Us Taiwan Stingers: चीन इस वक्त ताइवान पर कब्जा करने के लिए पूरी तरह से तैयार बैठा हुआ है। ये जंग अगर हुई तो ताइवान के बीच नहीं बल्कि चीन और अमेरिका बीच होगी। क्योंकि, अमेरिका का साफ कहना है कि अह ड्रैगन ने ताइवान पर हमला किया तो वो उसकी रक्षा करेगा। चीन पहले से ही कहते आ रहा है कि अमेरिका, ताइवान के मामलों पर बोलना बंद करे क्योंकि, वो उसका हिस्सा है और वो जब चाहेगा तब ताइवान को अपने में मिला लेगा। ऐसे में चीन के हमले के खतरे के बीच अमेरिका ने ताइवान के लिए बड़ी सैन्य मदद को रवाना किया है। अमेरिका ने ताइवान की सेना के लिए स्टिंगर मिसाइल और अन्य हथियारों की बड़ी खेप भेजी है। इस मिसाइल के लिए साल 2019 में एक समझौता दोनों के बीच हुआ था। ताइवान 19 अरब डॉलर के हथियार अमेरिका से खरीद रहा है जिसमें से अभी कई उसे दिए जाने बाकी हैं। अब अमेरिका ताइवान को चीन के खतरे को देखते हुए इन हथियारों को तेजी से उसे मुहैया करा रहा है।
चीन का यह दावा है कि ताइवान उसका हिस्सा है और वह लगातार ताकत के बल पर कब्जा करने की धमकी दे रहा है। अमेरिका और ताइवान दोनों ही ड्रैगन के खतरे को लेकर बहुत चिंतित हैं। यही वजह है कि अमेरिका अब ताइवान की खुद की रक्षा करने की ताकत को बढ़ाने में जुट गया है। उसका कहना है कि इन हथियारों की वजह से चीन हमला करने से बचेगा। अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की है कि स्टिंगर मिसाइल की खेप पिछले सप्ताह ताइपे पहुंची है।
ताइवान को हथियारों से पाट रहा अमेरिका
अमेरिका के ताइवान को स्टिंगर मिसाइल देने के बाद चीन का विदेश मंत्रालय आगबबूला हो गया है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने देश के आंतरिक मामले में अमेरिका के हस्तक्षेप की निंदा की है। चीन ने इन हथियारों को देने को ‘बहुत ही गलत और खतरनाक’ करार दिया है। अमेरिका और ताइवान के बीच साल 2019 में एक समझौता हुआ था जिसके तहत जेवलिन, स्टिंगर मिसाइलें, हिमार्स रॉकेट और तोपें देना शामिल था।
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ताइवान की सेना अमेरिका से हार्पून मिसाइलें भी खरीद रही है जो किसी भी युद्धपोत को डुबो देने की ताकत रखती हैं। ये मिसाइलें उसे साल 2026 तक मिलेंगी। अमेरिका ने ताइवान को 250 स्टिंगर मिसाइलें दी हैं जो किसी भी फाइटर जेट को मार गिराने की क्षमता रखती हैं। ये बहुत ही हल्की होती हैं और सैनिक इसे अपने कंधे पर रखकर फायर कर सकते हैं। ये मिसाइलें अफगानिस्तान में सोवियत संघ के साथ जंग और यूक्रेन में रूस के साथ युद्ध में बहुत ही कारगर साबित हुई हैं।