सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने चीन (China) के कहने पर अपने कट्टर दुश्मन ईरान के साथ हाथ मिलाया है। सऊदी अरब को पारंपरिक रूप से अमेरिका का करीबी समझा जाता है। लेकिन, मोहम्मद बिन सलमान के सत्ता संभालने के बाद से ही सऊदी अरब और अमेरिका की दूरियां बढ़ती जा रही है। वहीं, सऊदी अरब, रूस और चीन (China) जैसे अमेरिका के पुराने दुश्मनों के करीब जा रहा है। पिछले कुछ महीनों में सऊदी अरब ने एक के बार एक कई फैसले ऐसे लिए हैं, जो अमेरिकी हितों के खिलाफ हैं।
सबसे पहले सऊदी अरब के नजरिए से देखें तो उसे पता है कि आने वाले समय में इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल्स और तेजी से बदलती तकनीकों के कारण तेल पर दुनिया की निर्भरता कम हो सकती है। इस कारण वह अब दुनिया के नक्शे पर एक पर्यटक देश के रूप में भी उभरना चाहता है। वहीं चीन जहां दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा जनसंख्या है। वहां के पर्यटकों को वह रिझाना चाहता है। उधर, चीन के भी अपने हित हैं। वह बेल्ट एंड इनिशिएटिव के जरिए मध्य एशिया के साथ ही मिडिल ईस्ट देशों को भी साधना चाहता है। ऐसे में सऊदी अरब उसका सबसे बड़ा स्ट्रेटेजिक पार्टनर बन सकता है। यह बात चीन जानता है।
China से नजदीकियां क्यों बढ़ा रहा सऊदी अरब
सऊदी अरब के विजन 2030 का एक सबसे बड़ा फोकस ट्रेवल एंड टूरिज्म है। ऐसे में अरब नए दोस्त चीन को इसलिए तवज्जो देना चाहता है क्योंकि चीन 2019 में पर्यटकों के स्रोत के रूप में विश्व में नंबर एक पर था। चीनी लोगों ने 155 मिलियन विदेशी यात्राएं की हैं और चीन के बाहर छुट्टियां मनाते हुए 250 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च किया है। सऊदी अरब जानता है कि चीनी पर्यटकों को रिझाना तभी संभव हो सकता है, जब चीन से मजबूत रिश्ते हों।
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सऊदी अरब इस दशक के अंत तक पर्यटन राजस्व के तौर पर सालाना 46 बिलियन डॉलर कमाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में खाड़ी के सबसे शक्तिशाली देश को लगता है कि इस काम में चीनी पर्यटक सबसे बड़ी भागीदारी निभा सकते हैं। 2019 में सऊदी अरब ने पर्यटन के जरिए रिकॉर्ड 19.85 बिलियन डॉलर कमाए थे, लेकिन बाद में कोरोना आ गया। अब वह नए सिरे से पर्यटन को बढ़ाना चाहता है।