्मकमल के फूलों से लकदक है।

भगवान विष्णु ने किया था शिव का अभिषेक

शिव महिम्न स्तोत्र में लिखा गया है कि एक बार विष्णु भगवान (Lord Vishnu) ने भगवान शंकर का एक हजार ब्रह्मकमल से अभिषेक किया। इस पर विष्णु की परीक्षा लेने के लिए भगवान शंकर ने एक ब्रह्मकमल पुष्प को गायब कर दिया। भगवान शंकर के अभिषेक के समय जब एक पुष्प कम पड़ा तो भगवान विष्णु ने अपने दाहिने नेत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया। जब विष्णु ने अपना दाहिने नेत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया तो भगवान शंकर विष्णु की भक्ति से बडे़ प्रसन्न हुए। उन्होंने विष्णु को वरदान दिया कि आज से आप कमल नयन नाम से विश्व विख्यात होंगे। उसी दिन से भगवान विष्णु का एक और नाम कमल नयन पड़ा।

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भगवान शिव को बेहद प्रिय है ब्रह्मकमल

आचार्य हर्षमणि जमलोकी बताते हैं जो व्यक्ति भगवान शंकर को ब्रह्मकमल अर्पित करता है, उसे शिवतत्व, शिव ज्ञान तथा शिवलोक की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई इस फूल को शिवालयों तक लाने के लिए ब्रह्मचार्य, अनुष्ठान का पालन करना पड़ता है। नंगे पांव ब्रह्म कमल तोड़ने व शिवालयों तक पहुंचाने की परम्परा युगों पूर्व की है।

इसके अलावा आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल का कहना हैं,  इस फूल की महिमा का वर्णन महापुराणों, पुराणों व उप पुराणों में विस्तृत से वर्णित की गयी है। ब्रह्म कमल हिमालयी आंचल में उगने वाला दुर्लभ पुष्प है। मदमहेश्वर धाम के हक हकूकधारी भगत सिंह पंवार ने बताया कि इन दिनों पाण्डवसेरा नन्दी कुण्ड के आंचल में असंख्य ब्रह्मकमल खिलने से वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य स्वर्ग के समान महसूस हो रहा है।