जिस पार्टी के पास 120 विधायकों का बल हो, जिसके पास सरकार बनाने के लिए जन समर्थन हो, जो व्यक्ति ढाई साल से सरकार बनाने के लिए तत्पर हो, जिस व्यक्ति ने छलबल से सत्ता में बैठे दल को पटखनी देते हुए राज्यसभा चुनाव और एमएलसी चुनाव में अपने प्रत्याशियों को ज्यादा संख्या में जितवाया हो उस दल और उस व्यक्ति ने राज्य के शीर्ष पद से दूरी क्यों बनाई- यक्ष प्रश्न है। गुरुवार की शाम को महाराष्ट्र के राजभवन में शिव सेना से अलग हुए 39 विधायकों के दल के नेता एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेली।
महाराष्ट्र में अब शिंदे युग की शुरूआत हो चुकी है। इस नए युग के साथ कई नए प्रश्न भी महाराष्ट्र की सियासत के सामने हैं। सबसे पहला सवाल यह है कि, क्या शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ही असली शिवसेना है। दूसरा सवाल- मातोश्री में बैठकर सियासत करने का दम ठोंकने वाले उद्धव ठाकरे का क्या होगा। तीसरा सवाल यह भी मातोश्री उद्धव ठाकरे की पैतृक संपत्ति है या शिवसेना की संपत्ति है। चौथा सवाल यह कि मातोश्री में बैठने का हक किसको है। पांचवा सवाल- क्या उद्धव ठाकरे अब शिवसैनिक एकनाथ शिंदे का स्वागत करेंगे क्यों कि अपने आखिरी संबोधनों में से एक में कहा था कि अगर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं तो वो उन्हें पद देने के तैयार हैं, शिंदे आएं वो उनका स्वागत करेंगे।
महाराष्ट्र की सियासत में ये केवल पांच ही नहीं ढेर सारे सवाल हैं। धीरे-धीरे इन सभी सवालों के जवाब समय देता ही रहेगा। ये जवाब जब आंएगें तब आएंगे, सबसे पहले उस यक्ष प्रश्न पर चर्चा करते हैं जो देवेंद्र फड़नवीस के समर्थकों से लेकर बीजेपी के तमाम वर्कर्स के दिमाग में कौंध रहा है। सवाल तो खुद उद्धव ठाकरे और मराठा राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार के दिमाग में भी कौंध रहा होगा कि मोदी-अमित शाह और जेपी नड्डा आगे कौन सी चाल चलने वाले हैं?
उद्धव ठाकरे और उनके बड़बोले संजय राउत निशब्द हैं। उद्धव समर्थक शिवसैनिक असमंजस में हैं। शरद पवार ‘घाघ’ राजनेता हैं। उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से परिवर्तन को स्वीकार करने का नाटक किया है। अब शरद पवार नेता प्रतिपक्ष के पद पर ऐसे व्यक्ति को बैठाना चाहते हैं जो शिंदे-फड़नवीस की चालों पर नजदीकी से निगाह रख सके। उद्धव और शरद पवार अपने-अपने तरीकों से इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने की कोशिश कर ही रहे होंगे। लेकिन उन राजनीतिक पंडितों के दिमाग में क्या घूम रहा होगा जो देवेंद्र फड़नवीस के ट्वीट, …मैं समुंदर हूं लौट कर आऊंगा’ का हवाला देकर कह रहे थे कि मराठा राजनीति का समुंदर लौट आया!
बीजेपी और संघ मुख्यालय से हमारे पास जो जानकारी आई है, उसके अनुसार जैसे राम और कृष्ण के अवतार का कोई एक कारण नहीं बल्कि अनेक कारण और कथाएं हैं। वैसे ही महाराष्ट्र की कुर्सी पर देवेंद्र फड़नवीस की जगह एकनाथ शिंदे को बैठाए जाने के कारण और कथाएं हैं। पहली कथा यह है कि मोदी-शाह और नड्डा की निगाहें राजस्थान और झारखण्ड पर भी हैं। सचिन पायलट और हेमंत सोरेन को संकेत है कि अगर वो एनडीए के साथ आते हैं तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा।
दूसरी कथा, वही कि उद्धव ठाकरे को बीजेपी नेतृत्व उनकी जगह दिखाना चाहता था और बीएमसी चुनावों में उद्धव समर्थकों को पटखनी देना चाहता है। बीएमसी के चुनाव में बीजेपी और शिवसेना-शिंदेगुट (अगर उद्धव शिंदे को नहीं स्वीकारते हैं तो) के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी और उद्धव गुट को बीएमसी की सत्ता से बाहर करेगी।
तीसरी कथा में थोड़ा पेंच है। वो पेंच भी आपकी समझ में जल्दी आ जाएगा। जिन लोगों ने बुधवार की शाम न्यूज चैनलों की लाइव कवरेज देखी होगी तो उन्हें शिंदे गुट के केसरवार का फोन-इन लाइव स्टेटमेंट याद होगा। केसरवार ने टीवी चैनल पर फोन के माध्यम से कहा था कि, उद्धव ठाकरे का इस्तीफा खुशी की बात नहीं है। हम यह नहीं चाहते थे कि साहब (उद्धव ठाकरे) इस्तीफा दें। साहब हमारे नेता हैं। हमारी निष्ठा साहब के साथ है। हम शिव सैनिक हैं। हम बाला साहेब के शिवसैनिक हैं। बाला साहेब के उत्तराधिकारी के विरुद्ध हम कैसे हो सकते हैं। हम उनके निष्ठावान हैं।
केसरवार का यह बयान बहुत विस्फोटक था। कुछ लोगों का मानना है कि केसरवार के इस बयान के बाद बीजेपी और संघ के रणनीतिकारों के कान खड़े हो गए। उन्हें ऐसा लगा कि देवेंद्र फड़नवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद ढाई साल वाली पुरानी दुर्घटना हो सकती है। मतलब यह कि जिस तरह अजित पवार ने फड़नवीस को धोखा दिया कहीं वैसा ही न हो जाए। इसलिए बीजेपी नेतृत्व ने बहुत गोपनीय ढंग से रणनीति बदली और सत्ता एकनाथ शिंदे को सौंप दी। बीजेपी नेतृत्व के कान खुद एकनाथ शिंदे के बयान से भी फड़फड़ाए थे। गोहाटी में एकनाथ शिंदे ने मीडिया से कहा था कि पहले उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने दो, आगे की रणनीति पर बीजेपी नेतृत्व से बाद में चर्चा की जाएगी।
महाराष्ट्र का नेतृत्व एकनाथ शिंदे को सौंपे जाने की पांचवी कथा यह सुनी जा रही है कि बीजेपी नेतृत्व महाराष्ट्र को दो हिस्सों में बांटना चाहती है। महाराष्ट्र से अलग कर विदर्भ राज्य बनाना चाहती है। बीजेपी नेतृत्व ने देवेंद्र फड़नवीस को इस मुद्दे को विश्वास में लेने का प्रयास भी किया और आश्वासन भी कि विदर्भ राज्य प्रस्ताव सदन में पास होते ही गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी और उन्हें ही नए राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। इसलिए वक्त का तकाजा है कि वो सत्ता की कुर्सी एकनाथ शिंदे को सौंप कर उनके डिप्टी बन जाएं। देवेंद्र फड़नवीस के लिए यह तो आसान था कि वो सत्ता की कुर्सी एकनाथ शिंदे को सौंप दें लेकिन उनका डिप्टी बनना विष का प्याला पीने के समान था। इसलिए उन्होंने शिंदे के नाम का ऐलान करते समय ही कह दिया कि वो सत्ता से बाहर रहकर उनका सहयोग करेंगे।
फड़नवीस के इस ऐलान से दिल्ली से लेकर मुंबई बाया नागपुर हड़कम्प मच गया। शाम चार बजे से सात बजे तक कितने फोन हुए, किस-किस को फोन हुए। यह कहना मुश्किल है, लेकिन दिल्ली-नागपुर-मुंबई सब डोल रहे थे। उसके बाद क्या हुआ वो सब आपके सामने है। फड़नवीस, एकनाथ शिंदे के डिप्टी हैं। शिंदे कैबिनेट की पहली बैठक में शामिल भी हुए।
इन कथाओं के बाद, एक नई कहानी ने जन्म लेना शुरू कर दिया है। यह कहानी दिल्ली-मुंबई के मध्य में स्थित भोपाल में जन्म ले रही है। आज से लगभग 2 साल 2 महीने और 10 दिन पहले कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया 22 विधायकों सहित बीजेपी में शामिल हो गए थे। उस समय माना जा रहा था कि श्रीमंत को मुख्यमंत्री पद दिया जाएगा। भोपाल में सिंधिया के समर्थकों में फुसफुसाहट है कि जब 39 विधायक लाने वाले एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है 22 विधायक लाने वाले श्रीमंत को भी तो मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। अब भी समय है, अगले साल 2023 के नवम्बर-दिसंबर में मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं। शिवराज सिंह के चेहरे पर चुनाव जीतना बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर है।