कश्मीर के गांदरबल में 12 साल बाद पुष्कर मेले का आयोजन हुआ। कड़ाके की ठंड के बीच देश के कई हिस्सों से लोग यहां पहुंचे। लेकिन सबसे ज्यादा भारत के दो राज्यों से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के श्रद्धालु पहुंचे। इस दौरान यहां बहुत अधिक ठंड थी लेकिन इसके बावजूभी भी इसमें हजारों लोग पहुंचे। श्रद्धालु यहां अपने पूर्वजों के पिंडदान के लिए आते हैं। यह मेला वितस्ता (झेलम), कृष्ण गंगा और सिंध (सिंधु) नदियों के संगम पर गांदरबल के शादीपोरा गांव में आयोजिक किया जाता है। यह मान्यता 3000 साल पुराना है इस प्राचीन प्रयागराज मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर अस्थियों का विसर्जन करना हरिद्वार के बराबर है।
यह भी पढ़ें- इस्लाम छोड़ हिंदू बने Waseem Rizvi, यति नरसिंहानंद ने कराया धर्म परिवर्तन
बता दें कि, कश्मीर के गांदरबल के शादीपोरा में वितस्ता (जेहलम) कृष्ण गंगा और सिंध (सिंधु) नदियों का संगम है। इस स्थान को कश्मीर का प्रयागराज कहा जाता है। यहां एक प्राचीन मंदिर भी है जहां पुष्कर मेले का आयोजन किया जाता है। स्नान करने के बाद लोग मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं। मेले में अधिकतर लोग कश्मीरी पंडित समुदाय के होते हैं, जो फिलहाल दक्षिण भारत में बसे हुए हैं। 12 साल बाद हुए मेले के आयोजन में हजारों लोग पहुंचे।
हरिद्वार में गंगा, जमुना और सरस्वती के संगम की ही तरह कश्मीर के प्रयाग संगम के बारे में यह मान्यता है कि यहां पर परिजनों की अस्तियों के विसर्जन करने से उनको स्वर्ग मिलता है। शादिपुर के संगम पर बने प्रयाग राज मंदिर के साथ यहां लगे चिनार का पेड़ की भी अपनी अलग मान्यता है। इस चिनार को गुप्त सरस्वती नदी का रूप माना जाता है। कश्मीर के इस संगम के बारे में निलमत पुराण में भी वर्णन है। और प्राचीन काल से ही यहां पर लोग अपने परिजनों की अस्थिया विसर्जन के लिए आते हैं, खास तौर पर कश्मीरी पंडितों के लिए ये जगह प्रयागराज है।
पुष्कर स्नान के लिए प्रशासन ने कई इंतजाम किए थे ताकि श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो। सुरक्षा के कड़े प्रबंध से लोग खुश भी दिखे। खबरों की माने तो पुष्कर स्नान में लगभग तीस हजार लोगों ने भाग लिया। यह स्नान पर्व 21 नवंबर से शुरू हुआ था और दो दिसंबर को इसका समापन हुआ। तीर्थयात्रियों के लिए व्यवस्था करने वाली पुष्कर समिति के अध्यक्ष भारत रैना ने कहा कि, यह मेला हर 12 साल बाद हिंदू कैलेंडर के अनुसार आयोजित किया जाता है। इससे पहले यह मेला 2009 में आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि, पूरे भारत में हिंदुओं और विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों के लिए इस स्थान का बहुत धार्मिक महत्व है।
यह भी पढ़ें- रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से चीन-पाक में खलबली तेज
गौरतलब हो कि, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अस्थियां भी यहां विसर्जन के लिए लाई गई थी, क्योंकि दोनों के पूर्वज कश्मीरी मूल के हिंदू थे। पिछली बाद पुष्कर मेले का आयोजन 2009 में किया गया और इससे पहले करीब 24 साल के अंतराल के बाद 1998 में मनाया गया था।