चीनी सैनिकों का सफाया करने के लिए भारतीय सेना ने जो प्लान बनाया है उससे अब शी जिंगपिंग की सेना में डरी हुई है। क्योंकि, अब अगर चीनी सैनिक एलएसी पार करने की जरा से भी हिम्मत करेगी तो उन्हें बिना फायरिंग के ऐसा सबक सिखाया जाएगा कि जिंदगीभर वो इसे भूल नहीं सकेंगे। जी हां, दरअसल इंडियन आर्मी को इसकी खास ट्रेनिंग दी जा रही है। ऐसे में भारतीय सेना अनआर्म्ड कॉम्बेट ( बिना हथियारों की लड़ाई) के लिए भी अपने सैनिकों को ट्रेनिंग दे रही है। ताकि, ईस्टर्न लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर चीन के साथ तनाव होने पर उसे मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके।
बता दें, चीन से सीमा विवाद को देखते हुए एलएसी (LAC) पर भारत अडवांस हथियार और ट्रेनिंग के जरिए स्थिति मजबूत की जा रही है। इसी के साथ अब आईटीबीपी (ITBP) जवानों को मार्शल आर्ट को भी ट्रेनिंग दी जाएगी जिससे गलवान जैसी घटना होने पर जवान आसानी से निपट सकें। इस तरह से गलवान जैसी घटना को दोबारा होने से रोका जा सकता है। साल 2020 में जब गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच भिड़त हुई थी, उस दौरान डंडे, कटीले पंजों का उपयोग हुआ था। जवानों को 15 से 20 तरीके की मार्शल आर्ट सिखाई जाएगी जो कि जूडो, कराटे, क्राव मागाऔर अन्य तकनीकों से जुड़ी होगी।इसमें पंचिंग, किकिंग, थ्रोविंग, जॉइंट लॉक और पिनिंग डाउन जैसी टेक्निक सिखाई जाएगी। पंचकूला के बेसिक ट्रेनिंग सेंटर में तीन महीने के प्रशिक्षण का आयोजन होगा। सीमा पर भेजने से पहले जानों को मार्शल आर्ट में ट्रेन्ड किया जाएगा।
जवानों को कई तरह की मार्शल आर्ट सिखाई जा रही
आईटीबीपी (ITBP) के इंस्पेक्टर जनरल ईश्वर सिंह ने बताया, इस प्रशिक्षण में रक्षात्मक और आक्रामक दोनों तरह की टेक्निक सिखाई जाएंगी। गलवान घाटी में हुए क्लैश के दौरान चीनी सैनिकों ने डंडे, लोहे की रॉड, कटीले तार और पत्थरों का इस्तेमाल किया था। इस क्लैश में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे वहीं चीन ने दावा किया था कि उनके केवल 4 सैनिक ही मारे गए। हालांकि सच्चाई कुछ और ही थी। रूस की न्यूज एजेंसी ने दावा किया था कि इस हाथापाई में चीन के 45 सैनिक मारे गए। वहीं अमेरिका इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक चीन के कम से कम 35 सैनिक मारे गए थे।
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कई तकनीक की मदद
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जवानों को ऐसी ट्रेनिंग दी जाएगी कि वे बिना बंदूक और टैंक के इस तरह की हाथापाई होने पर भी चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा सकें। आईटीबीपी के आईजी ने कहा कि जवानों की शारीरिक क्षमता बढ़ाने और एलएसी पर हिमस्खलन जैसी स्थितियों से निपटने में भी यह ट्रेनिंग काम आएगी। उन्होंने कहा, हम ज्यादा ऊंचाई वाले ठंडे इलाकों में ज्यादा से ज्यादा 90 दिनों के लिए ही जवानों को भेजते हैं। इसके बाद रोटेशन होता है और दूसरी ट्रुप जाती है।