भारत के राष्ट्रपति यानी सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बतौर पहली महिला आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू ने 25जुलाई को शपथ ले ली है। संवैधानिक पद की शपथ के बाद द्रौपदी मुर्मू को 21तोपों को सलामी दी गयी है। मालूम हो बतौर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यह पहला संबोधन था। खैर, हमेशा अपने अच्छे स्वभाव जे लिए जाने जानी वाली देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली द्रौपदी मुर्मू की सादगी उनके राष्ट्रपति भवन पहुंचने के बाद भी जारी रही। जी हां, आज जब द्रौपदी मुर्मू देश की सर्वोच्च पद की शपथ लेने पहुंची तब भी उनकी सादगी के कायल हुए दिखे लोग। इस दौरान उन्होंने संथाली साड़ी, सफेद हवाई चप्पल में संसद के केंद्रीय कक्ष में उन्होंने देश के 15वें राष्ट्रपति की शपथ ली।
मुर्मू ने संथाली साड़ी में ली शपथ
गौरतलब है, द्रौपदी मुर्मू ने संथाली साड़ी में आज राष्ट्रपति पद की शपथ लीं। बता दें, संथाली साड़ियों के एक छोर में कुछ धारियों का काम होता है और संथाली समुदाय की महिलाएं इसे खास मौकों पर पहनती हैं। संथाली साड़ियों में लम्बाकार में एक समान धारियां होती हैं और दोनों छोरों पर एक जैसी डिजाइन होती है। इस खास अवसर पर मुर्मू ने इस साड़ी को चुना। यही नहीं देश के सर्वोच्च पद पर शपथ पर पहुंचने वालीं मुर्मू ने इस दौरान भी अपनी सादगी नहीं छोड़ी। सफेद रंग की साड़ी पर हरे और लाल रंग की धारी और सफेद हवाई चप्पल पहन संसद के केंद्रीय कक्ष में पहुंचीं।
जानकारी के लिए बता दें, देश के 15वें राष्ट्रपति बनने के बाद अब मुर्मू अगले 5साल तक राष्ट्रपति भवन में निवास करेंगी। जब वह झारखंड की राज्यपाल थीं तब भी उनकी सादगी की चर्चा हर ओर होती थी। अब राष्ट्रपति भवन में भी मुर्मू की सरलता दिखेगी।
मुर्मू के जीवन की कुछ खास बातें…
द्रौपदी मुर्मू के अगर पारिवारिक जीवन की बात करें तो उनका जन्म 20जून 1958को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे। मुर्मू मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ी हैं। उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया था। जिसके बाद उनके पति और दो बेटों के निधन हो गया, उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं।बेटों और पति के निधन के बाद द्रौपदी मुर्मू ने अपने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं।