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क्या भारतीय समाज में आज भी Periods को वर्जित माना जाता है?

भारत में महिलाओं के पीरियड्स (Periods) को हमेशा एक समस्या समझा जाता रहा है इसे हमेशा समाज में छुपाकर रखा जाता है। मासिक (Periods) धर्म जो की महिलाओं में एक बेहद नेचुरल साइकिल है लेकिन आज भी समाज में वर्जित माना जाता है। यह एक ऐसा विषय है जिस पर आज भी भारत में चर्चा करना गलत माना जाता है। भारतीय समाज ने लंबे समय से पीरियड्स को वर्जित माना है। आज भी लोग “लैंगिक समानता” शब्द सुनते ही घबरा जाते हैं। हमें इस पर चुप्पी तोड़नी चाहिए ताकि महिलाएं और लड़कियां अपने पीरियड्स के बारे में सुरक्षित, स्वस्थ, आत्मविश्वास से और बिना शर्म के बात कर सकें।

क्या कहता है WHO का डेटा?

आपको बता दें कि WHO के अनुसार आज भी भारत में मासिक धर्म की स्वच्छता को प्राथमिकता नहीं माना जाता है। भारत की 400 मिलियन मासिक धर्म वाली महिलाओं में से 20 प्रतिशत से भी कम सैनिटरी पैड का उपयोग करती हैं। शहरी क्षेत्रों में यह संख्या बढ़ रही है। आपको यह जानकर हैरानी ज़रूर होगी की 52 फीसदी शहरी महिलाएं भी माहवारी के दौरान अस्वछ तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। जिससे स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है। ऐसा कहा जाता है कि भारत में केवल 20% महिलाओं की पहुंच सैनिटरी नैपकिन तक है। जब हम भारत की बात करते हैं तो एक और बड़ी समस्या यह है कि 80% महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन के बारे में जानकारी नहीं है। इसके अलावा शिक्षित महिलाएं मासिक धर्म के दौरान साफ-सफाई के प्रति भी अनभिज्ञ होती हैं।

मासिक धर्म (Periods) महिलाओं के जीवन का एक हिस्सा है, फिर भी भारत में लड़कियों और महिलाओं को हर महीने सैनिटरी नैपकिन लेने की परेशानी से गुजरना पड़ता है। भारतीय आबादी का एक बड़ा वर्ग मासिक धर्म को गंदा मानता है। मासिक धर्म में नैपकिन का उपयोग हर महीने होता है, लेकिन फिर भी नैपकिन को काले प्लास्टिक की थैलियों में गुप्त रूप से लपेटा जाता है जो अक्सर लड़कियों को हर बार सैनिटरी नैपकिन खरीदने पर दिया जाता है।

राज्य सरकारें स्कूलों में मुफ्त सैनिटरी नैपकिन मुहैया कराती हैं

सरकार ने ‘राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम’ के तहत 2014 में राष्ट्रीय अवधि स्वच्छता योजना शुरू की थी। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों के बीच मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सैनिटरी नैपकिन बनाने के लिए स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षित करना है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और केरल में राज्य सरकारें स्कूलों में मुफ्त सैनिटरी नैपकिन प्रदान करती हैं। किशोरी स्वास्थ्य योजना के तहत किशोरियों को सैनिटरी पैड खरीदने के लिए 300 रुपये दिए जाते हैं।

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बिहार सरकार अपनी महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म के लिए हर महीने दो दिन की छुट्टी देती है। महिलाएं बिना किसी औचित्य के महीने के किसी भी दिन मासिक धर्म की छुट्टी ले सकती हैं। 2021 में, आंध्र प्रदेश की राज्य सरकार ने भी एक योजना शुरू की। जिस के तहत छात्राओं के लिए जागरूकता कक्षाएं आयोजित की जाएंगी।