एक ओर जहां बिहार में रामनवमी के बाद दो समूदायों के बीच हिंसक वारदातों की ख़बर आयीं, प्रदेश के सासाराम और नालंदा में सांप्रदायिक हिंसा ने क़ौमी एकता को ठेस पहुंचायी,तो वहीं मुस्लिम बहुल इलाक़ा किशनगंज (Kishanganj) से गंगा-जमुनी तहज़ीब की नयी मिसाल पेश करती एक सुखद और सामाजिक समरसता से जुड़ी ख़बर भी सामने आयी है।
70 फ़ीसद मुस्लिम आबादी वाला बिहार का यह ज़िला वैसे तो कई तरह से सुर्ख़ियों में रहता रहा है,लेकिन आज जिस वजह से किशनगंज सुर्ख़ियां बटोर रहा है,वह बेहद सुकून और अमन का पैग़ाम देने वाला है।दरअसल, किशनगंज ज़िला मुख्यालय के रुईधासा मुहल्ला में एक मुस्लिम परिवार ने हिन्दु मंदिर के नाम ख़ुशी-ख़ुशी अपनी ज़मीन दान कर दी है।
बिहार के किशनगंज ज़िले में मुस्लिम समाज के दो युवकों ने सांप्रदायिक सौहार्द का अनूठा उदाहरण पेश किया है। ये दोनों सगे भाई हैं। टाउन थाना क्षेत्र के रूईधासा स्थित वाजपेई कॉलोनी में हनुमान मंदिर निर्माण के लिए इन दो मुस्लिम युवक फ़ैज़ और फ़ज़ल अहमद ने एक कट्ठा जमीन स्वेच्छा से दान कर दी है। जहां मंदिर निर्माण की विधिवत आधारशिला रखी गयी, वहीं ध्वजारोहन भी किया गया।
मंदिर की आधारशिला और ध्वजारोहन के वक्त मुहल्लेवासी मौजूद रहे। दरअसल, फ़ैज़ और फ़ज़ल अहमद के पिता ज़ेड अहमद ने कुछ वर्ष पूर्व मुहल्लेवासियों को मंदिर निर्माण के लिए ज़मीन दान देने की बात कही थी, लेकिन उनकी असामायिक निधन होने से उनका यह वादा अधूरा रह गया था। लेकिन, जब इस बात की जानकारी उनके दोनों बेटे और पत्नि को लगी, तो उन्होंने अपने वालिद के वायदों को पूरा किया और वह ज़मीन मंदिर के नाम कर दी।
रमज़ान का पाक महीना और साथ में हनुमान जन्मोत्सव, इस मौक़े पर फ़ैज़ और फ़ज़ल अहमद ने विधिवत रूप से दान पत्र पर हस्ताक्षर किए, और मंदिर की आधारशिला रखी। इस मौक़े पर फ़ैज़ अहमद ने बताया कि मंदिर के लिए ज़मीन दान में देना उनकी पिता की आख़िरी इच्छा थी,जिसे दोनों भाईयों ने मिलकर पूरा कर दिया है।
किशनगंज के फ़ैज़ अहमद और फ़ज़ल अहमद ने क़ौमी एकता के बीच दरारें पैदा करने वालों को एक ख़ुशनुमा पैग़ाम दे दिया है कि मज़हब से तोड़ता नहीं,जोड़ता है। उन दोनों द्वारा क़रीब 25 लाख क़ीमत वाली यह ज़मीन दान में देना उन जैसे लोगों के लिए एक सीख है,जो छोटी-छोटी बातों के लिए एक–दूसरे धर्म को नीचा दिखाने से कभी चूकते नहीं। मगर, फ़ज़ल अहमद ने कहा कि इस कॉलोनी में एक भी मंदिर नहीं था,लिहाज़ा मंदिर निर्माण होने से यहां रह रहे हिन्दुओं को अपने ईश्वर की इबादत करने में कोई दिक़्क़त नहीं होगी।
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