कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाते हैं। आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं। अक्षय का अर्थ है, जिसका क्षरण न हो। कहते हैं इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल अक्षय रहता है। इतना ही नहीं, ये मान्यता भी है कि इसी दिन श्री कृष्ण ने कंस के विरुद्ध वृंदावन में घूमकर जनमत तैयार किया था, इसलिए इस दिन वृंदावन की परिक्रमा करने का विधान है। इस खास दिन आवंले के पेड़ की पूजा की जाती है। हिंदू ग्रंथ के अनुसार त्रेतायुग का आरंभ आज के दिन से हुआ था।
आंवला नवमी शुभ मुहूर्त-
आज सुबह 05 बजकर 51 मिनट से 13 नवंबर की सुबह 05 बजकर 31 मिनट तक हैं।
अक्षय नवमी पूर्वाह्न समय – प्रातः 06 बजकर 41 मिनट से दोपहर 12 बजकर 05 मिनट तक।
कुल अवधि- 05 घंटे 24 मिनट।
आंवला नवमी की पूजा विधि
अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है। वृक्ष की हल्दी कुमकुम आदि से पूजा करके उसमें जल और कच्चा दूध अर्पित करें। इसके बाद आंवले के पेड़ की परिक्रमा करते हुए तने में कच्चा सूत या मौली आठ बार लपेटी जाती है। पूजा के बाद इसकी कथा पढ़ी और सुनी जाती है। पूजा खत्म होने के बाद परिवार और मित्रों आदि के साथ वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किए जाने का महत्व है।
अक्षत नवमी कथा
एक बार एक सेठ ब्राह्माणों को आदर सतकार इस दिन देता था, तो उसके पुत्रों को ये सब अच्छा नहीं लगता था, इसके लिए वह पिता से झगड़ा भी किया करते थे। ऐसे में घर में होने वाली इस लड़ाई से परेशान होकर सेठ ने एक बार घर छोड़ दिया और दूसरे गांव में जाकर रहने लगा।उसने वहां जीवनयापन के लिए एक दुकान लगा ली। यहां उसने दुकान के आगे आंवले का एक पेड़ लगाया। भगवान की कृपा हुई और उसकी दुकान खूब चलने लगी। खास बात ये थी परिवार से दूर होने पर भी वह यहां भी आंवला नवमी का व्रत-पूजा करने लगा तथा ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देने लगा।
दूसरी तरफ पुत्रों का व्यापार पूरी तरह से ठप्प हो गया है, और उनको अपनी गलती का अहसास हुआ। उनकी समझ में यह बात आ गई कि हम पिताश्री के भाग्य से ही खाते थे। इसके बार बेटे अपने पिता के पास गए और अपनी गलती की माफी मांगने लगे। फिर पिता की आज्ञानुसार उन्होंने भी आंवला के पेड़ की पूजा की इसके प्रभाव से उनके घर में भी पहले जैसी खुशहाली आ गई।