एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (एएमएल) से पर्याप्त रूप से निपटने और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुक़ाबला करने के लिए पाकिस्तान को ‘उच्च जोखिम वाले तीसरे देशों’ की सूची से हटाने के यूरोपीय संघ (ईयू) के फ़ैसले के बाद भारत को सुरक्षा और आतंक की निगरानी बढ़ा देनी चाहिए। इसका मतलब यह होगा कि पाकिस्तान पर अब तक लागू अतिरिक्त नियामक निगरानी और प्रतिबंध अब लागू नहीं होंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि इससे इस क्षेत्र में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है, ख़ासकर जब से पाकिस्तान और बांग्लादेश में आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं। इन दोनों देशों में बढ़ती अनिश्चितता भी कट्टरवाद की बहुआयामी समस्या को जन्म देने की संभावना है, जो सीधे-सीधे भारत को प्रभावित कर रही है।
ऐसे देश, जो अपने आंतरिक धन शोधन और आतंकवाद के प्रति वित्तपोषण (सीएफटी) व्यवस्थाओं में रणनीतिक कमियों के कारण वित्तीय प्रणाली के लिए उच्च जोखिम को दर्शाते हैं, इस सूची का हिस्सा होते हैं।
पिछले साल अक्टूबर में पाकिस्तान फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्लोबल मनी लॉन्ड्रिंग वॉचलिस्ट से बाहर हो गया। इसके बाद, यूके ने नवंबर 2022 में पाकिस्तान को “उच्च जोखिम वाले तीसरे देशों” की सूची से हटा दिया।
उल्लेखनीय है कि लगभग उसी समय-अक्टूबर 2022 में नई दिल्ली में सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी बैठक में वैश्विक विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया था कि नक़दी और हवाला आतंकवाद के वित्तपोषण के प्रमुख स्रोत बने हुए हैं। तालिबान के नेतृत्व वाले अफ़ग़ानिस्तान में शासन और आतंकवाद विरोधी शासन ने भी इसे चिंता का विषय बना दिया है।
राजनयिकों का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा इस जोखिम का मुख्य रंगमंच रहा है।
इसलिए, यूरोपीय संघ के इस क़दम से कई लोगों को आश्चर्य भी हुआ है, विशेष रूप से इस साल फरवरी में संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध निगरानी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीमावर्ती “अफ़ग़ानिस्तान मध्य और दक्षिण एशिया के लिए आतंकवादी ख़तरे का प्राथमिक स्रोत बना हुआ है।” इतना ही नहीं ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स (GTI) के 10वें संस्करण- सिडनी स्थित इंस्टीट्यूट फ़ॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (IEP) द्वारा निर्मित एक रिपोर्ट से पता चला है कि पाकिस्तान में 2021 से दोगुने से अधिक संख्या में आतंकी गतिविधियों में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
अंतर्राष्ट्रीय मामलों की एक टिप्पणीकार नविता श्रीकांत ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “आतंकवादी समूहों के बीच आतंकवादी हमलों और संघर्षों में वृद्धि के साथ ही अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में हाल के महीनों में हुए विकास की प्रकृति को देखते हुए यह कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय निगरानी बढ़ायी जाए और अफ़ग़ानिस्तान और उसके आसपास धन के प्रवाह की निगरानी के लिए क़ानूनी ढांचे को मज़बूत किया जाए।”। उन्होंने कहा कि चूंकि आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए नक़दी और हवाला दो पसंदीदा रास्ते हैं, ऐसे में ज़मीन से घिरे अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती राज्यों में ऐसे साधनों का आसानी से फ़ायदा उठाया जा सकता है।
पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि अफ़ग़ानिस्तान मध्य और दक्षिण एशिया के लिए आतंकवादी ख़तरे का प्राथमिक स्रोत बना हुआ है। इसमें कहा गया है कि आईएसआईएल-के, अल-क़ायदा और तहरीक़-ए तालिबान पाकिस्तान जैसे आतंकवादी समूहों को प्रभावी तालिबान सुरक्षा रणनीति के अभाव में आवाजाही की अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है।
श्रीकांत ने कहा कि यूरोपीय संघ आयोग को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट का संज्ञान लेना चाहिए था। श्रीकांत ने कहा, “इसे एफ़एटीएफ़ से इस क्षेत्र से आतंकवाद के वित्तपोषण के जोखिम के पुनर्मूल्यांकन के लिए कहना चाहिए था और पाकिस्तान सहित अफ़ग़ानिस्तान के सभी पड़ोसी देशों के लिए ‘उच्च जोखिम वाले तीसरे देश’ की सिफ़ारिश करनी चाहिए थी।”
समाचार एजेंसी ने बताया कि इस्लामाबाद स्थित पाक इंस्टीट्यूट फ़ॉर पीस स्टडीज़ के अनुसार, पाकिस्तान में 262 आतंकवादी हमलों में कुल 419 लोग मारे गए थे।