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कंगाल पाकिस्तान से अब सऊदी अरब ने भी किया किनारा, लिया फैसला नहीं देगा कोई खैरात

पाकिस्तान को खैरात नहीं देगा सऊदी अरब

पाकिस्तान (Pakistan) की स्थिति इस वक्त काफी ज्यादा बिगड़ी हुई नजर आ रही है। देश के अंदर कई तरह का भूचाल आया हुआ है जिसमें से सबसे बड़ा भूचाल महंगाई है जो इस वक्त चरम पर है, जिसके लिए अब पाकिस्तान सरकार दर-दर की ठोकरें कहा रही है। आलम यह है कि लोग वहां रोटी के लिए तरस रही है। क्योंकि, इस वक्त आटें का भाव रिकॉर्ड हाई पर है। ऐसे में पाकिस्तान आर्थिक मदद के लिए कभी पूरब की ओर देखता तो कभी पश्चिम। कभी चीन से कर्ज लेता है तो कभी सऊदी अरब के आगे हाथ फैलाता है। जहां पहले ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सऊदी सरकार पाकिस्तान को आर्थिक मदद दे सकती है। तो वहीं अब हाल ही में पाकिस्तान को बड़ा झटका देते हुए सऊदी अरब ने उसकी उम्मीदों पर पानी पेर दिया था।

इन दिनों रमजान (Ramadan) का पाक महीना चाल रहा है इस बीच पाकिस्तान के सबसे बड़े दानदाता सऊदी अरब ने पाक पीएम शहबाज शरीफ और उनके बड़े भाई नवाज शरीफ को ईद की दावत दी है। यह करीबी राजनीतिक संबंधों का सुदृढीकरण हो सकता है मगर दूसरी तरफ अर्थशास्त्री इसे लेकर कड़ी चेतावनी भी दे रहे हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ‘मंदी की स्थिति में है और संकट से तबाही की ओर बढ़ रही है’। वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) भी आर्थिक सहायता देने की दूर दूर तक उम्मीद नहीं है।

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खैरात देने के मूड में नहीं सऊदी

सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के राज में अरब देश का कहना है कि पिछले साल तेल के हालिया उछाल से अर्जित उसके फंड ‘फ्री लंच’ के लिए नहीं हैं। विश्लेषक मुशर्रफ जैदी ने पिछले हफ्ते द न्यूज इंटरनेशनल में लिखा, ‘बहुत कम संभावना है कि पाकिस्तान अपने आईएमएफ कार्यक्रम को फिर से शुरू करने के लिए सऊदी अरब का समर्थन हासिल कर पाएगा। अगर ऐसा हुआ भी तो यह एक अस्थायी राहत होगी। पाकिस्तान आज या निकट भविष्य में सऊदी अरब से आर्थिक सहायता के किसी भी बड़े पैकेज को हासिल करने में सक्षम नहीं होगा क्योंकि इस तरह के समर्थन का मॉडल अब मौजूद नहीं है।

नहीं है मदद की उम्मीद

कई ग्लोबल रिपोर्ट्स ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान जिस बेलआउट की उम्मीद कर रहा है, वह निकट भविष्य में कहीं दिखाई नहीं दे रही है। न्यूयॉर्क टाइम्स की 3 अप्रैल की एक रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि रियाद अब पाकिस्तान और ऐसे देशों को पैसे नहीं देगा, जो अपने आर्थिक बुनियादी ढांचे में सुधार करने से इनकार कर रहे हैं।