मथुरा का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण का ख्याल आने लगता है। यमुना किनारे बसा ये शहर अपनी कई एक से एक पौराणिक कहानियों के लिए मशहूर है। वहीं हर साल यहां करोड़ों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। वैसे तो इस पूरे जिले में हजारों मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिर सदियों से विशेष महत्व रखते हैं। यहां मथुरा नगर, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, बरसाना और नंदगांव का अस्तित्व श्रीकृष्ण के जन्म से भी पहले से है। अगर आप भी श्री कृष्ण से कुछ रहस्य और इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं, तो इस लेख को जरूर पढ़ें। आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी कुछ अनोखी बातें बताने वाले हैं।
कृष्ण जन्मस्थली
पौराणिक कथाओं के मुटबैक जब कृष्ण का जन्म हुआ था तब कारागृह के द्वार अपने आप ही खुल गए थे और उस समय सभी सिपाही भी निद्रा में थे। लेकिन क्या आपको मालूम है कि जिस कारागृह में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था वहां आज क्या है? आपको बता दें कि आज वहां एक भव्य मंदिर और उस कारागृह में आज भी कृष्ण जी की मूर्ति है।
ऐसा भी कहा जाता है कि कारगार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की याद में एक मंदिर बनवाया था। आम लोगों का मानना है कि यहां से मिले शिलालेख पर ब्राहम्मी-लिपि में लिखा है। इससे पता चलता है कि शोडास के राज्य काल में वसु नाम के एक व्यक्ति ने श्री कृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, तोरण द्वार और एक वैदिक बनवाया था। सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400ईसवी में हुआ था। ये काफी भव्य मंदिर था। उस दौरान इस मंदिर की स्थापना संस्कृति और कला के रूप को प्रदर्शित करने के लिए की गई थी। उस दौरान यहां हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास किया गया था।
विजयपाल देव के वक्त बना तीसरा मंदिर
खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख को देखने के बाद मालूम होता है कि तीसरी बार मंदिर का निर्माण 1150ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान जज्ज नाम के एक व्यक्ति ने किया था। उसने काफी भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। लेकिन इस मंदिर को 16वीं शताब्दी की शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में तोड़ दिया गया था। वहीं करीब 125सालों एक बाद जहांगीर के शासन में ओरछा के वीर सिंह वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी जगह पर चौथी पर मंदिर का निर्माण करवाया था। कहते हैं इस मंदिर की भव्यता को देख औरंगजेब ने साल 1669में इसे तुड़वा दिया था और इसके एक हिस्से पर ईदगाह निर्माण करवा दिया था। यहां के कई अवशेषों से पता चलता है कि मंदिर के चारों ओर दीवार का परकोटा था।