चंडीगढ़: प्रमुख सिख पत्रकार से लेखक बने जगतार सिंह ने खालिस्तान की मांग को अमृत संचार (बपतिस्मा) के साथ मिलाने और पंजाब में नफ़रत फैलाने वाले भाषण देकर नशा विरोधी अभियान चलाने के लिए वारिस पंजाब दी के अध्यक्ष अमृतपाल सिंह की निंदा की है।
एक प्रमुख टिप्पणीकार और ‘पंथिक’ मामलों के इतिहासकार जगतार सिंह ने indianarrative.com के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा, “23 फरवरी, 2023 को अजनाला पुलिस से अपने एक साथी तूफ़ान सिंह को मुक्त कराने के लिए एक विरोध प्रदर्शन में अमृतपाल का गुरु ग्रंथ साहिब को अपने साथ ले जाना ग़लत था।”
उन्होंने कहा कि अब यह ‘अकाल तख्त’ (सिखों की सर्वोच्च अस्थायी पीठ) जत्थेदार की ज़िम्मेदारी थी कि वह सभी सिखों को विरोध मार्च के दौरान पवित्र पुस्तक ले जाने से रोकने के लिए एक उपयुक्त निर्देश जारी करता।
उन्होंने अमृतपाल को ‘अमृत संचार’ समारोहों और नशीली दवाओं के विरोधी अभियानों का आयोजन करके सिखों के लिए कुछ विशेष करने का कोई श्रेय नहीं दिया, क्योंकि ऐसा तो कई अन्य धार्मिक प्रचारकों द्वारा लंबे समय तक किया जाता रहा है। जगतार ने कहा, “अमृतपाल के ख़िलाफ़ अबतक कुछ नहीं हुआ, जबकि उसने अजनाला पुलिस स्टेशन पर एक छोटे से मुद्दे को लेकर हमला करने के लिए भीड़ का नेतृत्व किया।”
इंडियन एक्सप्रेस के लिए काम करने के 45 वर्षों के पत्रकारिता अनुभव वाले जगतार ने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए लोगों का ध्रुवीकरण करने के उद्देश्य से अमृतपाल और बाक़ी लोगों द्वारा दिए गए घृणास्पद भाषणों की निंदा की।
उनके विचार में ऑपरेशन अमृतपाल “ग़लत तरीक़े से चलाया गया” । ‘वारिस पंजाब दी’ के आदमियों द्वारा अजनाला थाने का घेराव किए जाने के तुरंत बाद उसे गिरफ़्तार करना आसान हो गया था। जगतार कहते हैं, “राज्य सरकार द्वारा किए गए अनावश्यक प्रचार के परिणामस्वरूप पूरे राज्य में दहशत फैल गयी है।”
आम तौर पर कट्टरपंथियों के प्रति नरम माने जाने वाले जगतार ने दो किताबें-रिवर ऑन फ़ायर और द खालिस्तान स्ट्रगल लिखी हैं।ये दोनों किताबें पंजाब के अशांत काल का इतिहास है। उन्होंने जनता की धारणा के ख़िलाफ़ एक चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया कि “भिंडरावाले ने कभी भी खालिस्तान आंदोलन शुरू नहीं किया, बल्कि वह तो वही कुछ हासिल करने के लिए लड़े, जिसकी 1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में सिख नेताओं द्वारा मांग की गयी थी।
उन्होंने कहा कि मनोचहल पंथिक समिति – जिसमें ग़ैरकड़ानूनी सदस्य शामिल हैं – गुरबचन सिंह मनोचहल, धन्ना सिंह और अरूर सिंह के नेतृत्व में 1986 में खालिस्तान की मांग उठायी गयी थी और बाद में जब वे विभिन्न हल्कों से विरोध के साथ मिले, तो दृश्य से पलायन कर गए। मनोचहल की 1993 में पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गयी थी।
Today marks 30yrs of the Shaheedi (martyrdom) of Baba Gurbachan Singh Manochahal in 1993, founder of the original Panthic committee and Jathedar of the Bhindranwale Tiger Force. Baba Ji lived, fought and died for the establishment of Khalistan till his last breath. 🙏🏽 pic.twitter.com/7GmtglvGFG
— Raj Nothay (@raj1966) February 28, 2023
लेखक ने यह जवाब देने से इनकार कर दिया कि क्या शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष प्रकाश सिंह बादल या शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष गुरचरण सिंह तोहरा कुछ हद तक पंजाब में एक दशक से चली आ रही उथल-पुथल के लिए जिम्मेदार थे।
उन्होंने यह कहकर अमृतपाल और उनके आदमियों द्वारा बनायी गयी वर्तमान स्थिति से बाहर निकलने का रास्ता सुझाने से भी इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “मैं राज्य सरकार का सलाहकार नहीं हूं।”