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Gyanvapi Masjid: 18 बालिस्त के वेशकीमती पन्ने का शिवलिंग, ज्ञानवापी में छिपे हैं अब भी कई रहस्य

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वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का वजू खाने में दिखने वाली आकृति को लेकर जहां हिंदू पक्ष का दावा शिवलिंग का है, तो वहीं मुस्लिम पक्ष उसे वजू खाने का फव्वारा बता रहा है। ऐसे में यह भी सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या यह वही शिवलिंग हो सकता है जो कभी प्राचीन पन्ना का शिवलिंग हुआ करता था? दरअसल, इसी आकार के पन्ना के शिवलिंग का जिक्र इतिहास में कई स्थानों पर मिलता है। चार सौ ईस्वी में आए चीनी यात्री फाहियान से लेकर 19वीं शताब्दी में काशी के राजा मोतीचंद की लिखी पुस्तक ‘काशी के इतिहास’ में पन्ने से निर्मित 18बालिस्त ऊंचे शिवलिंग का उल्लेख है।

इस बारे में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. एके. सिंह बताते हैं कि चौथी शताब्दी में फाहियान नामक बौद्ध भिक्षु अपने तीन भिक्षु-साथियों के साथ भारत आया। चूंकि बौद्ध धर्म भारत से ही चीन गया था, अत: फाहियान का यहां आने का प्रमुख उद्देश्य बौद्ध धर्म के आधारभूत ग्रन्थ ‘त्रिपिटक’ में एक ‘विनय पिटक’ को ढूंढ़ना था।

फाहियान पहला चीनी यात्री था, जिसने अपने यात्रा-वृत्तांत को लिपिबद्ध किया। चाइनीज भाषा में फाहियान के लिखे रोचक संस्मरणों का हिंदी अनुवाद जगन्मोहन वर्मा ने किया था। इसका पहला संस्करण सन् 1918में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया। इस पुस्तक में जिक्र है कि फाहियान संस्कृत का अध्ययन करने के लिए काशी आया था। तब उसने राजा विक्रमादित्य द्वारा काशी में बनवाए गए आदि विश्वेश्वर देखा था जिसमें पन्ने का शिवलिंग स्थापित था।

आधुनिक इतिहासकार राजा मोतीचंद के ‘काशी का इतिहास’ नामक पुस्तक में उल्लेख है कि वर्ष 1569में जब अकबर के निर्देश पर उनके मंत्री टोडरमल ने विश्वेश्वर मंदिर का पुन: निर्माण कराया तब भी वहां पन्ने का शिवलिंग ही स्थापित किया था। उल्लेखनीय है कि जिस मुकदमे के दायर होने के बाद सर्वे हुआ है, उसकी पिटिशन रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है कि मस्जिद के तहखाने में हरे पत्थर का शिवलिंग है।

वंदेमातरम के विशेषांक में भी जिक्र

वर्ष 1994में ‘राष्ट्र का जागरूक प्रहरी वंदेमातरम्’ के काशी विश्वनाथ विशेषांक के एक अध्याय में 18बालिश्त ऊंचे पन्ने के शिवलिंग का विवरण दिया गया है। इस विशेषांक के लिए सामग्री का संग्रह उस वक्त रामनगर स्थित अमेरिकन इंस्टीट्यूट की लाइब्रेरी से किया गया था। वंदेमातरम की टीम ने छह महीने तक लाइब्रेरी में मुगल इतिहासकारों से लेकर ब्रिटिश अधिकारी जेम्स प्रिसेप की पुस्तकों का अध्ययन किया था।