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राष्ट्रपति मुर्मू ने छोड़ी अपनी अमिट छाप, जनता के लिए खुला शिमला की पुरानी विरासत-राष्ट्रपति निवास 173 साल बाद

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अभी-अभी शिमला का दौरा समाप्त किया है

आशुतोष कुमार

शिमला: अपनी विरासत इमारतों और औपनिवेशिक स्थलों के लिए जानी जाती शिमला की अपनी पहली यात्रा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भले ही हिमाचल की राजधानी में सिर्फ़ चार दिन बिताये हों, लेकिन उन्होंने इस पहाड़ी शहर को कई तरीक़ों से अपनी तरफ़ आकर्षित किया है।

स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद शिमला को राष्ट्रपति का सबसे बड़ा उपहार उनका 173 साल पुराने राजसी “द रिट्रीट” – भारत के राष्ट्रपति के ग्रीष्मकालीन अवकाश रिसॉर्ट को जनता के लिए खोलने का निर्णय है।

यूरोपीय वास्तुकला का बेहतरीन चित्रण करने वाली दो मंज़िली विरासत वाली इन इमारतों वाला विशाल परिसर जनता की पहुंच से अबतक बाहर रहा था। राष्ट्रपतियों और उनके परिवारों द्वारा संक्षिप्त गर्मियों की छुट्टियों को छोड़कर यह रिट्रीट- जिसे अब राष्ट्रपति निवास, मशोबरा के नाम से जाना जाता है, यह परिसर साल भर बंद रहता था।

इस इमारत की उत्कृष्ट विशेषता यह है कि यह 10,628 वर्ग फुट के क्षेत्र में ‘धज्जी’ (मिट्टी और लकड़ी के तख़्ते का उपयोग करते हुए) दीवार निर्माण के साथ पूरी तरह से एक लकड़ी से बनी संरचना है।

आकर्षक अग्रभाग, सुसज्जित बगीचों और लैंडस्केप के साथ ट्यूलिप गार्डन की मनोहारी इमारत 23 अप्रैल, 2023 से सोमवार और अन्य सरकारी छुट्टियों को छोड़कर सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे के बीच आगंतुकों के लिए खुली अब रहेगी।
मुर्मू ने राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की उपस्थिति में राष्ट्रपति निवास को जनता को समर्पित करने इस समारोह की शोभा बढ़ायी और परिसर के लॉन में लंबे साइडर और देवदार के चारों ओर पट्टिका का अनावरण किया।
अभी तक राष्ट्रपतियों और उनके अतिथियों के ठहरने के दौरान छराबड़ा घाटी स्थित यह भवन वीवीआईपी के उपयोग तक सीमित था।
राष्ट्रपति ने नागरिक स्वागत-द होम में आयोजित एक समारोह में स्वागत करते हुए कहा,“सिकंदराबाद के राष्ट्रपति निलयम बाद यह दूसरी ऐसा भवन है, जिसे जनता के लिए खोल दिया गया है। मैंने आप सभी को नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन और इसके उद्यानों में आने के लिए आमंत्रित किया है, जब भी आप केंद्रीय राजधानी में होते हैं।”
आगंतुक अंदर से हेरिटेज बिल्डिंग की झलक भी देख सकते हैं। वे इसके लॉन, बाग़ों और प्राकृतिक पगडंडियों से चल सकते हैं। आगंतुकों की सुविधा के लिए कपड़द्वार, व्हीलचेयर, कैफ़े, स्मारिका दुकान, शौचालय, पानी निकालने की मशीन और प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की जायेगी।
पिछले सभी राष्ट्रपतियों की कुछ दुर्लभ और घटनापूर्ण तस्वीरों के अलावा, राष्ट्रपति भवन में रहने वाले, विदेशी गणमान्य व्यक्ति, सुखोई 30 एमकेआई लड़ाकू विमान पर उड़ान सहित उनकी हाल की तस्वीरें आदि इस राष्ट्रपति निवास को हिमाचली स्पर्श देते हैं।

थांगका पेंटिंग्स, चंबा रुमाल, कांगड़ा मिनिएचर पेंटिंग्स, पारंपरिक आभूषण कलाकृतियों, पारंपरिक स्थानीय पोशाक कोलाज और ऐतिहासिक इमारतों के हैंड स्केच से लेकर डाइनिंग हॉल सहित इस विरासत भवन में 26 कलाकृतियां प्रदर्शित हैं।

इन रचनात्मक कार्यों की परिकल्पना और निष्पादन हिमाचल प्रदेश राज्य हथकरघा और हस्तशिल्प निगम लिमिटेड की ओर से डिज़ाइन सलाहकार अक्षिता शर्मा द्वारा किया गया था। सभी कलाकृतियां राज्य के स्थानीय कलाकारों द्वारा की गयी थीं।

इसके पहले दिन में राष्ट्रपति ने शिमला में भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान का दौरा किया, जिसे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन द्वारा स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य मानविकी, सामाजिक विज्ञान और प्राकृतिक विज्ञान में उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षणिक कार्य को बढ़ावा देना था।

जगह के इतिहास के अनुसार, रिट्रीट भवन का निर्माण मूल रूप से शिमला के तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक द्वारा किया गया था।

रिट्रीट को लॉर्ड विलियम हे द्वारा कोटि के राजा से पट्टे पर लिया गया था। स्थानीय आबादी इसे “लार्टी साहिब की कोठी” के रूप में जानती थी, क्योंकि स्थानीय लोगों द्वारा लॉर्ड विलियम हे का नाम यही रखा गया था।

1881 में सर विलियम मैन्सफ़ील्ड, कमांडर-इन-चीफ़ और उसके बाद सर एडवर्ड बक द्वारा रिट्रीट का पट्टा लिया गया। 1896 में कोटि के राजा ने अपने अधिकार का इस्तेमाल किया था और इस भवन पर कब्ज़ा कर लिया था।

इसके बाद इस रिट्रीट को कोटि के राजा द्वारा स्थायी पट्टे पर सरकार को सौंप दिया गया। एल्गिन का अर्ल भारत का पहला वायसराय था, जिसने इस रिट्रीट को वाइसरीगल निवास के रूप में इस्तेमाल किया था। लॉर्ड एल्गिन ने भविष्य के वायसराय के लिए इस रिट्रीट का उपयोग सुरक्षित कर दिया था और लगातार अपने सप्ताहांत वहीं बिताये।