क्या भारतीय मुसलमान तथ्यों पर बात करने के बजाए धार्मिक रंग देकर मुद्दों को भटकाने की कोशिश में लगा है। ये सवाल इस लिए उठ रहा है क्योंकि बीते कुछ समय में जो बातें हदीस में लिखी हैं उसे कोट किए जाने के बाद मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग इशनिंदा का बहाना बनाकर धार्मिक उन्माद फैलाकर देश की शांति को भंग करने की कोशिश करता नजर आ रहा है।
धर्म के प्रति मुसलमानों की कट्टरता किसी से छिपी नहीं है। यही कारण है कि आए दिन किसी न किसी मुद्दे को बहाना बनाकर दुनिया के किसी कोने में हंगामा मचा रहता है। बात चाहे जेहाद की हो या फिर धर्मिक मामलों के नाम पर होने वाले बवाल की। हर बार यह देखा जाता है कि मुसलमानों का एक वर्ग अपने निजी स्वार्ध के लिए, मुसलमानों के एक बड़े वर्ग को जिन्हें कुरआन और हदीस की सही जानकारी नहीं है, को गुमराह कर समाज में अराजकता फैलाने में कामयाब हो जाता हें। अराजकता फैलाने वाले मुसलमान सिर्फ इस वजह से सड़कों पर पत्थरबाजी और आगजनी करते है क्योंकि मामला उनके धर्म से, कुरआन से या फिर पैगम्बर मोहम्मद और दूसरे धार्मिक नेताओं से जुड़ा होता है।
हाल ही में कुछ ऐसा ही वाक्या भारत में भी देखने को मिला। पैगम्बर मोहम्मद के अपमान के नाम पर सड़कों पर कोहराम मच गया। देखते देखते सैकड़ों की संख्या में मुसलमान जिन्हें ना तो कुरआन की सही समझ है और ना ही उन्होंने कभी हदीस ठीक से पढ़ा है, सड़कों पर पत्थर लेकर उतर गए। देखते देखते पूरा कानपुर शहर दंगाईयों के कब्जें में आ गया। इनमें से कुछ लोग दंगे का वीडियों बनाकर सोशल मीडिया पर तेजी से फॉरवर्ड करने लगे। आलम ये था कि हर कोई मरने मारने पर उतारू हो गया। किसी ने मामले की तह तक जाने की जरूरत नहीं समझी। बात पैगम्बर से जुड़ा है और बोलने वाला गैर-मुस्लिम है तो यकीनन कुछ गलत ही बोला होगा। कुछ मुसलमान इस सच को जानते हुए भी चुप रहे क्योंकि ये मामला उनके मजहब से जुड़ा था।
सऊदी अरब के हदीस की वेबसाइट से जब एक साहब ने सवाल किया कि हजरत आइसा ने किस उम्र में निकाह किया और उनकी रुकसती कितनी उम्र में हुई। उस वेबाइट पर सऊदी अरब के एक मौलवी ने बताता है कि हजरत आइसा की निकाह छह साल की उम्र में हुई थी और रुकसती नौ साल की उम्र में हुई थी। सहीह अल बुखारी (सुन्नी इस्लाम में हदीस का सबसे बड़ा संग्रह) हदीस नंबर 5134कहती है कि प्रोफेट मोहम्मद ने छह साल की उम्र में शादी की और नौ साल की उम्र में उनके साथ हमबिस्तरी की। कुल नौ साल तक हजरत आइसा प्रोफेट मोहम्म्द के गुजर जाने तक उनकी बीवी रहीं। सहीह अल बुखारी में सबसे ज्यादा हदीस हजरत आइसा से जुड़ी है। तो ऐसे में सवाल उठता है कि जो बात हदीस में लिखी है और जिससे इस्लाम के सबसे बड़े पैरोकार सऊदी अरब कोई परेशानी नहीं हैं उसे लेकर भारत में बैठे मुसलमान क्यों परेशान है। अगर कोई गैर मुस्लिम हदीस में लिखी हुई बात को सार्वजनिक तौर पर कहता है तो उसके खिलाफ फतवा क्यों जारी किया जाता है। उसे लेकर सड़कों पर हंगामा क्यों मचता है। इस बात को समझने की जरूरत है। इसमें कई शक नहीं है कि इस तरह के हंगामें का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं होता है बल्कि धार्मिक रंग देकर देश की शांति को भंग करने की कोशिश की जाती है जिसमें देश के अंदर बैठे शरारती तत्वों को देश के बाहर बैठे उनके आकाओं से आर्थिक समर्थन मिलता है। हदीस में जो बातें कही गई हैं वो तथ्य है इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता है भले ही ये बातें किसी को सही लगे या गलत। आखिर कब तक मुसलमान इस तथ्य से भागते रहेंगे।
(लेखक: हिमांशु कुमार तिवारी)