भारत 15 अगस्त को अपनी आजादी मनाता है तो ठीक एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को पाकिस्तान भीअपनी आजादी मनाता है। पाकिस्तान आजाद तो हुआ लेकिन, इसके साथ ही हिंसा और भारी तबाही लेकर आया। आजादी की कीमत लाखों परिवारों को चुकानी पड़ी। जिस दिन भारत के दो टुकड़े हुए उस दिन महात्मा गांधी के लिए ये 'दिल तोड़ने वाला दिन था'। महात्मा गांधी के दिल में दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के लिए खून बह रहा था और ऐसे में वो 15 अगस्त, 1947 का दिन पाकिस्तान में बिताना चाहते थे। यहां तक कि वो वहां पर बसना तक चाहते थे। ये बात अब तक तो छुपा कर रखी गई थी लेकिन, इसका खुलासा अब हुआ है। ये खुलासा करने वाले कोई और नहीं बल्कि लेखक और पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर ने अपनी किताब 'गांधींज़ हिंदुइस्म: द स्ट्रगल अगेंस्ट जिन्नास इस्लाम' (Gandhi's Hinduism the Struggle Against Jinnah's Islam) में किया है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर ने अपनी किताब में लिखा है कि, महात्मा गांधी 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी का पहला दिन पाकिस्तान में बिताना चाहते थे। उनका यह कदम न तो प्रतीकात्मक था और न ही इस्लाम के नाम पर बने पाकिस्तान को समर्थन का इशारा। कहा जाता है कि महात्मा गांधी की पाकिस्तान विजिट की घोषणाओं पर उस समय के प्रमुख नेताओं ने कोई गौर नहीं किया।
किताब के मुताबिक महात्मा गांधी भारत के विभाजन और एक अप्राकृतिक बॉर्डर को बनाने में विश्वास नहीं करते थे। वह एक हिंदू थे और मानते थे कि भारत में सभी धर्मों को साथ रहना चाहिए। उन्होंने भारत के बंटवारे को एक क्षणिक पागलपन भी बताया था। महात्मा गांधी ने 1909 में लिखी अपनी किताब हिंद स्वराज में कहा था, 'अगर हिंदू मानते हैं कि वह एक ऐसी भूमि पर रहेंगे, जहां केवल हिंदू ही रहें तो वह सपनों की दुनिया में रह रहे हैं। हिंदू, मुसलमान, पारसी और ईसाई जिन्होंने भारत को अपना देश बनाया है वे साथी देशवासी हैं। उन्हें अपने हितों के लिए ही एकता के साथ रहना होगा। दुनिया के किसी भी हिस्से में एक राष्ट्रीयता और एक धर्म पर्यायवाची शब्द नहीं हैं और न ही ये भारत में कभी रहा है।'
आजादी के बाद क्यों पाकिस्तान जाना चाहते थे महात्मा गांधी
एमजे अकबर की किताब के में बताया गया है कि, अजादी के बाद महात्मा गांधी की सबसे बड़ी चिंता दोनों देशों के अल्पसंख्यक थे। पाकिस्तान में हिंदू और भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक थे। उन्होंने कई हिंसाग्रस्त इलाकों का दौरा किया। किताब में लिखा गया है कि, गांधी पूर्वी पाकिस्तान के नोआखली में रहना चाहते थे, जहां 1946 के दंगों में हिंदुओं का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। ऐसा इस दौरान न हो इसलिए गांधी वहां जाना चाहते थे।'
किताब में आगे लिखा गया है कि, 31 मई 1947 को गांधी ने फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर पठान नेता अब्दुल गफ्फार खान से कहा कि वह आजादी के बाद पश्चिमी सीमा का दौरा करना और पाकिस्तान में रहना चाहते हैं। किताब के मुताबिक महात्मा गांधी ने कहा, 'मैं देश के इस बंटवारे में विश्वास नहीं करता। मैं किसी से इजाजत नहीं मांगने जा रहा। अगर वह मुझे इसके लिए मारते हैं तो मैं मुस्कुराते हुए मौत को गले लगाउंगा। अगर पाकिस्तान बना तो मैं वहां जाने का इरादा रखता हूं, इसका दौरा करूंगा और देखूंगा कि वे मेरे साथ क्या करते हैं?'
(अनस अहमद के अंग्रेजी में लिखे मूल लेख से अनूदित)