चीन के लिए मानवाधिकार कोई मुद्दा ही नहीं है। वह अपनी ताक़त की हौंक में किसी के मानवाधिकार की ज़रा सी भी चिंता नहीं करता है। यह बात तब खुलकर सामने आयी,जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन के ख़िलाफ़ उइगरों और बलूचों ने मानवाधिकार हनन का आरोप लगाया। उन्होंने चीन के मानवाधिकार उल्लंघन के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए कहा कि वे जीने न्यूनतम अधिकार से भी वंचित हैं। हालांकि,उनके इस आवाज़ उठाने से पहले चीन की कोशिश थी कि उइगर मुसलमानों को बोलने से रोका जाए। लेकिन,उनका हर प्रयास विफल रहा।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन के ख़िलाफ़ बोलने वाले उइगर कांग्रेस के अध्यक्ष डोल्कन ईसा का चीन ने ज़ोरदार विरोध किया और चीनी राजनयिक ने उन्हें चीन विरोधी, अलगाववादी और हिंसक तत्व क़रार दिया।
डोल्कन ईसा के बाद अमेरिकी प्रतिनिधि के बोलने की बारी आयी। अमेरिकी राजनयिक ने डोल्कन ईसा के बोलने से रोकने की चीनी कोशिश की आलोचना की और कहा कि अपनी बात रखने की इजाज़त सबको मिलनी चाहिए। अमेरिकी राजनयिक की राह का अनुसरण करते हुए इरिट्रिया के राजनयिक भी डोल्कन ईसा के समर्थन में आगे आये।
डोल्कन ईसा ने कहा कि चीन को हक़ीक़त और इंसाफ़ दोनों से डर लगता है। ईसा ने कहा उनका मक़सद चीन से अलग होने का है। वे शंघाई या बीजिंग भी नहीं चाह रहे हैं। उनकी मांग सिर्फ़ इतनी है कि उनका देश शिनजियांग एक अधिकृत क्षेत्र है और चीन को इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। ईसा ने कहा कि चीनी सरकार उइगरों का नरसंहार कर रही है।उन्होंने कहा कि चीनी सरकार चाहती है कि किसी भी स्थिति में उइगर के मामला का अंतर्राष्ट्रीयकरण नहीं हो।
चीन के उइगर मुसलमानों की तरह ही बलूचिस्तान के लोग भी चीन से परेशान हैं। उल्लेखनीय है कि बलूचिस्तान से पाकिस्तान के मानवाधिकार के हनन के ख़िलाफ़ लागातार आवाज़ उठती रही है।बलूचियों को चीन से इसलिए भी परेशानी है कि चीन यहां पाकिस्तान के सहयोग से ऐसी कई परियोजनायें चला रहा है,जिससे बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का ही ज़बरदस्त दोहन ही नहीं हो रहा है,बल्कि बलूचियों की पहचान भी संकट में पड़ गयी है। इसे लेकर बलूच वॉयस एसोसिएशन लगातार आवाज़ उठाता रहा है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बलूचियों के लिए बहुत बड़ा संकट का रूप ले लिया है। इस परियोजना ने बलूचियों की ज़मीन हड़प ली है; संसाधनों पर डाके डाल दिए हैं; बड़े पैमाने पर बलूचियों के विस्थापन हुए हैं; जब-तब उनके नेतृत्व और आम बलूचियों के ग़ायब होने की सूचना मिलती रहती है; चीन के सहयोग से पाकिस्तान यहां बेरहम सैन्य अभियान चलाता रहता है।बलूचिस्तान के लोगों के मानवाधिकार ख़स्ताहाल है और न्यूनतम नागरिक स्वतंत्रता तो दूर की बात,उनके पास न्यूनतम मानवाधिकार भी नहीं है।