संघ प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान ने एक बार पाकिस्तान के हुक्मरानों की नींद उड़ा दी है। भागवत ने कहा कि भारत को आजादी के साथ बंटबारे का का जख्म देने वाले कभी सुखी नहीं रह सकते। मोहन भागवत ने यह भी कहा कि विभाजन का दर्द, विभाजन को खत्म करके ही दूर किया जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के दिल से एक बार फिर बंटवारे की टीस निकल पड़ी है। भागवत ने कहा है कि इस्लाम के नाम पर भारत के दो टुकड़े करने से केवल भारत ही दुखी नहीं बल्कि दुखी तो वो भी हैं जिन्होंने कुछ लोगों के स्वार्थ के लिए हिंदुस्तान का विभाजन कर दिया। सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरु नानक देव जी का स्मरण करते हुए कहा कि जब भारत पर इस्लाम का आक्रमण हुआ तो उन्होंने भारतवासियों को सावधान किया था कि यह हमला किसी एक पूजा पद्यति पर नहीं बल्कि पूरे देश और समाज पर हैं। गुरु नानकदेव जी की यह सीख आज भी सटीक उतरती है।
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सरसंघचलाक डॉ. मोहनराव भागवत ने भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मन्दिर में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में देश विभाजन की पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि जब भारत पर इस्लाम का आक्रमण हुआ और गुरु नानक देव जी ने सावधन करते हुआ कहा था। यह आक्रमण देश और समाज पर हैं किसी एक पूजा पद्धति पर नहीं। उन्होंने कहा कि, इस्लाम की तरह निराकार की पूजा भारत में भी होती थी किन्तु उसको भी नहीं छोड़ा गया क्योंकि इसका पूजा से सम्बन्ध नहीं था अपितु प्रवत्ति से था और प्रवत्ति यह थी कि हम ही सही हैं, बाकी सब गलत हैं और जिनको रहन है उन्हें हमारे जैसा होना पड़ेगा या वे हमारी दया पर ही जीवित रहेंगे। इस प्रवत्ति का लगातार आक्रमण चला और हर बार मुंह की कहानी पड़ी।
डॉ. भागवत ने कृष्णानन्द सागर की पुस्तक 'विभाजनकालीन भारत के साक्षी' का विमोचन किया। उन्होंने कहा कि, हमारा संविधान और हमारी परम्परा के अनुसार राज्य किसी पूजा (पद्दती) का नहीं होता, राज्य धर्म का होता है और वह धर्म पूजा से संबंध काम रखता है, वह धर्म सबको जड़ोने और सबकी उन्नति के लिए आवश्यक कार्य पर बल देता है। डॉ भागवत ने देश की स्वतन्त्रता को लेकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता के विषय में बताते हुए कहा कि वर्ष 1930में डॉ. हेडगेवार ने सावधान करते हुए हिन्दू समाज को संगठित होने को कहा था।
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उन्होंने कहा कि, भीष्मपितामह ने कहा था कि विभाजन कोई समाधान नहीं है, जबकि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि रणछोड़ कर मत भागो। परन्तु हमारे नेता मैदान छोड़कर भाग गए। मुट्ठी भर लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए हमने कई समझौते किए। राष्ट्रगान से कुछ पंक्तियां हटाईं, राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में परिवर्तन किया, परन्तु वे मुट्ठीभर लोग फिर भी सन्तुष्ट नहीं हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि, यदि हमारे नेताओं ने पाकिस्तान की मांग ठुकरा दी होती तो क्या होता? वह बोले- कुछ नहीं होता, परन्तु तब के नेताओं को स्वयं पर विश्वास नहीं था। वे झुकते ही गए।