वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में हिंदू धर्म के चिह्न, मूर्ति और शिवलिंग मिलने के बाद अब कुछ असामाजिक तत्व धमकी और आतंकित करने के रास्ते पर उतर आए हैं। ये तत्व नहीं चाहते हैं कि ज्ञानवापी का सर्वे हो। इसलिए ये लोग हर तरीके से ज्ञानवापी का सर्वे रुकवाना चाहते हैं। ऐसे ही तत्वों के एक कथित गिरोह का नाम है इस्लामिक आगाज मूवमेंट। इस गिरोह की ओर से ज्ञानवापी की सुनवाई कर रहे जज को आतंकित करने के लिए एक धमकी भरा पत्र भेजा है। धान रहे ज्ञानवापी की सुनवाई वाले सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर ने सर्वे का आदेश दिया था। जज दिवाकर को मंगलवार 7 जून को धमकी भरी चिट्ठी मिली है। जिसके बाद उनकी सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी गई है। सरकार और न्यायपालिका ने ज्ञानवापी की सुनवाई यथावत जारी रखने का फैसला लिया है।
रजिस्टर्ड डाक से भेजा गया धमकी भरा पत्र
मामले में वाराणसी के पुलिस आयुक्त ए सतीश गणेश ने बताया कि जज दिवाकर को रजिस्टर्ड डाक द्वारा एक पत्र मिला है, जिसमें कुछ और कागज संलग्न है, इसकी जानकारी उनकी ओर से दी गयी है। उन्होंने कहा कि वाराणसी के पुलिस उपायुक्त वरुणा को इस मामले की जांच सौंपी गई है। जज की सुरक्षा में कुल नौ पुलिसकर्मी लगाए गए हैं और समय-समय पर उनकी सुरक्षा की समीक्षा की जा रही है।
जज को भेजा गया पत्र सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गया है। पत्र में लिखा गया है, अब जज भी भगवा रंग में सराबोर हो चुके हैं। फैसला उग्रवादी हिंदुओं और उनके तमाम संगठनों को प्रसन्न करने के लिए सुनाते हैं। इसके बाद ठीकरा विभाजित भारत के मुसलमानों पर फोड़ते हैं। आप न्यायिक कार्य कर रहे हैं, आपको सरकारी मशीनरी का संरक्षण प्राप्त है। फिर आपकी पत्नी और माता श्री को डर कैसा है…? आजकल न्यायिक अधिकारी हवा का रुख देख कर चालबाजी दिखा रहे हैं। आपने वक्तव्य दिया था कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का निरीक्षण एक सामान्य प्रक्रिया है। आप भी तो बुतपरस्त (मूर्तिपूजक) हैं। आप मस्जिद को मंदिर घोषित कर देंगे।
जज ने दिए थे मस्जिद परिसर का निरीक्षण के आदेश
जज दिवाकर की अदालत ने 26 अप्रैल को ज्ञानवापी परिसर की वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कराने के आदेश दिए थे।इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट 19 मई को अदालत में पेश की गई थी। सर्वेक्षण के दौरान हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजू खाने में ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया था, जिसे मुस्लिम पक्ष ने खारिज करते हुए कहा था कि वह ”शिवलिंग’ नहीं, बल्कि ‘फव्वारा’ है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की एक याचिका पर मामले को जिला जज की अदालत में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। मुस्लिम पक्ष ने जिला अदालत में अर्जी दायर कर कहा था कि यह मामला उपासना स्थल कानून के प्रावधानों के खिलाफ है, लिहाजा यह सुनवाई किए जाने योग्य ही नहीं है।