भारत में कई कट्टरपंथी ऐसे हैं जो देश के नाम पर कलंक हैं। वो रहते तो यहां पर हैं लेकिन भाषा पाकिस्तान की बोलते हैं। जब भी यहां पर सरकार कुछ नया फैसला लेती है तो ये लोग जमकर हंगामा मचाने में जुट जाते हैं। उन्हें इसके फायदे से हो रहे मतलब से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें सिर्फ इसका विरोधा कर अपना चेहरा और राजनीति चमकाना है। पिछले समय में जो हिंसक घटनाएं हुई हैं उससे देश को आर्थिक रूप से तगड़ा नुकसान पहुंचा है। जब सलाना जीड़ीपी आती है तो यही कट्टरपंथी हल्ला करना शुरू कर देते हैं। लेकिन, देश की अर्थवस्यवस्था को चोट पहुंचाने का तो काम यही कर रहे हैं। इन्हीं के चलते देश के मासूम और बेगुनाह लोगों को भारी परेशानी के सामना करना पड़ता है। इस वक्त एक डेटा सामने आया है जिसमें बताया गया है कि, सीएए/एनआरसी, किसान आंदोलन, पैगंबर विवाद के बाद भारतीय सेना के लिए लागू की गई अग्निपथ योजना के चलते बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है और इससे देश को 646 अरब डॉलर का तगड़ा नुकसान पहुंचा है। इसका जिम्मेदार कौन हैं? सिर्फ और सिर्फ वो कट्टरपंथी जिन्होंने अपने फायदे के लिए लोगों को गुमराह किया और हिंसा को भड़काया।
भारत में केंद्र सरकार जब भी कुछ नया करती है तो यहां पर विरोधी इतने ज्यादे बैठे हैं कि इन्हें पचता ही नहीं कि मोदी सरकार कैसे इतने बड़े और देशहित के फायदे वाले फैसले ले सकती है। उन्हें अच्छे से पता होता है कि ये योजनाएं लोगों के हित में है। लेकिन, वो लोगों को लगत इन्फॉरमेशन देकर भड़काना शुरू कर देते हैं। उदाहण के तौर पर सीएए/एनआरसी ही देख ले जिसमें देश भर में भारी संख्या में मुसलमानों ने जमकर विरोध किया। विरोध कर रहे अधिकतर लोगों को पता ही नहीं था कि असल में मुद्दा क्या है। कई वीडियो सामने आए जिसमें ये कहते देखा गया कि, उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता है बस बताया गया है कि ये उनके खिलाफ है। इसलिए वो चले आए। किसान आंदोलन में यही देखने को मिला। इन दोनों ही हिंसक घटनाओं में बाहर से देश को कमजोर करने वाली जमात और अन्य संगठनों ने जमकर पैसे दिए। जिसके दम पर इन्होंने देश को कमजोर करने के लिए अपनी जान लगा दी। इन्होंने जो किया उसका भुगतान अब देश के वो मासूम लोग करेंगे जिन्हें इससे कोई लेना-देना ही नहीं है। इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगी। क्योंकि, इन हिंसक प्रदर्शनों में सरकारी चीजों को जमकर नुकसान पहुंचाया गया। बसों में आग लगा दी गई, कई भवनों को जला दिया गया, ट्रेनों के डिब्बे फूंक दिए गए। कई दिनों तक कई जगहों पर ट्रेन सेवा को बंद करना पड़ा। सड़कों पर जाम लगा दिया गया। कई महीनों तक सड़क बंद रहें।
ग्लोबल पीस इंडेक्स में भारत 163 देशों की सूची में 135वें स्थान पर है। भारत के बात पाकिस्तान और चीन क्रमश 54वें और 138वें स्थान पर काबिज हैं। इन हिंसक घटनाओं में भारत को 646 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है। इन पैसों से देश के बजट को बढ़ाया जा सकता था। कई तरह की कल्याणकारी योजनाएं लागू की जा सकती थीं। लेकिन, हिंसा की आग ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। भारत में हिंसा की आर्थिक लागत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का छह फीसदी है। यानी जितनी भारत की जीडीपी है, उसका छह फीसदी हिस्सा सिर्फ हिंसा में नष्ट हो चुका है। पिछले कुछ साल में देश में कई मुद्दों को लेकर हिंसक प्रदर्शन हो चुके हैं। इस कारण कर्फ्यू, इंटरनेट शटडाउन जैसे सख्त कदम भी उठाने पड़े हैं। इनके अलावा आतंकवादी और नक्सली हमलों के कारण भी देश को तगड़ी आर्थिक चोट पहुंच चुकी है। इन घटनाओं में जान-माल की हानि के अलावा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देश को भी नुकसान उठाना पड़ा है।
भारत में हिंसा का आर्थिक प्रभाव 1,170,922 मिलियन डॉलर पड़ा। 6 प्रतिशत जीडीपी को नुकसान पहुंचा। इसके साथ ही इस हिंसाओं की आर्थिक कीमत 645,843 मिलियन डॉलर है। इसी तरह पाकिस्तान में हिंसा का आर्थिक प्रभाव 148,637 मिलियन डॉलर पड़ा। 8 प्रतिशत जीडीपी को नुकसान पहुंचा। इस हिंसाओं की आर्थिक कीमत 80,303 मिलियन डॉलर रही। चीन में हिंसा का आर्थिक प्रभाव 1,951,603 मिलियन डॉलर पड़ा। 4 6 प्रतिशत जीडीपी को नुकसान पहुंचा। हिंसाओं की आर्थिक कीमत 1,049,173 मिलियन डॉलर है।
वैश्विक शांति सूचकांक में आइसलैंड दुनिया का सबसे शांत देश रहा है। दूसरे स्थान पर न्यूजीलैंड और तीसरे पर आयरलैंड है। सबसे ज्यादा अशांत देशों की बात करें तो इसमें शिर्ष पर अफगानिस्तान है। ये 163 देशों के इस सूचकांक में भी अफगानिस्तान को आखिरी स्थान मिला है। इसके ऊपर यमन और सीरिया काबिज हैं। ये तीनों देश गंभीर रूप से आतंकवाद और गृहयुद्ध का सामना कर रहे हैं।