दुनिया के जितने भी खतरनाक आतंकी हैं उनका बसेरा पाकिस्तान में ही है और जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो इसमें सबसे बड़ा हाथ पाकिस्तान का रहा। पाकिस्तान ने तालिबान को पैसे से लेकर हथियार तक की मदद की। यहां तक कि विश्व मंच पर पाक प्रधानमंत्री इमरान खान लगातार आवाज उठाते रहे हैं कि इस चरमपंथी संगठन को दुनिया स्वीकार करे और तालिबान सरकार को मान्यता दे। लेकिन पाकिस्तान को ये कहां पता थी कि यही तालिबान उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठेगा। अब दानों के हालात ऐसे हैं कि ये एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। डूरंड लाइ के नाम से जानी जाने वाली अफगानिस्तान-पातिस्तान (Afghanistan-Pakistan Border) के बीच की सीमा को लेकर तनाव बढ़ गया है।
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इस सीमा को अफगान तालिबान मान्यता नहीं देता है। यही वजह है कि जब से तालिबान अफगानिस्तान में लौटा है, तभी से पाकिस्तान सैनिकों पर हमले बढ़ गए हैं। रविवार को खुर्रम जिले में एक उत्तर-पश्चिमी सीमा चौकी पर पांच पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। इन्हें अफगानिस्तान की जमीन पर रहने वाले चरमपंथियों ने मारा है। इस हमले की जिम्मेदारी तालिबान यानी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली है। इसे पाकिस्तान का लोकल तालिबान भी कहा जाता है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी (Shah Mahmood Qureshi) ने कहा कि इस्लामाबाद ने अफगान तालिबान नेतृत्व से कहा है कि वह चरमपंथियों को नियंत्रित करने के लिए टीटीपी के आतंकवादियों को नियंत्रित करने की अपनी क्षमता के तौर पर देखता है। उन्होंने कहा, अगर तालिबान पाकिस्तान की चिंता पर ध्यान नहीं देता है, तो उनपर कौन विश्वास करेगा। कौन उनके उस दावे पर विश्वास करेगा, जिसमें उन्होंने अल-कायदा और ऐसे ही दूसरे समूहों के साथ रिश्ते खत्म करने का वादा किया है।
बता दें कि, अफगानिस्तान कभी भी इस सीमा को आधिकारिक तौर पर स्वीकर नहीं किया है, जिसके चलते दोनों देश के सैनिकों के बीच हुई झड़प में कई की मौत हो गई है। इससे पहले पाकिस्तान का अफगानिस्तान की पश्चिम समर्थिक सरकार के साथ भी सीमा को लेकर विवाद होता रहा है। वहीं, अपगान की सत्ता में तालिबान के वापसी के बाद पाकिस्तान को लगा कि अब वह जो चाएगा खुल कर करेगा। तालिबान को भारक के खिलाफ इस्तेमाल करेगा। लेकिन, अब यही तालिबान उसके लिए खतरा बनते जा रह हैं