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Jammu-Kashmir का ‘जयचंद’ था मकबूल बट्ट, जिसने दुश्मन पाकिस्तान के इशारों पर खेला नफरत और हिंसा का खेल

आज भी मकबूल भट्ट को लेकर गलतफहमी हैं Jammu Kashmir के लोग

जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की नजर शुरु से बुरी रही है। पाकिस्तान घाटी के ही नाम पर दुनिया के सामने अपनी राजनीति करता है। जहां एक ओर घाटी के लोगों को लगता था कि पाकिस्तान उनका सबसे अच्छा दोस्त है और वो उनके लिए आवाज उठाता रहता है तो यह सोच उनकी गलत है। क्योंकि, घाटी का अगर कोई सबसे बड़ा दुश्मन है तो वह है पाकिस्तान। पाकिस्तान के चलते आज भी जम्मू-कश्मूर के लोग शिक्षा और मूल जीवन से अनजान हैं। आज भी कई ऐसी सुविधाएं हैं जिससे घाटी के लोग वंचित हैं। जम्मू-कश्मीर में जो भी पाकिस्तान के साथ जाकर भारत के खिलाफ आवाज उठाता है पाकिस्तान के साथ घाटी के लोग उसे अपना हीरो मानते हैं। एक ऐसी ही कहानी है वर्ष 1966की जब घाटी के लोगों को लगता था की मकबूल बट्ट उनका हीरो है। ये मकबूल बट्ट जिस पाकिस्तान को बड़ा भाई मान रहा था उसके उसी बड़े भाई ने दुश्मनों की तरह हमला किया और जम्मू-कश्मीर को तोड़ने का सबसे बड़ा कारण रहा है। यही पाकिस्तान घाटी में दहशत फैलाता रहा है। यही पाकिस्तान लाखों मासूमों और बेगुनाहों की मौत का जिम्मेदार है।

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मकबूल बट्ट को 11फरवरी को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाया गया था। उसको जहन्नुम वसाल हुए 38 साल हो गए हैं। उसे 1966 में एक बैंक डकैती और  एक अधिकारी की हत्या का दोषी पाया गया था। इसके साथ ही उसने दो अन्य अधाकरियों की भी हत्या कर दी थी। बट्ट ने सीआईडी के पुलिस इंस्पेक्टर अमर चंद को किडनैप कर गोली मार दी थी। जिसके बाद मकबूल बट्ट को गिरफ्तार कर सितंबर 1968 में मौत की सजा जुनाई गई। लेकिन, उसी साल दिसंबर में वो जेल से फरार हो गया और पाकिस्तान भाग गया।

जेल से भागकर पाकिस्तान पहुंचे मकबूल बट्ट को लेकर जब वहां पर सेंदह हुआ तो उसे वहां भी गिरफ्तार कर पाकिस्तान की जेल में डाल दिया गया। उसके बाद 1976 में मकबूल बट्ट चोरी छिपे  कश्मीर लौटा। और कुपवाड़ा में एक बैंक को लूटने की कोशिश की। इसी दौरान उसने एक बैंक कर्मचारी की गोली मारकर हत्या कर दी। मकबूल बट्ट को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और दूसरी बार मौत की सजा दी गई।

 मकबूल बट्ट ने व्यक्तिगत आतंकवाद के कृत्यों का सहारा लेकर कश्मीरी आबादी पर आतंक फैलाने का रास्ता अपनाया। ऐसे में, यह दावा करना कि मकबूल बट्ट 'का रास्ता, हमारा रास्ता' न केवल राजनीतिक रूप से गलत है, बल्कि एक आपराधिक कृत्य है। क्योंकि यह राजनीतिक के लिए सामूहिक कार्रवाई से जनता को रोकता है, हतोत्साहित करता है और राहत देता है।

राजनीतिक परिवर्तन जो सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की ओर ले जाता है या इसके विपरीत आत्म-केंद्रित वीरता के व्यक्तिगत कृत्यों को प्रतिस्थापित करके नहीं बल्कि धैर्य और लगातार वैचारिक लड़ाई और जनता की राजनीतिक लामबंदी के माध्यम से आता है। जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन के संबंध में मकबूल बट्ट का नजरिया गलत था। बट्ट ने खुलेआम दावा किया कि पाकिस्तान बड़ा भाई है। लेकिन वो इसे पहचान न सका।  22अक्टूबर, 1947 में हमला कर जम्मू और कश्मीर राज्य के टूटने का सबसे बड़ा कारण भी भट्ट का 'बड़ा भाई' यानी पाकिस्तान ही  था। यह मुहम्मद अली जिन्ना की सांप्रदायिक नफरत की नीति पर आधारित द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की अवधारणा के प्रति उनकी निष्ठा और वफादारी का प्रमाण है, जिसे तब से कश्मीरी जिहादियों के बीच पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान द्वारा निष्ठापूर्वक खेती की जाती रही है।

बर्मिंघम में बट्ट के कुछ साथियों ने  रवींद्र हरेश्वर म्हात्रे के नाम से एक राजनयिक का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद बट्ट को लेकर भारत सरकार सख्त हो गई है और 11फरवरी, 1984 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में मौत की सजा दे दी गई। आज भी पीओके यानी गुलाम कश्मीर में बट्ट के ऐसे समर्थक हैं जो उसे एक नायक के रूप में देखते हैं। उन्हें लगता है कि कश्मीर के भारतीय कब्जे से लड़ते हुए बट्ट ने अपनी जान दी। लेकिन  सच यह है कि मकबूल बट्ट गलत था। जम्मू-कश्मीर के लोगों का असली दुश्मन पाकिस्तान ही है। क्योंकि पाकिस्तान ही घाटी में आतंक फैलाता है।

मकबूल बट्ट जमात-ए-इस्लामी और पाकिस्तान के जिहादी प्रचार के नशे में था और उसका भी अंत वैसे ही हुआ जैसा कि आतंक को बढ़ावा देने वालों का होता है। मकबूल बट्ट घाटी के लोगों का दोस्त नहीं बल्कि दुश्मन है। उसने अपने ही लोगों के खिलाफ जाकर दुश्मन पाकिस्तान का साथ दिया वो घाटी और देश का दुश्मन है।

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ध्यान रहे 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय के एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। जैसे ही कश्मीर के महाराजा और भारत के अंतिम गवर्नर जनरल लुइस माउंटबेटन के बीच विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए गए, भारतीय सैनिकों ने श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरना शुरू कर दिया और आक्रमणकारियों को पीछे धकेल दिया। भारतीय सेना दरिया पार मुजफ्फरपुर और मीरपुर की ओर आगे बढ़ रहीं थी कि सीज फायर हो गया। दरिया को लाईन ऑफ सीजफायर यानी लाइन ऑफ कंट्रोल मान लिया गया। ये लाइन ऑफ कंट्रोल नहीं पाकिस्तानियों ने कश्मीरियों के लिए लाइन ऑफ डिवाइडेशन बना दिया।