पश्चिम से मांग में कमी से चीन के निर्यात क्षेत्र को झटका लया है।इससे बीजिंग की भारतीय बाजार पर निर्भरता और इसकी बढ़ती खपत प्रवृत्तियों में और वृद्धि हो सकती है। मई में चीन का निर्यात अप्रैल में 8.5 प्रतिशत की वृद्धि के बाद साल-दर-साल 7.5 प्रतिशत गिरकर तीन महीने के निचले स्तर 283.5 अरब डॉलर पर आ गया। यह चार महीने में सबसे बड़ी गिरावट है। आर्थिक अनिश्चितता यूरोप और यहां तक कि अमेरिका को जकड़े हुए है, ऐसे में बीजिंग के निर्यात क्षेत्र के लिए संघर्ष जारी रहने की संभावना है। यह बीजिंग के लिए चिंता का कारण इसलिए होगा, क्योंकि यह आर्थिक सुधार की राह को और भी कठिन बना सकता है।
आईएनजी में ग्रेटर चीन के मुख्य अर्थशास्त्री आइरिस पैंग ने कहा, “यू.एस. और यूरोप में उच्च मुद्रास्फीति को देखते हुए वहां से मांग कमज़ोर रहनी चाहिए, जो चीन में प्रसंस्करण मांग को भी कम करती है।”
अमेरिका को होने वाले चीन का निर्यात एक साल पहले की अवधि की तुलना में 18.2 प्रतिशत गिरा है। इसी तरह यूरोपीय संघ को होने वाला निर्यात 26.6 प्रतिशत गिर गया है। हालांकि, डेटा वेबसाइट ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स से पता चला रूस में विशेष रूप से ऊर्जा के शिपमेंट में 114 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
एक उद्योग निकाय के एक व्यापार विश्लेषक ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “चीन को अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत की आवश्यकता है, वास्तव में वह उत्सुक है कि भारत आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी) में भी शामिल हो जाये, क्योंकि नई दिल्ली के साथ व्यापार तब और भी आसान हो जाता है। भारत की जनसांख्यिकी और बढ़ती खपत चीन के लिए एक तैयार बाज़ार प्रदान करती है।”
2022 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 135.98 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। जहां यह मुख्य रूप से भारत से आयात में वृद्धि के कारण था,वहीं यह प्रवृत्ति इंगित करती है कि दोनों देशों ने राजनीतिक गतिरोध जारी रहने के बावजूद आर्थिक संबंधों को नुक़सान नहीं होने दिया है। हालांकि, चीन को भारत का होने वाला निर्यात 2022 में गिर गया था, जिससे पहले से ही महत्वपूर्ण व्यापार घाटा हो गया।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “हम इस तथ्य से अवगत हैं कि चीन से आयात में वृद्धि हुई है और ध्यान आत्मनिर्भर भारत पर है, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि हमारे बीच चल रहे व्यापार संबंध हैं, जिन्हें अचानक से समाप्त नहीं किया जा सकता है और यह एक ऐसी गतिविधि है, जिसे आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए – यह केवल हमारी अर्थव्यवस्था के लिए और अधिक अच्छा होगा। आख़िरकार हम पड़ोसी हैं और हमें व्यावहारिक होने की ज़रूरत है।”
सक्रिय फ़ार्मास्युटिकल सामग्री (एपीआई), रसायन, ऑटो घटक, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल मशीनरी, प्रमुख आयात वस्तुयें हैं। ये विनिर्माण क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण कच्चे माल हैं।
भारत को दुनिया के अगले विनिर्माण केंद्र के रूप में प्रदर्शित करने की कोशिश कर रही नरेंद्र मोदी सरकार ने व्यवसायों को आश्वासन दिया है कि कच्चे माल के निरंतर प्रवाह को किसी भी बिंदु पर नहीं रोका जायेगा। पहली बार 100 बिलियन डॉलर का निशान को छुआ है।
चीन की निर्यात आधारित विकास रणनीति
चीन का आर्थिक विकास निर्यात से संचालित रहा है। चीन की निर्यात-संचालित अर्थव्यवस्था दशकों से दुनिया की कार्यशाला रही है। जैसा कि साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने उल्लेख किया है कि 2001 में जब चीन विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में शामिल हुआ, तो इस देश का विश्व के निर्यात में 4 प्रतिशत का योगदान था, और 2017 तक यह बढ़कर 13 प्रतिशत हो गया।
हालांकि, चीनी निर्यात क्षेत्र के लिए चुनौतियां अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के साथ शुरू हुईं थी, जिसके बाद कोविड 19 महामारी आ गयी थी।