कांग्रेस के दो सीनियर लीडर इस दिनों चर्चा में हैं। दोनों की अपनी-अपनी किताबें दुनिया के सामने आई हैं। इनमें से एक कांग्रेसी की किताब देश में सांप्रादायिकता आग भड़काने वाली और मुसलमानों को भड़काने वाली है तो दूसरे कांग्रेसी की किताब के सफों पर लिखा एक-एक हरफ हर हिन्दुस्तानी की आंखें खोलने वाला है। खास तौर पर भारत के मुसलमानों के दिमाग को झकझोर देने वाला है। जिन दो कांग्रेसी नेताओं की किताबें सामने आई हैं, इनमें से एक का नाम सलमान खुरशीद है और दूसरे का नाम रहमान खान है। दोनों की मुसलमान हैं। सलमान खुरशीद ने मुसलमानों को शोषित वर्ग की तरह पेश किया है। हिंदुत्व पर प्रहार तथा अयोध्या के बहाने मुसलमानों को भड़काने और भरमाने की कोशिश की है। दूसरे शब्दों में सलमान खुरशीद की किताब देश की एकता-अखण्डता के खिलाफ साजिश का एक हिस्सा भी हो सकती है। जो बीजेपी-मोदी के विरोध से शुरू हो कर देश विरोध की ओर घूम जाती है।
वहीं, रहमान खान की किताब मुसलमानों की राजनीति करे वाले नेताओं खास तौर पर सलमान खुरशीद और ओवैसी जैसे लोगों के मुंह पर तमाचा है। रहमान खान की किताब मुसलमानों की आंखें खोलने वाली किताब है। अपनी इस किताब के बारे में एक अंग्रेजी अखबार रहमान खान ने कहा है कि मुसलमानों को आत्मनिरीक्षण की जरूरत है। मुसलमानो ंको अल्पसंख्यक मानसिकता से बाहर आना चाहिए। भारतीय मुसलमानों को देश के बहुसंख्यक की दृष्टि से देखने और सोचने की जरूरत है। मुसलमानों इस देश के बहुसंख्यकों की तरह अखण्ड भारत का हिस्सा हैं। मुसलमानों को देश के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभानी होगी।
राज्यसभा के पूर्व उप सभापति रह चुके रहमान खान ने कहा कि देश में करीब 20 से 22 करोड़ मुस्लिम हैं। मेरे हिसाब से वे अल्पसंख्यक नहीं हैं। 22 करोड़ अल्पसंख्यक कैसे हो सकते हैं? मुसलमानों को अल्पसंख्यकों के रंग में रंगा जा रहा है। रहमान खान के तर्को ंको इसलिए भी बल मिलता है कि मुसलमानों ने कई सदियों तक भारत के बड़े भूभाग पर शासन किया है। अंग्रेजों की गुलामी से पहले भारतीय जनमानस मुसलमान शासकों के अधीन था। भारत के बहुसंख्यकों ने मन से या मजबूरी से त्याग और बलिदान ही किया है। आजाद भारत में अगर किसी को विशेष अधिकारों की जरूरत है तो वो हिंदु-सिख-जैन-बौद्ध अन्य भारतीय मत-संप्रदाय के लोग हैं। जिन्होंने भारतीय धर्म और संस्कृति को जीवित रखने के लिए अपने जीवन तक को बलिदान कर दिया है।
रहमान खान की किताब का शीर्षक 'इंडियन मुस्लिम्स: द वे फॉरवर्ड' है। इस किताब में भारतीय मुसलमानों की मौजूदा स्थिति को लेकर कई रोचक बातें लिखी हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम राष्ट्र-निर्माण के लिए आगे आएं। हमें समाज के लिए सहयोग करना है। हमें 'देने वाला' होना चाहिए और समाज को देना चाहिए। अच्छा नागरिक बनने के लिए हमें सरकार से मांगने के बजाए समाज को देना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अनुसार यदि कोई तबका या समुदाय पिछड़ा है और उसे सहयोग की जरूरत है तो संविधान सरकार को सकारात्मक कार्रवाई का अधिकार देता है। उन्होंने कहा कि इसलिए कोई पार्टी सत्ता में आकर किसी समुदाय को फायदा नहीं पहुंचा सकती।
शाह बानो केस, बाबरी मस्जिद का जिक्र करते हुए रहमान खान का कहना है कि इन सारे मुद्दों से भारतीय मुसलमानों को क्या मिला? मुसलमानों को दूसरों पर दोष देना बंद करना चाहिए और खुद को आगे लेकर आना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, भारत के मुसलमान आम तौर पर कांग्रेस को सपोर्ट करते आए हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी इस समुदाय के लिए ज्यादा कुछ कर नहीं पाई। कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय से कोई भी ऐसा नेता नहीं दिया जो इस समुदाय को अपनी ओर खींच सके। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस एक सेक्युलर पार्टी है। कांग्रेस पिछले 70 सालों से पार्टी धर्मनिरपेक्षता की रक्षा कर रही है। मुसलमान इसे सपोर्ट करते हैं। ऐसा नहीं है कि मुसलमान सिर्फ कांग्रेस को सपोर्ट करते हैं। अगर कल कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर खड़ी नहीं होती है, तो राष्ट्र को देने के लिए उनके पास कुछ नहीं है।
रहमान खान ने ओवैसी और सलमान खुर्शीद और असदउद्दीन ओवैसी जैसे नेता और सियासी पार्टियाों पर तंज करते हुए कहा है कि ये लोग और सियासी गुट मुसलमानों का इस्तेमाल करते हैं और उनकी बेइज्जती करते हैं। मुसलमानों को अधिकार है कि वो संविधान में अपने दिए गए अधिकारों के बारे में जानें। देश के विकास और निर्माण के लिए बढ़-चढ़ कर सहयोग करें।
रहमान खान कांग्रेस ही नहीं देश के भी वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं, सलमान खु्र्शीद से भी 'वरिष्ठ'… मगर अफसोस इस बात का है नकारात्मक सोच वाले कांग्रेसी सलमान खुर्शीद और उनकी किताब सुर्खियों में है जबकि देश को एकता के तार में पिरोने का प्रयास करने वाले कांग्रेसी रहमान खान और उनकी किताब कहीं 'चर्चा' में भी नहीं।