आज अहोई अष्टमी हैं। करवा चौथ के चार दिन बाद अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता हैं। ये त्योहार इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत करती हैं। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता हैं और फिर शाम को तारों का दर्शन करने के बाद ही व्रत खोलती हैं। इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की अराधना की जाती है। कहते हैं कि जो माताएं इस दिन व्रत रखती है उनकी संतानों की दीर्घायु होती है, उनके बच्चों की रक्षा स्वयं माता पार्वती करती हैं। चलिए जानते हैं शुभ मुहूर्त, योग, पूजा विधि और कथा
अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त- शाम 05:39 से 06:56
अवधि- 01 घण्टा 17 मिनट
तारों को देखने का समय- शाम 06:03
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय- 11:29
अहोई अष्टमी पर बन रहे तीन शुभ योग
अहोई अष्टमी पर 3विशेष योग बन रहे हैं। इसे अत्यधिक शुभ माना जा रहा है। इसमें सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग और गुरु पुष्य योग एक साथ बन रहे हैं। इन योगों में पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का राजा माना जाता है। बृहस्पतिवार को गुरु पुष्य नक्षत्र योग होने से अत्यधिक लाभ मिलता है। ऐसे में इस बार अहोई व्रत करने वाली माताओं को कई गुना ज्या फल मिलेगा।
स्याहु की माला का महत्व
अहोई अष्टमी की पूजा के लिए चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु भी कहते हैं। पूजा के समय इस माला कि रोली, अक्षत से इसकी पूजा की जाती है, इसके बाद एक कलावा लेकर उसमे स्याहु का लॉकेट और चांदी के दाने डालकर माला बनाई जाती है। व्रत करने वाली माताएं इस माला को अपने गले में अहोई से लेकर दिवाली तक धारण करती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
अहोई अष्टमी के दिन माताएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
फिर अहोई अष्टमी व्रत रखने का संकल्प लें।
अहोई माता की पूजा के लिए दीवार पर गेरू से माता अहोई का चित्र बनाएं।
साथ ही सेह और उनके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। आप चाहें तो उनका रेडिमेड चित्र या प्रतिमा भी लगा सकते हैं।
अब इस पर जल से भरा हुआ कलश रखें।
रोली-चावल से अहोई माता की पूजा करें।
अब अहोई माता को मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं।
कलश पर स्वास्तिक बनाकर हाथ में गेंहू के सात दाने लें।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन समय में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे थे। दिवाली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती के लिए मिट्टी लेने खदान गई। कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। उसी जगह एक सेह की मांद थी, कुदाल बच्चे को लगने से सेह का बच्चा मर गया। साहूकार की पत्नी को दुख हुआ वह पश्चाताप करती घर लौट आई। वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने दिलासा देते कहा कि यह बात बताकर पश्चाताप से आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर आराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास पूजा-याचना की। हर वर्ष नियमित रूप पूजन से उसे सात पुत्र रत्न मिले तब से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित है।