आज आमलकी एकादशी है। आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है। दरअसल आंवले का एक नाम आमलकी भी है और इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा के चलते ही इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आमलकी एकादशी के दिन भगवान को हल्दी, तेल चढ़ाई जाती है साथ भगवान जी के चरणों में अबीर-गुलाल चढ़ाया जाता है। फिर शाम के समय भगवान की रजत मूर्ति, यानी चांदी की मूर्ति को पालकी में बिठाकर बड़े ही भव्य तरीके से रथयात्रा निकाली जाती है। पूरे साल पड़ने वाली एकादशी में यह एकादशी काफी खास मानी जाती है।
आमलकी एकादशी पूजा मुहूर्त
आमलकी एकादशी को सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 06 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ हो रहा है, जो रात 10 बजकर 08 मिनट तक रहेगा। आमलकी एकादशी के दिन पुष्य नक्षत्र भी रात 10 बजकर 08 मिनट तक है। इस दिन का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक है।
आमलकी एकादशी का महत्व
यह व्रत आंवले के महत्व को भी बताता है। शास्त्रों के अनुसार आमलकी एकादशकी को दिन आंवले का उपयोग करने से भगवान श्री हरि विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार आंवले के पेड़ को भगवान विष्णु ने ही जन्म दिया था। इसलिए इस वृक्ष के हर एक भाग में ईश्वर का स्थान माना गया है. ये भी कहा जाता है कि आवंले के वृक्ष में श्री हरि और माता लक्ष्मी का वास होता होता है। इस कारण आमलकी एकादशी के दिन आवंले के पेड़ के नीचे बैठकर ही भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।
आमलकी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीहरि विष्णु की नाभि से सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी प्रकट हो गए थे। उसके बाद उनके मन में यह जानने की इच्छा हुई कि वह कौन हैं? उनके जीवन का उद्देश्य क्या है? उनका जन्म कैसे हुआ है? इस सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए उन्होंने भगवान विष्णु की तपस्या आरंभ कर दी। काफी वर्षों तक कठोर तपस्या करने के बाद एक दिन भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। उन्होंने ब्रह्मा जी को दर्शन दिया। इतने वर्षों के तप से भगवान विष्णु को अपने समक्ष पाकर ब्रह्म देव भावुक हो गए। उनके दोनों आंखों से आंसू निकल पड़े। उन आंसुओं से ही आंवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई।
यह देखकर भगवान विष्णु ने कहा कि आंवले का पेड़ आपके आंसुओं से उत्पन्न हुआ है, इसलिए यह पेड़ और इसका फल उनको प्रिय है। यह एक दिव्य पेड़ है, इसमें समस्त देवताओं का वास होगा। श्रीहरि विष्णु ने कहा कि आज से जो भी फाल्गुन शुक्ल एकादशी को आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर उनकी पूजा करेगा, विधिपूर्वक एकादशी व्रत रखेगा, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इस व्रत को करने से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाएगा। उसे मोक्ष मिलेगा। उसके समस्त पाप और दुख मिट जाएंगे। मनोकामनाएं पूरी होंगी। इस प्रकार से आमलकी एकादशी व्रत का प्रारंभ हुआ। इस दिन आंवले के पेड़ और उसके फल का विशेष महत्व होता है।
आमलकी एकादशी के दिन करें ये चीजें
आमलकी एकादशी के दिन आंवले का वृक्ष लगाने के साथ-साथ इसे पूरे एक महीने तक देखभाल करनी चाहिए। ऐसा करने से बिजनेस संबंधी काम में सफलता मिलती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आमलकी एकादशी के दिन आंवले का खास महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु को आंवला जरूर अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
यदि आप जिन्दगी के नए आयाम स्थापित करना चाहते हैं तो इस दिन 21 ताजा पीले फूल लेकर उनकी माला बना लें फिर इसे भगवान को अर्पित करें। इसके साथ ही भगवान को खोए की मिठाई का भोग जरूर लगाएं। ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं साथ ही उनके जीवन में हर कार्य में सफलता मिलती है।
अगर आप मनचाहा साथी पाना चाहते हैं तो इस दिन विधि-पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें आंवले का फल अर्पित करें।
अगर आप जीवन में ऐश्वर्य पाना चाहते हैं तो आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद श्री विष्णु भगवान की विधि-विधान से पूजा करें और भगवान को एकाक्षी नारियल अर्पित करें। फिर पूजा के बाद भगवान को चढ़ाए एकाक्षी नारियल को एक पीले रंग के कपड़े में बांधकर उसे संभालकर अपने पास रख लें।
यदि ऑफिस में आपके विपरीत कोई स्थिति बन गई है, तो इस दिन आपको आंवले के पेड़ में जल चढ़ाना चाहिए साथ ही आंवले की जड़ की थोड़ी-सी मिट्टी लेकर माथे पर तिलक लगाना चाहिए।
अगर आप अपने काम का दोगुना लाभ पाना चाहते हैं, तो इस दिन आपको आंवले के पेड़ को या उसके फल को स्पर्श करके प्रणाम करना चाहिए।
अगर आप अपने जीवनसाथी की कोई इच्छा पूरी करना चाहते हैं तो आमलकी एकादशी के दिन आपको आंवले के पेड़ के तने पर सात बार सूत का धागा लपेटना चाहिए और पेड़ के पास घी का दीपक जलाना चाहिए।