हुंजा, शिना और पश्तू जनजातियों की समस्याओं से प्रधानमंत्री को अवगत कराएंगे: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयो
Community Fraternity: हुंजा, शिना और पश्तू जनजातियों की समस्याओं पर विचार के लिए 17 अगस्त गुरुवार को श्रीनगर में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। कश्मीर सेवा संघ की तरफ से आयोजित इस सम्मेलन में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा भी उपस्थित थे। उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि दुनिया की इस सबसे खूबसूरत घाटी में खुशी एक बार फिर उसी तरह लौट कर आए जैसी हमारे बुजुर्गों ने बनाई थी। इस मौके पर कश्मीर सेवा संघ के प्रमुख फिरदौस बाबा ने सकारात्मक बदलाव लाने में सामूहिक कार्रवाई के महत्व पर जोर दिया।
आयोग के चेयरमैन लालपुरा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां के लोगों के बुजुर्ग हैं, इनके भाई की तरह हैं। हम सब मिलकर इसके विकास के लिए प्रयत्न करेंगे।
सम्मेलन का मकसद हुंजा, शिना और पश्तू जनजातियों की आर्थिक, भौगोलिक और सामाजिक समस्याओं पर चर्चा करना और उसका समाधान तलाशना था। लालपुरा ने इन गंभीर मुद्दों पर ध्यान दिलाने के लिए कश्मीर सेवा संघ के प्रयासों की सराहना की। लालपुरा ने विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने एकजुट और मजबूत समुदाय बनाने के लिए समावेशिता और पारस्परिक सम्मान की आवश्यकता पर जोर दिया।
सम्मेलन में अनेक विशेषज्ञ, विद्वान, सामुदायिक नेता और हितधारक एक साथ आए, जिन्होंने इन समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए व्यावहारिक चर्चा की। लालपुरा ने उपस्थित लोगों को आश्वासन दिया कि उनकी वास्तविक मांगों और चिंताओं से प्रधानमंत्री को अवगत कराया जाएगा।
उन्होंने अल्पसंख्यक समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने, यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर दिया कि उनकी आवाज सुनी जाए और उनके अधिकारों को बरकरार रखा जाए।
कश्मीर सेवा संघ के अध्यक्ष फिरदौस बाबा ने कहा, “हमारा मिशन हमारे समुदाय के भीतर एकता, विविधता और सद्भाव को बढ़ावा देना है। इस सम्मेलन ने सार्थक संवाद के लिए एक मंच प्रदान किया जो ठोस समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा।”
चर्चा में आर्थिक सशक्तीकरण, बुनियादी ढांचे के विकास, सांस्कृतिक संरक्षण, सामाजिक एकीकरण, कौशल विकास और एक सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना सहित कई विषयों पर चर्चा हुई। सम्मेलन में हुंजा, शिना और पश्तू जनजातियों की अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के महत्व को रेखांकित किया गया। फिरदौस बाबा का कहना था कि पर्यटन को बढ़ावा देकर हम न केवल आर्थिक अवसर पैदा कर सकते हैं बल्कि समृद्ध परंपराओं का संरक्षण भी सुनिश्चित कर सकते हैं।